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केंद्रीय बलों का सीधा हस्तक्षेप संघीय ढांचा पर प्रहार

झारखंड मुक्ति मोर्चा के आरोप के बाद अब रांची पुलिस ने सीआरपीएफ के कमांडेंट के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। व्यवहारिक तौर पर केंद्रीय बलों की गतिविधियां राज्य सरकार के निर्देश पर संचालित होती है। इस बार ईडी द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूछताछ में इसका पालन नहीं किया गया।

झामुमो का आरोप है कि राज्य सरकार की जानकारी के बिना ही कई वाहनों पर सवार सीआरपी के जवान मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। आरोप यह भी है कि इन जवानों ने जबरन वहां प्रवेश करने की कोशिश भी की थी। झामुमो ने यह भी आरोप लगाया है कि हवाई अड्डे पर एक विमान भी खड़ा था और साजिश किसी तरह हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर दिल्ली ले जाने की थी। इस पर अभी सीआरपीएफ की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। लेकिन इसके बाद भी स्पष्ट है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान बिना किसी आदेश के तो वहां नहीं पहुंचे थे।

इसके अलावा पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से संबंधित मुकदमे इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच प्रभावी परामर्श की कमी का परिणाम प्रतीत होते हैं। पंजाब ने बीएसएफ के परिचालन क्षेत्राधिकार को 15 किमी से बढ़ाकर 50 किमी करने के फैसले को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमा दायर किया है।

सीमावर्ती राज्य केंद्र के कदम को संघीय सिद्धांतों के उल्लंघन और पंजाब पुलिस की कानून और व्यवस्था की शक्तियों में अतिक्रमण के रूप में देखता है। पश्चिम बंगाल का भी ऐसा ही मानना है और दोनों राज्यों ने विस्तार के खिलाफ अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कराया है।

इस पृष्ठभूमि में, बीएसएफ के संचालन क्षेत्र के विस्तार से उत्पन्न होने वाले सवालों की जांच करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण हो जाता है। अक्टूबर 2021 में, केंद्र ने बीएसएफ अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उस क्षेत्र का मानकीकरण किया गया था जिस पर बीएसएफ के संचालन का अधिकार क्षेत्र होगा।

पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा से 15 किमी के भीतर की दूरी बढ़ाकर 50 किमी कर दी गई, जबकि गुजरात में इसे 80 किमी से घटाकर 50 किमी कर दिया गया। राजस्थान के लिए इसे 50 किमी पर अपरिवर्तित रखा गया था।

केंद्र सरकार ने दिसंबर 2021 में राज्यसभा में एक जवाब में कहा कि बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र के विस्तार से उसे अपनी सीमा गश्ती ड्यूटी को अधिक प्रभावी ढंग से निभाने में मदद मिलेगी। हालांकि केंद्र सरकार के पास अपने इस कदम के लिए वैध कारण हो सकते हैं, लेकिन इसे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, जिनके पास सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और पुलिस शक्तियों का प्रयोग करने की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

बीएसएफ मुख्य रूप से सीमा पार अपराधों, विशेष रूप से भारतीय क्षेत्र में अनधिकृत प्रवेश या निकास को रोकने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसके पास अपराधियों की जांच करने या मुकदमा चलाने की शक्ति नहीं है, लेकिन गिरफ्तार किए गए लोगों और उनके पास से जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ को स्थानीय पुलिस को सौंपना होगा।

व्यवहार में, बीएसएफ कर्मी आमतौर पर पुलिस के साथ निकट समन्वय में काम करते हैं और अधिकार क्षेत्र का कोई टकराव नहीं होना चाहिए। यह तर्क देना संभव है कि विस्तारित क्षेत्राधिकार केवल बीएसएफ को अधिक तलाशी और जब्ती करने के लिए अधिकृत करता है, खासकर उन मामलों में जहां अपराधी देश के क्षेत्र में गहराई से प्रवेश करने का प्रबंधन करते हैं।

हालाँकि, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी केंद्रीय बल के अधिकार क्षेत्र के विस्तार के लिए मजबूत कारण होने चाहिए। इस संबंध में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए प्रश्नों में सबसे प्रासंगिक प्रश्न यह है कि क्या केंद्र की अधिसूचना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करती है; और भारत की सीमाओं से सटे क्षेत्रों की स्थानीय सीमाएं निर्धारित करते समय किन कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप पहले ही लग गये थे और कई मामलों में यह साफ होता जा रहा है कि इन केंद्रीय एजेंसियों का दरअसल राजनीतिक उपयोग ही हो रहा है। झारखंड के सीएम से हुई पूछताछ के बाद उन्हें दो दिनों के भीतर फिर से समन जारी करना इसी राजनीतिक उपयोग का प्रमाण है।

लेकिन इन कार्रवाइयों की वजह से केंद्र और राज्य के बीच टकराव की जो स्थिति बन रही है, वह किसी भी तरह से देश के लिए फायदेमंद नहीं है। संविधान में जिस संघीय ढांचे की परिकल्पना की गयी है, उसे बार बार तोड़ा जा रहा है जो अंततः केंद्र और राज्य के बीच सीधी टकराव का कारण बनेगा। मणिपुर में हम इसके उदाहरण देख रहे हैं और उससे होने वाले नुकसान को भी झेल रहे हैं।

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