राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने के बाद मीडिया से घिरे राहुल गांधी ने एक बार फिर से मीडिया पर ही सवाल उठाया। उन्होंने मीडिया में होने वाले इस प्रचार का आधार पूछा कि राहुल की यात्रा के बाद भी विपक्षी एकता का प्रयास असफल हो गया है।
उन्होंने कहा कि यह आखिर किसका आकलन है कि विपक्षी एकता का प्रयास धराशायी हो गया है और उस आकलन का आधार क्या है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पदयात्रा के बाद लाल चौक पर झंडा फहराने और राष्ट्रगान गाने के बाद भीड़ में घिरे राहुल को सुरक्षा कर्मियों के निर्देश पर गाड़ी में बैठकर निकलना पड़ा था।
इस पदयात्रा में एक के स्टालिन, सुप्रिया सूले, आदित्य ठाकरे, फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं ने शिरकत की है। दूसरी तरफ न्योता पाने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी इससे दूर रही है। आम आदमी पार्टी जैसे कुछ दलों को कांग्रेस ने न्योता ही नहीं दिया था।
देश के 12 दलों क प्रतिनिधियों की भागीदारी के बाद राहुल गांधी ने कल यह सवाल मीडिया से किया कि आखिर विपक्षी एकता नहीं होने का निष्कर्ष निकालने का आधार क्या है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में भी अत्यधिक लोग इस यात्रा में शामिल हुए हैं। भीड़ तो खुली आंखों से दिख रही है।
देश में जिस तरीके के भय और भेद का माहौल बनाया गया था, उसे दूर करने में सफलता मिली है। उनके शब्दों में नफरत के बाजार में हर जगह अब मोहब्बत की दुकान खुल गयी है। इसलिए जो पर्दे के पीछे से विपक्षी एकता विफल होने का प्रचार कर रहे हैं, उन्हें मीडिया के पीछे छिपना नहीं चाहिए बल्कि सामने आकर उस आकलन का आधार बताना चाहिए।
राहुल ने कहा कि यात्रा का कोई राजनीतिक मकसद नहीं था, यह बार बार स्पष्ट किया गया है। इसलिए अब इसके पूरा होने के बाद नया सवाल जानबूझ कर खड़ा किया जा रहा है। वरना इससे पहले मेरे जूते और टी शर्ट से लेकर पांच सितारा कंटेनर तक की बात किसकी देन थी, इसका उत्तर तो मीडिया को देश की जनता को देना चाहिए।
वायनाड के सांसद ने कहा कि देश की जनता को जो बात बतानी थी वह देश की जनता समझ रही है। जहां तक राजनीतिक सहभागिता का सवाल है जो डीएमके, एनसीपी, शिवसेना, एनसी, पीडीपी, झामुमो, माकपा, भाकपा जैसे दलों के प्रतिनिधि भी इस मकसद में भागीदार रहे हैं। इसलिए नफरत के माहौल को कम करने में मदद मिली है।
वैसे राजनीतिक पंडितों का आकलन है कि और कुछ ना हो लेकिन राहुल गांधी को पप्पू ठहराने का सारा प्रयास अब नकारा हो चुका है। राहुल ने खुद ही यह कहा था कि उनके खिलाफ माहौल बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च किये गये थे। उन्होंने कहा कि पैदल इस दूरी को तय करना एक अलग अनुभव है।
पूरे देश को महसूस करना अपने आप में बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि अब भाजपा आम जनता से सीधे बात भी नहीं करती है। वह अपना एजेंडा मीडिया के जरिए परोसती है। इस साजिश को भी देश की जनता समझ चुकी है।
इस वजह से अब मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह अपने माध्यम से जो कुछ भी प्रचारित कर रही है, उसका तर्कसंगत आधार बताये। वैसे इस अनौपचारिक बात चीत के दौरान राहुल गांधी ने भावी योजनाओं के बारे में संकेत दिया कि उनके दिमाग में दो तीन योजनाएं हैं।