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वैज्ञानिकों ने अत्यंत पतला सौर सेल बनाया है

  • विकिरण के दबाव को झेल पायेगा यह

  • बहुत अधिक समय के लिए काम करेगा

  • वर्तमान सेलों की मुकाबले बहुत पतला

राष्ट्रीय खबर

रांचीः हर अंतरिक्ष यान को बाहर भी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। यहां तक कि जो अंतरिक्ष दूरबीन भी धरती के बाहर स्थापित हैं, उन्हें भी अपने यंत्रों को चालू करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा का उपाय नहीं होने की स्थिति में सैटेलाइट, अंतरिक्ष यान अथवा खगोल दूरबीन किसी का भी अत्याधुनिक उपकरण काम नहीं कर पायेगा।

इन तमाम यंत्रों को चालू करने के लिए ऐसे तमाम अंतरिक्ष अभियानों में ऊर्जा के प्रबंध किये जाते हैं। काफी समय से इसके लिए सौर ऊर्जा सेलों का प्रयोग किया जा रहा है, जो अंतरिक्ष में सूर्य की रोशनी से ऊर्जा हासिल कर उन्हें बिजली में बदल देते हैं। इसी बिजली से यंत्रों का संचालन जारी रहता है। यहां तक कि इन तमाम किस्म के यानों के साथ धरती पर स्थापित नियंत्रण कक्ष का संपर्क भी इसी सौर ऊर्जा के जरिए कायम रहता है।

कई बार जब ऐसे यान सूर्य की रोशनी से बाहर चले जाते हैं, तो यह संपर्क भी अस्थायी तौर पर टूट जाता है। ऐसा तब होता है जब ऐसा कोई यान किसी बड़े ग्रह के पीछे वाले हिस्से में चला जाता है, जहां उसे सूर्य की रोशनी लगातार नहीं मिलती है। दोबारा सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने पर फिर से इन यंत्रों को बिजली मिलने लगती है। वर्तमान में सौर ऊर्जा सेलों को उन्नत बनाने की दिशा में लगातार शोध चल रहा है।

इस दिशा में यह काम हुआ है कि अत्यंत पतला लेकिन अधिक उन्नत किस्म का सौर सेल विकसित किया जाए। इसी क्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के शोध दल ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। इसमें अत्यंत पतला सौर सेल बनाने की बात कही गयी है। उनका मानना है कि अंतरिक्ष में विकिरण से भी सौर ऊर्जा सेलों की बहुत नुकसान होता है। विकिरण के प्रभाव में आने की वजह से उनकी कार्यक्षमता घट जाती है।

जब अत्यंत पतले किस्म का सौर सेल विकसित होगा तो इससे भी काफी हद तक मुक्ति मिल जाएगी। इसमें इस बात का भी ध्यान दिया जाएगा कि वे कमसे कम बीस वर्षों तक एक ही गुणवत्ता के साथ सौर ऊर्जा प्रदान कर सकें। साथ ही आकार में इन सौर ऊर्जा सेलों के छोटा यानी पतला होने की वजह से यान का आकार भी छोटा किया जा सकेगा।

शोध दल ने इसके लिए कई यौगिकों पर प्रयोग करने के बाद गैलियम आर्सेनाइड पर शोध को आगे बढ़ाया है। इसमें चांदी की सतह वाले आइने को लगाया गया है जो अधिक रोशनी सोखने में सक्षम है। इसपर अंतरिक्ष के विकिरण जैसी जांच भी हुई है और यह देखा गया है कि इससे गुजरने के बाद भी उसकी गुणवत्ता यथावत रही है।

इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक आरमिन बारथेल ने कहा कि परिकल्पना के मुताबिक ही यह प्रयोग सफल रहा है और सौर सेलों को विकसित करने का काम प्रगति पर है। शोध दल का मानना है कि धरती के करीब संचालित होने वाले सैटेलाइटों पर इसके प्रयोग से उनकी गुणवत्ता और बेहतर होगी।

बाद में इसे और उन्नत बनाते हुए सुदूर ग्रहों के अभियान वाले यानों में भी लगाया जा सकेगा। इससे वैसे यान अधिक समय तक अपना काम कर सकेंगे, जो अंतरिक्ष विज्ञान के लिए फायदे की बात होगी। उनके दावे के मुताबिक यह सौर सेल वर्तमान में काम आने वाले सौर सेलों की मुकाबले साढ़े तीन गुणा अधिक पतला होगा और कमसे कम बीस वर्ष तक लगातार काम करता रहेगा। इससे अंतरिक्ष अभियानो की लागत भी कम करने में मदद मिलेगी।

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