अरुणाचल प्रदेशकूटनीतियुद्ध

तवांग झड़प के बाद हरकत में आया चीन,150 किलोमीटर दूर तैनात किए ड्रोन-फाइटर जेट

मोदी सरकार की 1748 किलोमीटर लंबा सीमांत राजमार्ग की योजना

  • चीनी खेमा में गतिविधियां बहुत बढ़ी हुई हैं

  • चीन के बागदा एयरबेस पर ड्रैगन ड्रोन तैनात

  • अपने इलाके में पहुंच पथों को मजबूत करता भारत

भूपेन गोस्वामी

गुवाहाटी: 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय सेना के साथ झड़प में मात खाए चीन ने नॉर्थ-ईस्ट बॉर्डर के पास अपने एयरबेस पर एक्टिविटी बढ़ा दी है। यहां फाइटर जेट्स और ड्रोन की संख्या बढ़ गई है। मैक्सार टेक्नोलॉजी की सैटेलाइट इमेज में चीन की एक्टिविटीज साफ दिखाई पड़ रही हैं।रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने बांगदा एयरबेस पर सोरिंग ड्रैगन ड्रोन तैनात किया है। यह ड्रोन सैटेलाइट इमेज में दिखाई दे रहा है। बांगदा एयरबेस अरुणाचल सीमा से महज 150 किमी. दूर है। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने भी युद्धाभ्यास किया था।

इससे पहले  अमेरिकी रक्षा वेबसाइट वॉर जोन ने सैटेलाइट इमेज जारी किए थे, जिसमें तिब्बत के शिगात्से पीस एयरपोर्ट पर चीन के 10 एयरक्राफ्ट और 7 ड्रोन दिखे थे। तिब्ब,त में न्यिंगची, शीगत्सेर और नागरी में चीन के 5 एयरपोर्ट हैं और ये भारत-नेपाल बॉर्डर के करीब हैं। चीन ने पिछले साल ल्हाोसा से न्यिंगची तक बुलेट ट्रेन की शुरुआत की थी।

यह अरुणाचल के पास है।बताया जा रहा है कि ये ड्रोन क्रूज मिसाइल अटैक के लिए डेटा भी ट्रांसफर कर सकता है ताकि वह जमीन पर टारगेट को हिट कर सके। भारत के पास अभी इस श्रेणी का कोई ड्रोन नहीं है। ये ड्रोन चीन के इस सिस्टम का हिस्सा है, जिनमें उनकी एयरफोर्स रियल टाइम में भारत की ग्राउंड पोजिशंस को मॉनिटर कर सकती है। इन पोजिशंस को दूसरे ड्रोन और फाइटर एयरक्राफ्ट से मिसाइल के जरिए निशाना बनाया जा सकता है।

दूसरी ओर,तवांग बॉर्डर पर चीनी सैनिकों के बीच जारी तनाव के बीच अब भारतीय सेना ने ड्रैगन को जोरदार झटका देने की तैयारी कर ली है। हालांकि, चीन की अतिक्रमण की प्रवृत्ति को देखते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाकों से शेष भारत की कनेक्टिविटी पर ध्यान नहीं देना एक भयानक भूल साबित हो रही है।

इस गलती को सुधारने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत तेजी से काम कर रही है। मोदी सरकार अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के पास सड़कों का जाल बिछाने के लिए पंचवर्षीय योजना बना रही है। इस योजना के तहत 1,748 किलोमीटर लंबी टू-लेन सड़क बनाई जाएगी। सीमा के समानांतर 20 किलोमीटर की दूरी पर बिछाई जाने वाली इस सड़क को ‘फ्रंटियर हाईवे’ के रूप में विकसित किया जाएगा।

यह सीमांत राजमार्ग तिब्बत-चीन-म्यांमार सीमा तक फैला होगा।एनएच 913 के रूप में यह फ्रंटियर हाइवे कई मायनों में फायदेमंद साबित होगा। इससे एक तरफ आपातकालीन परिस्थिति में सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को बहुत जल्द सीमा पर पहुंचाया जा सकेगा तो दूसरी तरफ सीमाई इलाकों से लोगों का पलायन भी रुकेगा।

यह हाइवे बॉमडिला से शुरू होकर नाफ्रा, हुरी और मोनिगोंग से गुजरेगी। मोनिगोंग भारत-तिब्बत सीमा का सबसे निकटतम इलाका है। एनएच 913 जिदो और चेन्क्वेंती से भी गुजरेगा जो चीन बॉर्डर से सबसे करीब के इलाके हैं।1,748 किमी लंबे पूरे फ्रंटियर हाइवे को नौ पेकेज में बांटा गया है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा  कि इस प्रॉजेक्ट पर करीब 27 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी।  गडकरी ने बताया, ‘करीब 800 किमी का गलियारा हरित क्षेत्र होगा क्योंकि इतनी दूरी में कोई अन्य सड़क नहीं है।

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