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इंसान के क्रमिक विकास की पुरानी सोच फिर से गलत साबित हुई

  • मछली के दांत के परीक्षण से पता चला

  • इस अवशेष का आकार साढ़े छह फीट

  • धीमी आंच में पकाया गया था भोजन

राष्ट्रीय खबर

रांचीः इंसान का क्रमिक विकास हुआ है, इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। यह क्रमिक विकास चिंपांजी से हुआ है, यह भी वैज्ञानिक शोध में प्रमाणित हो चुका है। अलग अलग कालखंड में प्राचीन मानव अलग अलग किस्म का था। इसके बीच जो वैज्ञानिक सवाल उभरा था वह यह था कि आखिर इंसान ने पका हुआ भोजन कब करना प्रारंभ किया। इस बारे में जो पूर्व की अवधारणा थी, वह नये शोध में गलत साबित हो चुकी है।
वैज्ञानिकों के अनुमान से हजारों वर्ष पहले ही इंसान ने भोजन पकाना प्रारंभ कर दिया था। इसका एक अर्थ यह भी है कि आग की खोज कर लेने के बाद गुफाओं में रहने वाली मानव प्रजाति भी शायद भोजन पकाया करती थी. इस बारे में इजरायल के एक शोध दल ने अपनी रिपोर्ट जारी की है। उत्तरी इजरायल में मिले एक प्राचीन अवशेष के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है।
उत्तरी इजरायल के एक इलाके में खोज के दौरान एक मछली के अवशेष मिले थे। वैज्ञानिक परीक्षण से यह प्रमाणित हुआ था कि कार्प जैसी मछली का यह अवशेष करीब सात लाख अस्सी हजार वर्ष पुराना है। वहां के गेशर बेनोट याकूब खनन स्थल पर यह अवशेष जिस मछली का था वह करीब साढ़े छह फीट का था। जहां यह खनन कार्य चल रहा था वह गैली समुद्र के करीब साढे आठ मील की दूरी पर स्थित है।
हो सकता है कि उस काल में यह समुद्र भी यहां तक फैला हुआ हो। इस मछली की दांतों का परीक्षण कर वैज्ञानिक हैरान हो गये। इन दांतों की जांच से पता चला कि दरअसल इस मछली को पकाया गया था। यह नई जानकारी थी इसलिए उसका दोबारा परीक्षण किया गया। जिसमें यह पता चला कि धीमी आंच में उसे पकाया गया था। इस वजह से उस मछली के दांत में इसके प्रमाण मौजूद थे।
मछली पकाने की इस सूचना से ही पूर्व की वह सोच गलत प्रमाणित हुई कि क्रमिक विकास के क्रम में इंसान ने कब पका हुआ भोजन करना प्रारंभ किया। वैसे शोधदल ने स्पष्ट कर दिया है कि इस फॉसिल की दांतों के परीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि यह सीधे आग के संपर्क में नहीं आयी थी। इसका अर्थ है कि उस काल के इंसान ने इसे पकाया था।
इस बारे में हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफसर नामा गोरेन इनबार ने कहा कि इससे साफ हो जाता है कि उतने पुराने समय का इंसान भी अपनी भोजन पद्धति को बदल चुका था। वैज्ञानिक यह मानकर चल रहे थे कि इस समय के काफी बाद में मनुष्य ने पका हुआ भोजन करना प्रारंभ किया था। बता दें कि प्रोफसर इनबार ही इस खनन कार्य का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका कहना है कि मछली के अवशेष से पकाये जाने की पुष्टि होने की वजह से यह माना जा सकता है कि उस प्राचीन काल का मानव दूसरे भोजन व्यंजनों को भी पकाया करता था। इनमें पशु और पौधे या फल भी हो सकते हैं।
मीठे पानी के इलाके के करीब इस अवशेष की मौजूदगी से यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि उस काल में मानव जाति अफ्रीका से आगे बढ़ते हुए दुनिया के दूसरे भागों में फैलती जा रही थी। वरना इस बारे में पूर्व का आकलन कुछ और ही था।

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