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सरकार की उदारता या चुनावी मजबूरी

एक साथ दो जरूरी सूचनाएं सरकार की तरफ से आयी है। इनमें से सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का उम्र बढ़ाने का कोई औपचारिक एलान नहीं किया गया है। दूसरा बयान केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का है, जो यह कह रहे हैं कि अब सरकार पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर सोच रही है।
यह दोनों फैसले समान सिविल कोड के जैसा सिर्फ चुनाव के वक्त ही क्यों निकला, यह बड़ा सवाल अब भाजपा के सामने है। वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद देश का माहौल ऐसा बदला है कि अब भाजपा से लोग सवाल करने लगे हैं। पहले लोग ऐसा नहीं किया करते थे।
मिल रही जानकारी के मुताबिक इकोनॉमिक एडवाइजरी कमेटी ने अपना प्रस्ताव दिया है। इसमें सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाने की सिफारिश सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भेजी गयी है। समान पेंशन योजना में सभी को कमसे कम दो हजार रुपये की पेंशन देने पर विचार चल रहा है। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ इन दोनों फैसलों के लागू होने के आर्थिक पहलुओँ की जांच कर रहे हैं।
यह तय है कि इन दोनों के लागू होने पर केंद्र सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ आयेगा। कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के साथ साथ स्कील डेवलपमेंट पर भी विचार किया जा रहा है। यह योजना पचास वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारियों पर लागू होगी ताकि उनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सके। वैसे इन प्रस्तावों को लागू करने के लिए सरकार को नीति बनानी पड़ेगी। इसके साथ ही केंद्र के अलावा राज्य सरकारों को भी इसमें सहमति देना पड़ेगा। उसके बिना स्कील डेवलपमेंट की योजना को अमल में नहीं लिया जा सकता है।
देश में वर्ष 2050 तक करीब 32 करोड़ सीनियर सिटीजन होने की वजह से इन मानव संसाधन का भी देश के विकास में उपयोग करने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों ने इस बात पर भी सवाल उठाये हैं कि अगर यह फैसला लागू किया जाता है तो सेना की अग्निवीर योजना का क्या होगा, जिसमें सिर्फ चार साल की नौकरी और पेंशन नहीं होने का एलान हाल ही में किया गया है।
जाहिर ही बात है कि अग्निवीर योजना को लागू करते वक्त उसके पक्ष में अनेक तर्क दिये गये थे। कुछ ऐसा ही तीनों कृषि कानूनों के मामले में भी हुआ था। इसलिए अभी यह सूचना क्यों बाहर आयी और उसका राजनीतिक लाभ उठाना मकसद है या नहीं, इसकी जांच अभी शेष है।
इसके बीच ही पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि मोदी सरकार पेट्रोल-डीजल और शराब को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए तैयार है। पुरी ने कहा कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए राज्यों की सहमति जरूरी है। अगर राज्य इस दिशा में पहल करते हैं तो केंद्र भी इसके लिए तैयार है। जीएसी परिषद की बैठक दिसंबर महीने में होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि राज्यों के राजस्व का प्रमुख स्रोत शराब एवं पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाला टैक्स ही होता है।
राज्य राजस्व के मुख्य स्रोत को त्रपाने वाला आखिर उसे क्यों छोड़ना चाहेगा? सिर्फ केंद्र सरकार ही महंगाई और अन्य बातों को लेकर फिक्रमंद रहती है। उन्होंने कहा कि जहां तक जीएसटी का सवाल है तो हमारी या आपकी इच्छाएं अपनी जगह हैं, हम एक सहकारी संघीय व्यवस्था का हिस्सा हैं। एक देश और एक टैक्स के सपने को पूरा करने के लिए जीएसटी लागू किया गया था।
इसके बावजूद पेट्रोल और डीजल पर प्रत्येक राज्य अपने-अपने तरीके से टैक्स वसूलते हैं। इसके चलते एक राज्य से दूसरे राज्य में ईंधन की दर अलग-अलग है। अब चुनावी मौके पर ही ऐसा बयान क्यों आया है यह नया सवाल उठ खड़ा हो रहा है। सवाल उठना लाजिमी है क्योंकि एक सौ के ऊपर पेट्रोल के दाम में केंद्र और राज्य सरकार का कितना हिस्सा है, यह अब आम आदमी जानता है।
इतने दिनों तक जनता पर यह आर्थिक बोझ क्यों डाला गया और सरकार ने अपने राजस्व को बढाने के लिए जनता को राहत देते हुए कौन से उपाय किये, इस सवाल का उत्तर केंद्र सरकार के पास नहीं है। यह बता देना प्रासंगिक होगा कि सभी सरकारों की शाहखर्ची सिर्फ जनता के पैसे पर ही चलती है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान यह राज खुल चुका है। इसलिए अगर आम आदमी इससे नाराज है तो उसकी आंच चुनावी गणित को प्रभावित कर सकती है, यह किसी भी दल के लिए भय का विषय है। लिहाजा हर ऐसे फैसले को अब चुनावी चश्मे से ही देखा जाएगा, यह तय है। क्योंकि पहले जिन मुद्दों को अनसुना कर दिया गया, उनपर अब क्यों विचार हो रहा है, इस सवाल का उत्तर देश का आम आदमी अपने अनुभव से ही अच्छी तरह समझ पा रहा है।

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