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तवांग पर कब्जा चाहता है ड्रैगन

  • दलाई लामा के दौरे से नाराज है चीन

  • तिब्बत और अरुणाचल का जिक्र किया

  • दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चुनाव पर धमकी

भूपेन गोस्वामी

गुवाहाटी : चीन ने फिर से भारत की सीमा में आने की हिम्मत दिखाई। इस बार उसने पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में घुसने की कोशिश की। मेजर जनरल जर्केन गैमलिन ने आज कहा कि भारतीय सैनिक भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। एक भी सैनिक भारत की धरती में प्रवेश नहीं कर पाएगा।

तवांग, चीन का दर्द है जो उसे हमेशा दुख देता है। मेजर जनरल ने कहा कि अब बात करते हैं यांग्त्से की, यह जगह तवांग से 35 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है। पिछले साल नवंबर में भी यहां चीनी सैनिकों के साथ झड़प की खबरें आई थीं। यांग्त्से मार्च के महीने तक बर्फ से ढका रहता है।

यह स्थान भारतीय सेना के लिए सामरिक महत्व रखता है। सूत्रों के मुताबिक इस इलाके के आसपास भारत और चीन के तीन से साढ़े तीन हजार सैनिक तैनात हैं। साथ ही ड्रोन से भी इसकी निगरानी की जाती है। दोनों तरफ सड़कों का अच्छा नेटवर्क है और सैनिक वास्तव में नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब गश्त करते हैं। तवांग, एलएसी और दलाई लामा, वह त्रिकोणीय समीकरण जो रह-रहकर चीन को परेशान करता रहता है।

तवांग, चीन को उसकी बेइज्जती की याद दिलाता है। यह जगह चीन को बताती है कि जब वह तिब्बत पर कब्जा कर रहा था तो कैसे तवांग में दलाई लामा सुरक्षित थे और चीन की हरकत के खिलाफ दुनिया को बता रहे थे। तिब्बती धार्मिक नेता की वजह से पड़ोसी देश हमेशा भारत के खिलाफ आक्रामक क्यों रहता है। उन्होंने मीडिया से कहा तवांग वही जगह है जहां पर सन् 1683 में छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। ये जगह तिब्बती बौद्ध धर्म का केंद्र है।

शांति का नोबल हासिल करने वाला दलाई लामा आज भी अरुणाचल प्रदेश और तवांग को भारत का हिस्सा करार देते हैं तो चीन इसे दक्षिणी तिब्बत करार देता है। इस वजह से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानता है। वो कहता है कि दलाई लामा भारत और चीन की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया। साल 1959 में चीन ने मनमाने ढंग से तिब्बत पर कब्जे का एलान कर दिया। चीन उस समय मानता था कि तिब्बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा है। हालांकि दलाई लामा ने तवांग को तिब्बत का हिस्सा करार दिया। दलाई लामा अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक तिब्बत की आजादी और यहां की शांति की अपील करते रहते हैं। उनकी मांग है कि पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में बदला जाए। चीन की जनसंख्या स्थानातंरण की पॉलिसी को अब छोड़ दिया जाए क्योंकि यह तिब्बतियों के अस्तित्व के लिए खतरा है।

चीन ने शुक्रवार को कहा कि तिब्बती आध्यात्मिक गुरु 88 वर्षीय दलाई लामा का कोई भी उत्तराधिकारी देश के अंदर से होना चाहिए और उसे इसकी अनुमति लेनी होगी। चीन सरकार ने एक श्वेत पत्र में कहा है कि दलाई लामा और पंचेन रिनपोचे सहित तिब्बत में रह रहे सभी अवतरित बुद्ध को देश के अंदर से ही (उत्तराधिकारी) ढूंढना होगा, सोने के कलश से लॉटरी निकालने की परंपरा के जरिये निर्णय लेना होगा और चीन सरकार की मंजूरी लेनी होगी।

चीन अरूणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताता है। चीन ने भारत के सीमावर्ती इलाकों तक तिब्बत में हाई-स्पीड ट्रेन परिचालित करने के लिए रेल पटरी बिछाई है, जो उसे सैनिकों को तेजी से पहुंचाने में मदद करेगा। चीन तिब्बत को शिजांग के नाम से संबोधित करता है। चीन की घबराहट बढ़ती जा रही है क्योंकि दलाई लामा अपने उत्तराधिकारी को नियुक्त करने का नेतृत्व करेंगे, जिसका हिमालय क्षेत्र में एक बड़ा प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि उनकी विरासत तिब्बती लोगों के मन में अंतर्निहित है।

इस बीच, तिब्बत के आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा शनिवार को सिक्किम और पश्चिम बंगाल की अपनी यात्रा पर रवाना हो गए। 12 से 14 दिसंबर तक उनका प्रवचन देने का कार्यक्रम है। इस यात्रा ने भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा तनाव के संबंध में राजनयिक चर्चाओं को जन्म दिया है। अपनी यात्रा के दौरान दलाई लामा गंगटोक में प्रवचन देंगे। वह सिक्किम राज्य सरकार के अनुरोध पर पालजोर स्टेडियम में ग्यालसी थोकमे सानपो की 37 प्रथाओं को सिखाएंगे।इसके बाद वह 14 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के सालुगारा में शिक्षा के लिए रवाना होंगे। वह एक सामान्य शिक्षण देंगे और सेड-ग्यूड मठ में बोधिचित (सेमके) की पीढ़ी के लिए समारोह का संचालन करेंगे।

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