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उपराज्यपाल सिर्फ प्रशासकीय प्रमुख रहेंगे
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जमीन और विधि व्यवस्था केंद्र के अधीन
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शेष सभी अधिकार राज्य सरकार के पास
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः दिल्ली सरकार वनाम उप राज्यपाल मामले में शीर्ष अदालत ने अपना फैसला राज्य सरकार के पक्ष में सुनाया है। अदालत ने कहा है कि सरकार की असली ताकत चुनी हुई सरकार के पास ही होती है। केंद्र द्वारा मनोनित कोई व्यक्ति इसके शीर्ष पर नहीं हो सकता। इसलिए वहां तैनात अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापन का अधिकार भी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास ही है।
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायामूर्ति एमआर शाह, कृष्णा मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा थे। अदालत ने अपने इस फैसले में साफ कर दिया है कि उस केंद्र शासित प्रदेश में केंद्र सरकार के पास सिर्फ जमीन, विधि व्यवस्था का अधिकार है।
शेष सब कुछ वहां की चुनी हुई सरकार के अधीन है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ये सर्वसम्मति का फैसला सुना रहे हैं और वो इसे दो हिस्से में सुना रहे हैं। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने सुनवाई के बाद 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली सरकार को अफसरों का ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार है। इस मामले में दिल्ली सरकार की सुप्रीम कोर्ट की जीत हुई है। वहीं सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस का अधिकार केंद्र के पास रहेगा।दिल्ली दूसरे केंद्रशासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां चुनी हुई सरकार है।
दिल्ली सरकार को वही शक्तियां हैं तो दिल्ली विधानसभा को मिली हुई हैं। चुनी हुई सरकार के पास ही प्रशासनिक व्यवस्था रहेगी। एग्जिक्यूटिव मामले में अधिकार एलजी के पास। उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता के साथ काम करेंगे। आदर्श स्थिति यही होगी दिल्ली सरकार को अधिकारियों पर नियंत्रण मिले।
पुलिस और कानून व्यवस्था और जमीन जो दिल्ली सरकार के दायरे में नहीं आते हैं उसके अलावा बाकी अधिकारियों पर अधिकार दिल्ली सरकार को मिलनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार का अपने अधीन अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होगा तो वो ठीक से काम नहीं करेंगे। वो सरकार की बात नहीं मानेंगे।
अगर चुनी हुई सरकार है तो उसको शक्ति मिलनी चाहिए क्योंकि यह पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली की चुनी हुई सरकार लेकिन अधिकार कम। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली के कुछ मामलों में एलजी का एकाधिकार है। विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील रखी कि संविधान में कभी ऐसा विचार नहीं किया गया था कि यूटी (केंद्र शासित प्रदेश) के लिए अलग सर्विस कैडर हो। यह सिर्फ यूनियन ऑफ इंडिया का एक्सटेंशन है और यूटी में जो भी कर्मी काम करते हैं, वे केंद्र के अधीन काम करते हैं।
2007 से लेकर अभी तक सिर्फ चार बार ऐसा मौका आया है, जिसमें चुनी हुई दिल्ली की सरकार और एलजी के बीच मतभिन्नता हुई और मामला राष्ट्रपति को रेफर हुआ था। सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि मामले को लार्जर बेंच को रेफर करने की जरूरत इसलिए है कि मामला संघीय ढांचे से जुड़ा है। साथ ही, केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश के बीच संघीय सिद्धांत को देखना जरूरी है। वहीं, चीफ जस्टिस और अन्य जजों ने मामले में सॉलिसिटर जनरल को अलग से नोट पेश करने की इजाजत दी थी।