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निजता में सेंधमारी पर झूठ ना बोले सरकार

दिल्ली पुलिस की कार्रवाई से यह स्पष्ट हो गया कि कोविड डाटा लीक होने के बारे में जो आरोप लगे थे, वे सही थे और बिहार की एक स्वास्थ्यकर्मी के जरिए टेलीग्राम एप पर बॉट के जरिए इसे जारी किया गया था। जब इस पर कई सांसदों ने आरोप लगाया और साथ में प्रमाण भी दिये तो सरकार ने उसका खंडन कर दिया।

अब दिल्ली पुलिस द्वारा दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद कमसे कम सरकार को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसकी सुरक्षा में सेंधमारी हुई है। वैसे सरकार के लिए गलतबयानी कोई नई बात नहीं है। पेगासूस के मामले में भी केंद्र सरकार ने संसद के भीतर ही झूठ बोला था जो बाद में सुप्रीम कोर्ट की तकनीकी जांच में साबित हो गया।

वैसे गाहे-बगाहे ऐसी खबरें आती रहती हैं कि साइबर अपराधियों ने लोगों का निजी डाटा चुरा लिया है। दरअसल, ऑनलाइन सिस्टम से जितनी सुविधा हुई व समय की बचत हुई, उसकी सुरक्षा के लिये खतरा उतना ही ज्यादा बड़ा हो गया है। पिछले दिनों व्यवस्थित कोविड टीकाकरण के लिये बनाये गये सिस्टम कोविन के डाटा में सेंधमारी की चर्चा ने सनसनी फैला दी।

चिंता की बड़ी बात यह थी कि इसमें करोड़ों लोगों का निजी डाटा जमा था, जिसमें आम के साथ सुरक्षा की दृष्टि से तमाम खास लोग भी शामिल थे। हालांकि, उसी तीव्रता से केंद्र सरकार ने साफ किया कि कोविन का कोई डाटा चोरी नहीं हुआ। फिर भी इस मुद्दे पर विपक्ष ने केंद्र को निशाने पर ले लिया।

यद्यपि सरलता से टीकाकरण की व्यवस्था को अंजाम देने के लिये देश-विदेश में कोविन सिस्टम की सराहना भी हुई थी। बहरहाल, निजी डाटा में सेंधमारी की चर्चा ने आम लोगों की चिंता बढ़ा दी क्योंकि आये दिन लोगों के साथ ऑनलाइन फ्राड के मामले प्रकाश में आते रहते हैं। कोविन प्रकरण में ये बातें भी चर्चा में रही कि चुराये डाटा को बिक्री के लिये एक वेबसाइट पर रखा गया है।

कहना कठिन है कि चोरी की घटना कितनी हकीकत है और कितना फसाना, मगर एक बार फिर से सरकार द्वारा नागरिकों से जुटाई गई संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा का प्रश्न सामने खड़ा हो गया। यदि सरकार के दावे को सही मान भी लिया जाये कि डाटा चोरी नहीं हुआ है तो भी जरूरी है कि सारे मामले की गहन जांच की जाये।

कोशिश हो कि इस प्रकरण में गहराई तक जांच करके दोषियों को कानूनी शिकंजे में लाने के प्रयास किये जाएं। दुनिया जानती है कि भारत एक बड़ा उभरता उपभोक्ता बाजार है और विश्व की तमाम कंपनियां अपने कारोबार को भारत में फैलाना चाहती हैं। यदि कोई डाटा चोरी होता है तो ये कंपनियां अपने कारोबार बढ़ाने के लिये चोरी का डाटा खरीदने को उत्साहित हो सकती हैं। बहरहाल, वास्तविकता कुछ भी हो सरकार को सरकारी सर्वर की सुरक्षा फुलप्रूफ करने की जरूरत है।

जिसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि खुद के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति इस निजी डाटा को न देख सके। दरअसल संविदा कर्मचारियों के भरोसे चलती सरकार को अपनी ही व्यवस्था पर पूरा भरोसा नहीं है। इसके लिए स्थायी इंतजाम करने की कोई तैयारी भी नहीं है। अब तो कोलकाता पुलिस की चेतावनी से यह साफ हो गया है कि साइबर ठगों ने बिना ओटीपी के भी आपके जेब में डाका डालने का रास्ता आधार कार्ड के जरिए खोज लिया है।

यानी कोविड डेटा के साथ साथ आधार कार्ड के दुरुपयोग को भी रोकने में सरकार विफल रही है। इसलिए कोशिश तो यह होनी चाहिए कि यदि किसी कल्याणकारी योजना के लिये सरकार भी किसी व्यक्ति के निजी डाटा का उपयोग करे तो उसकी जानकारी हर नागरिक को होनी चाहिए।

जहां तक कोविन प्रकरण की बात है तो सरकार को ईमानदारी से लोगों को बताना चाहिए की वास्तविक स्थिति क्या है। साथ ही समय-समय पर सुरक्षा उपायों की समीक्षा करके बचाव के नये मानकों को उपयोग में लाया जाना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में उत्तर कोरिया सहित कई सरकारों के संरक्षण में हैकिंग का काम किया जा रहा है।

कोशिश हो कि हैकरों पर नकेल कसने के लिये चाक-चौबंद कानून बनाये जाएं व तकनीकी उपायों की समय-समय पर समीक्षा भी की जाये। ताकि हैकरों को स्वच्छंद विचरण करने से रोका जा सके। केंद्र व राज्यों की नोडल साइबर सुरक्षा एजेंसियों के बेहतर तालमेल से काम करने से हैकिंग की समस्या पर किसी सीमा तक नियंत्रण करने में मदद मिलेगी।

लगता है कि हमने पिछले दिनों एम्स व अन्य संस्थानों पर हुए साइबर हमलों से कोई सबक नहीं लिया। तब कहा गया था कि विभिन्न संगठनों के नेटवर्क विभाजन को सुनिश्चित करना चाहिए। जिससे साइबर सुरक्षा उपायों में सुधार करने व कमजोरियों को दूर करने में मदद मिल सकेगी। साथ ही जरूरी है कि इससे जुड़े सभी कर्मचारियों को स्थायी बनाकर अनिवार्य रूप से साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण दिया जाए।

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