नीति आयोग की बैठक में देश के ग्यारह मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए। इन सभी ने इसके बारे में अलग अलग तर्क दिये हैं। लेकिन अंदरखाने से जो बात निकल कर आ रही है कि ऐसी बैठकों में ठोस कुछ निकलकर नहीं आता है। इसलिए सिर्फ नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने से ऐसे मुख्यमंत्रियों ने परहेज किया।
वैसे इस बैठक में विकसित भारत 2047, एमएसएमई पर जोर, बुनियादी ढांचा और निवेश, अनुपालन को कम करना, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और पोषण, कौशल विकास और क्षेत्र के विकास और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के लिए गति शक्ति पर चर्चा हुई है। ध्यान से देखें तो इनमें से कोई ऐसी बात नहीं है, जिनका उल्लेख श्री मोदी ने अपने पूर्व के भाषणों में नहीं किया है।
अब इन मुख्यमंत्रियों के अनुपस्थित रहने पर भाजपा की जिस तरीके से प्रतिक्रिया आयी है, उससे साफ है कि वह नाराज है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने जो कहा है, उसका असली निष्कर्ष तो यही निकलता है। नीति आयोग परिषद की बैठक में 11 मुख्यमंत्री शामिल नहीं हो रहे हैं।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाग नहीं लेने के लिए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने उनकी अनुपस्थिति का कोई विशेष कारण नहीं बताया है। अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को पीएम को पत्र लिखकर केंद्र के हालिया अध्यादेश पर बैठक का बहिष्कार करने की घोषणा की और आरोप लगाया कि देश में सहकारी संघवाद को मजाक में बदल दिया जा रहा है।
भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा विवादास्पद अध्यादेश 11 मई के सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश को प्रभावी रूप से रद्द कर देता है जिसने दिल्ली सरकार को नौकरशाही पर कार्यकारी नियंत्रण प्रदान किया था। पंजाब के भगवंत मान ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा है कि वह पंजाब के हितों पर ध्यान नहीं दे रहा है, इसलिए वह बैठक का बहिष्कार करेंगे।
पिछली बैठक में, पिछले साल अगस्त में, मुख्यमंत्री ने ग्रामीण विकास निधि (आरडीएफ), पराली जलाने और किसानों की चिंताओं के मुद्दों को उठाया था, उनका कहना है कि केंद्र ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। श्री मान ने इसे केवल फोटो सेशन कहते हुए अपने नोट में कहा है कि बैठक में भाग लेने का कोई फायदा नहीं है जब तक लंबित मुद्दों को संबोधित नहीं किया जाता है।
तीन अन्य प्रमुख विपक्षी नेता – तेलंगाना के के चंद्रशेखर राव, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और बिहार के नीतीश कुमार – जो अगले साल के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक भव्य संयुक्त विपक्षी मोर्चे को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, बैठक से बाहर हो रहे हैं। एनडीए और विपक्ष दोनों से दूरी बनाए रखने वाले ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी बैठक से अनुपस्थित रहे क्योंकि उनका पूर्व कार्यक्रम है।
11 मुख्यमंत्रियों ने बैठक में भाग नहीं लिया। नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल की पिछली बैठकों में इसी तरह की उपस्थिति नहीं देखी गयी है। भाजपा ने कहा कि लापता मुख्यमंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण योजना बैठक में लोगों की आवाज नहीं उठाई, जहां सौ से अधिक मुद्दों पर चर्चा की जानी थी।
नीति आयोग राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों की एक साझा दृष्टि विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, यह कहते हुए कि यह पूरे नीति-ढांचे और विकास के लिए रोड मैप का निर्धारण करने के लिए एक महत्वपूर्ण निकाय है। नीति आयोग देश के विकास और योजना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस बैठक के लिए 100 मुद्दे तय किए गए हैं और जो मुख्यमंत्री नहीं आए हैं वे अपने राज्य के लोगों की आवाज यहां नहीं ला रहे हैं।
आप कहां तक जाएंगे।” मोदी का विरोध करने के लिए?” भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा। सरकारी सूत्रों ने कहा है कि मुख्यमंत्रियों द्वारा नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठकों का बहिष्कार करना राज्य के विकास का बहिष्कार करने के बराबर है। सूत्रों ने कहा कि गवर्निंग काउंसिल की बैठक (जीसीएम) में सौ से अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाएगी, और जिन राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं किया जाएगा, वे हार जाएंगे।
शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा है कि अगर गैर-भाजपा मुख्यमंत्री बैठक का बहिष्कार कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि केंद्र उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं कर रहा है। पीएम मोदी शनिवार को प्रगति मैदान, नई दिल्ली में नए कन्वेंशन सेंटर में ‘विकास भारत 2047, टीम इंडिया की भूमिका’ विषय पर नीति आयोग की आठवीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। वह 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से स्वास्थ्य, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे। इससे क्या निकलकर आया और देश को इससे क्या लाभ होगा, इसका उत्तर आना अभी शेष है।