ईडी ने हेमंत सोरेन को खनन घोटाले में पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुलाकर राजनीतिक सनसनी फैला दी है। यह बुलावा तो पहले ही आया था लेकिन हेमंत सोरेन आज इसके बहाने भी शक्तिप्रदर्शन करेंगे और एक और राजनीतिक जीत हासिल करेंगे, यह तय है।
इसके पहले भी उन्होंने खतियान आधारित स्थानीयता और रोजगार में आरक्षण का फैसला पारित कर केंद्र सरकार के पाले में गेंद को डाल दिया है। ईडी की जांच में हेमंत सोरेन के करीबियों से हुई पूछताछ में जो तथ्य अब तक सार्वजनिक हुए हैं, उससे साफ है कि अब प्रवर्तन निदेशालय भी एक सीमा से आगे बढ़ने से परहेज करेगा। ऐसा क्यों होगा, इसका खुलासा जमशेदपुर के विधायक सरयू राय पहले ही कर चुके हैं।
दरअसल जिन मामलों में हेमंत सोरेन को घेरने की तैयारी की गयी थी, उनमें किसी न किसी रूप में पूर्व सरकार की सहभागिता भी है। पूर्व सरकार यानी रघुवर दास की सरकार और उनके कार्यकाल में अति प्रभावशाली रहे अधिकारियों को इस जांच के दायरे में लेना भाजपा के गले में हड्डी बन सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम को दोबारा याद कर लें तो रघुवर दास की सरकार में मंत्री रहते हुए ही श्री राय ने सरकार के कई फैसलों पर असहमति जतायी थी। बाद में उन्होंने इसकी शिकायत अमित शाह से की थी लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। उसके बाद अंतिम समय तक पार्टी की तरफ से टिकट नहीं मिलने की वजह से उन्होंने अपना रास्ता अलग कर लिया और रघुवर दास को ही पराजित कर विधायक बने हैं। हाल के घटनाक्रमों पर गौर करें तो कांग्रेस के तीन विधायकों को कोलकाता में नकद के साथ हिरासत में लिये जाने की घटना में शिकायत दर्ज कराने वाले विधायक के यहां छापा पड़ चुका है।
इस छापामारी में क्या मिला, इसकी जानकारी सरकारी एजेंसियों द्वारा नहीं दी गयी है। चुनाव के ठीक पहले मांडर के विधायक बंधु तिर्की के घर पर भी सीबीआई का छापा पड़ने के बाद खुद बंधु तिर्की ने यह सवाल सीबीआई से किया था कि एजेंसी को बताना चाहिए कि छापामारी में क्या मिला है। इन सारे सवालों के उत्तर नहीं मिले हैं।
दूसरी तरफ महाराष्ट्र में काफी दिनों तक जेल में बंद रहे संजय राउत के जमानत पर बाहर आने के क्रम में अदालत का फैसला यह स्पष्ट कर देता है कि इन तमाम सरकारी एजेंसियों का दरअसल दुरुपयोग हो रहा है। अब हेमंत की बात पर लौटते हैं तो हेमंत पर आगे कार्रवाई करते ही इस मामले के वे गड़े हुए मुर्दे भी जिंदा हो जाएंगे, जो भाजपा की सेहत के लिए कतई अच्छे नहीं होंगे।
दिल्ली के एक मंत्री सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी और वहां के उप मुख्यमंत्री के यहां छापामारी का हश्र क्या हुआ है, यह अब तक सामने नहीं आ पाया है। इस मामलें चर्चा के दूर रहा एक मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि जो लोग इस सिलसिले में गिरफ्तार किये गये हैं, उनका राज्य के पूर्व मुख्य सचिव राजबाला वर्मा से क्या रिश्ता था, इस पर कोई केंद्रीय एजेंसी कुछ भी कहने से कतराने लगेगी।
वैसे भी कभी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की पसंद रही इस अधिकारी ने इनदिनों पर्दे से गायब होने का रवैया अपना रखा है। जांच एजेंसियों के अलावा सभी आम लोग यह जानते हैं कि अब तक की जांच में जो लोग पकड़ में आये हैं, उन्हें आगे बढ़ाने में किसकी क्या भूमिका रही है। जमशेदपुर के विधायक सरयू राय ने पहले भी कई अवसरों पर इन मुद्दों पर सीधा सवाल किया है और सही दोषियों पर कार्रवाई की मांग करने के साथ साथ अपनी तरफ से सबूत भी सार्वजनिक कर दिये हैं। लिहाजा ईडी की कार्रवाई की गाड़ी बहुत आगे नहीं बढ़ पायेगी, यह लगभग तय है।
इतना माना जा सकता है कि केंद्र सरकार से दो दो हाथ करने का एलान कर चुके हेमंत सोरेन सामयिक तौर पर भले ही परेशान हों लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में उनके दोनों ही हाथों में लड्डू है। भाजपा की यही परेशानी भी है कि वह हेमंत के हाल के फैसलों का न तो विरोध कर पा रही है और ना समर्थन। इसलिए जांच किसी खास परिणाम तक पहुंचेगा, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है।
दूसरी तरफ राज्य में 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और आरक्षण का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराकर हेमंत सोरेन ने अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। इस बात को याद रखना होगा कि अलग राज्य के आंदोलन का जन्म ही इन मुद्दों पर हुआ था। इसलिए हेमंत के इन ताजा फैसलों के बाद अगर कुछ भी होता है तो यह राजनीतिक तौर पर हेमंत सोरेन के पक्ष में ही जाएगा। ईडी की पूछताछ और आगे की कार्रवाई से भारतीय जनता पार्टी को कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा, इस पर भी संदेह है।