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सिर्फ ईडी नहीं अन्य अदालतों को भी बताना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट के एक प्रश्न ने ईडी को निरूत्तर कर दिया। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के गिरफ्तारी के मामले में कोर्ट ने पैसों के बारे में पूछा, जांच एजेंसी के पास नहीं था कोई जवाब। दिल्ली की मंत्री और आम आदमी पार्टी नेता आतिशी ने आज स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई, जिसके बाद पार्टी नेता संजय सिंह को जमानत दी गई, ने कई मामलों में पार्टी के रुख को सही साबित कर दिया है।

प्राथमिक बात यह थी कि प्रवर्तन निदेशालय, जो पिछले दो वर्षों से कथित शराब घोटाले की जांच कर रहा है, कथित रिश्वत के पैसे का पता लगाने या उसका सुराग ढूंढने में असमर्थ रहा है – एक मुद्दा जिसे आप ने बार-बार उठाया है। दूसरा मामला गवाहों के साथ कथित ज़बरदस्ती का था, जिस पर भी आज की सुनवाई के दौरान परोक्ष रूप से चर्चा हुई।

केंद्रीय एजेंसी ने इस मामले में मुट्ठी भर नेताओं को गिरफ्तार किया है, जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो वर्तमान में तिहाड़ जेल में हैं, और भारत राष्ट्र समिति की के कविता शामिल हैं। श्री केजरीवाल के पूर्व डिप्टी मनीष सिसौदिया को पिछले साल फरवरी में गिरफ्तार किया गया था।

आतिशी ने संवाददाताओं से कहा, अदालत ने पूछा कि मनी ट्रेल कहां है। उस मनी ट्रेल की तलाश पिछले दो साल से चल रही है। आज जब अदालत ने पूछा तो प्रवर्तन निदेशालय के पास कोई जवाब नहीं था। श्री सिंह की जमानत आज तब हुई जब अदालत ने विशेष रूप से सवाल किया कि उन्हें मुकदमे के बिना या यहां तक कि कथित रिश्वत के पैसे की वसूली के बिना छह महीने से अधिक समय तक जेल में क्यों रखा गया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, दीपांकर दत्ता और प्रसन्ना की पीठ ने कहा, कुछ भी बरामद नहीं किया गया है… साउथ ग्रुप को शराब लाइसेंस आवंटित करने के लिए आप को कथित तौर पर रिश्वत के रूप में प्राप्त  100 करोड़ रुपये का कोई निशान नहीं है।

आतिशी ने कहा, दूसरे, आप नेताओं के खिलाफ गवाह तैयार किए गए। उन्होंने कहा, लोगों को डरा-धमकाकर उन्हें सरकारी गवाह बनाया गया। जब लोगों ने आप के खिलाफ कुछ नहीं कहा तो उन्हें तोड़ दिया गया और फिर अरविंद केजरीवाल और अन्य नेताओं के खिलाफ बयान दिए गए। उन्होंने कहा, आज पूरे देश को पता चल गया कि तथाकथित शराब घोटाला झूठे गवाहों के आधार पर खड़ा है।

शीर्ष अदालत ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि आरोपी से सरकारी गवाह बने दिल्ली के उद्योगपति दिनेश अरोड़ा ने वास्तव में अपने शुरुआती बयानों में संजय सिंह को नहीं फंसाया था। अदालत की यह टिप्पणी तब आई जब श्री सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने घोषणा की कि समय के साथ श्री अरोड़ा के बयानों में सुधार हुआ है। और फिर, दिनेश अरोड़ा का 10वां बयान सत्य बन जाता है।

गिरफ्तारी की तारीख पर बयान उनके द्वारा अविश्वसनीय दस्तावेजों में डाल दिया गया है। श्री सिंह को दिनेश अरोड़ा के बाद के बयान के बाद गिरफ्तार किया गया था कि उन्होंने आप  नेता से जुड़े एक व्यक्ति को 1 करोड़ रुपये दिए थे। श्री सिंघवी ने कहा कि ईडी ने श्री सिंह के संवाददाता सम्मेलन में उन पर हमला बोल दिया था। उन्होंने कहा, शायद मेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस मूर्खतापूर्ण थी, लेकिन आप एक स्वतंत्र देश में मूर्ख और मुखर हो सकते हैं।

अब यह सिर्फ ईडी ही नहीं दिल्ली की अन्य अदालतों की भी देश की जनता के प्रति जिम्मेदारी बनती है कि वह सुप्रीम कोर्ट का वही सवाल दोहराये। जनता को इस मामले में कोई सच्चाई नहीं दिख रही है क्योंकि ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं आया है, जिससे आरोपों की पुष्टि हो। ऊपर से सरकारी गवाह द्वारा भाजपा को चंदा देने की बात प्रमाणित है। ऐसे में सिर्फ किसी पीएमएमए कानून की धाराओं का उल्लेख कर अदालतें भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती।

उन्हें भी जांच एजेंसी से पूछना चाहिए कि आखिर पैसा कहां गया,  जिसके आरोप में लोग जेलों में बंद है। कम पढ़े लिखे लोगों को जो बात समझ में आ रही है, वही बात अदालतों को भी समझ में आना चाहिए कि मामले में वास्तविक सच्चाई अगर नहीं है तो इसके पीछे जनता के पैसों की बर्बादी को रोका जाए। इसी कतार में आम आदमी पार्टी के अन्य लोग भी जेलों में बंद हैं और सबूत के नाम पर कुछ भी ऐसा नहीं है जो जनता को विश्वसनीय लगे। उन अदालतों को भी न्यायिक सक्रियतावाद के इस दौर पर अपनी तरफ से पहल करनी चाहिए और जांच एजेंसियों से यह सवाल पूछना चाहिए। इन एजेंसियों को जनता की भलाई के लिए बनाया गया है और उनका संचालन भी जनता के पैसे से ही होता है।

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