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बोरिंग के चक्कर में वाटर रिचार्ज भूल गये लोग

  • हर साल बढ़ती जा रही है यह परेशानी

  • सैकड़ों बोरबेल अब सालाना फेल करते हैं

  • वाटर हार्वेस्टिंग की चिंता किसी ने नहीं की

राष्ट्रीय खबर

रांची: प्रकृति प्रदत्त सुविधाओँ का लाभ अपनी आर्थिक हैसियत से अधिक उठाने की कीमत अब वे लोग उठा रहे हैं, जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभायी थी। ऐसे अमीरों की परेशानी सिर्फ उनकी अपनी होती तो कोई बात नहीं क्योंकि वह तो अपने पैसे से पानी खरीद भी सकते हैं।

लेकिन जिस तरीके से उन्होंने जमीन के अंदर का पानी खींचा है, उससे अगल बगल के गरीब बस्तियों तक के लिए पानी का संकट है। लंबे समय तक चिलचिलाती गर्मी और बिना प्री-मानसून बारिश के इस साल रांची जिले में भूजल स्तर कई सौ फीट तक कम हो गया है। जानकारों ने कहा है कि घटता जल स्तर और पानी की कमी, हालांकि, इस गर्मी में बोरवेल व्यवसाय क्षेत्र के लिए एक वरदान के रूप में आया है, जिसमें कई व्यवसाय मालिक पानी के छिद्रों को खोदने में ओवरटाइम काम कर रहे हैं।

अब वही शहर के लिए एक अभिशाप बन गया है क्योंकि भूगर्भस्थ पानी को रिचार्ज करने की व्यवस्था सरकारी और निजी स्तर पर नहीं की गयी है। बोरिंग का कारोबार करने वालों के मुताबिक, उनकी कंपनियां वॉटर टेबल के आधार पर 500 फीट से 1,000 फीट तक खुदाई करने के लिए 80,000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक चार्ज करती हैं। लेकिन जमीन के अंदर पानी कौन डाले, इस पर कोई काम नहीं हुआ है। दरअसल यह स्थिति इसलिए भी बिगड़ी है क्योंकि प्रकृति के वाटर रिचार्ज के तरीकों को लोगों ने खुद नष्ट कर दिया है।

आशीर्वाद बोरवेल्स के मालिक रवि वर्मा ने कहा कि उन्होंने इस साल अप्रैल से जून के बीच 100 से अधिक बोरवेल खोदे हैं। वर्मा ने कहा, कुछ क्षेत्रों में, हमने 500 फीट से अधिक गहरा खोदा लेकिन पानी निकालने में असफल रहे। चौधरी बोरवेल जैसी अन्य बोरवेल कंपनियों ने इस साल बरियातू और पिस्का मोड़ के बीच 500 बोरवेल खोदे।

एक प्रसाद बोरवेल ने लगभग 100 बोरवेल और कृष बोरवेल 200 खोदे हैं। हरमू हाउसिंग कॉलोनी और हिंदपीढ़ी सहित शहर के कई इलाकों में जलस्तर 500 फीट से नीचे चला गया है। इसी तरह, सर्कुलर रोड पर कांके, विद्या नगर, मोराबादी और बर्दवान कंपाउंड के कुछ हिस्सों में भी भूजल स्तर कम देखा जा रहा है।

ऊपरी और निचले बर्दवान कंपाउंड पर हर दूसरे घर में गहरी बोरिंग हो रही है। काम आमतौर पर देर रात या सुबह जल्दी किया जाता है ताकि व्यस्त घंटों के दौरान लोगों को परेशान न किया जा सके। थड़पखना में एक दुकान चलाने वाले एक अन्य व्यवसायी केदार हाजरा ने कहा, “भूजल स्तर में गिरावट के साथ, हमारे घर में नया बोरवेल विफल हो गया।

हम पीएचईडी के पानी की आपूर्ति पर निर्भर हैं लेकिन पानी अशुद्ध और पीने के लायक नहीं है। जानकारों की मानें तो हरमू, स्वर्णरेखा और उसकी सहायक नदियों में मानव के बढ़ते अतिक्रमण के कारण सूख रही नदियों के जलस्तर में कमी आई है। मामले को और भी बदतर बनाते हुए, झारखंड ने इस साल 1 जून से 15 जून के बीच प्री-मानसून वर्षा में 91% की कमी दर्ज की।

रांची नगर निगम के अतिरिक्त नगर आयुक्त कुंवर सिंह पाहन ने कहा कि सड़कों के पास बोरवेलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन इलाकों में अनुमति दी गई थी। हरमू और हिंदपीढ़ी जैसे इलाकों में पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए हम रांची के निवासियों से अपील कर रहे हैं कि वे अपने घरों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित करें ताकि भूजल स्तर को रिचार्ज किया जा सके।

अब बहुमंजिली इमारतों में बने बोरवेल जब फेल हो रहे हैं तो यह जरूरत महसूस हो रही है कि जमीन के अंदर पानी डालना भी जरूरी है। पक्की सड़कें, इमारत के चारों तरफ सीमेंट की सतह और घास ना उगने के लिए लगाये गये टाइल्स, इन सारे तरीकों से प्राकृतिक तौर पर भूगर्भस्थ वाटर रिचार्ज की पद्धति को ही खत्म कर दिया है। वहां जो पानी पहले से है, उसे खींचा जा रहा है लेकिन उसे दोबारा भरा कैसे जाए, इसकी चिंता किसी को नहीं है।

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