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फोन पर जासूसी तो हर राज्य में होता आया है

  • जीएसएम इंटरसेप्टर की खरीद हुई थी

  • ऑडिट नहीं होता तो जांच भी नहीं होती

  • दो तरफा खेल में जुटे हैं कुछ बड़े अधिकारी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः अभी देश के चुनावी माहौल में फोन पर जासूसी का विवाद छिड़ गया है। यूं तो चुनाव के मौके पर हर मुद्दे पर विवाद का प्रारंभ होना आम बात है। इस बार फर्क सिर्फ यह है कि एप्पल जैसी कंपनी ने अपने आई फोन ग्राहकों को इसकी चेतावनी दी है। इसमें राज्य प्रायोजित जासूसी का उल्लेख करने की वजह से केंद्र सरकार परेशानी में है। इससे पहले भी केंद्र सरकार के इंकार के बाद भी यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत सरकार ने इजरायली स्पाईवेयर पेगासूस की खरीद की थी। वैसे यह स्पाईवेयर भारतीय सेना के पास नहीं है, यह पहले ही स्पष्ट हो चुका है।
जासूसी पर जारी इस बहस के बीच इस बात पर कोई खुलकर चर्चा नहीं करता कि सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी अपने विरोधियों का मोबाइल फोन सुनती है। दुर्भाग्य इस बात का है कि इस तकनीक की खरीद की स्वीकृति सिर्फ अपराध और नक्सली गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए दी गयी थी। कुछ दिनों तक इन्हीं दो कार्यों के लिए इनका इस्तेमाल होने के बाद धीरे धीरे यह अंततः राजनीतिक हथियार बन गया।

अब झारखंड की बात करें तो यहां भी इस किस्म की जासूसी के लिए जीएसएम इंटरसेप्टरों की खरीद हुई थी। अलग अलग कालखंड में कुल कितने ऐसे उपकरण खरीदे गये हैं, इसका कोई हिसाब नहीं है। वैसे ग्रामीण इलाकों के पत्रकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी नक्सली से उनकी बात चीत होने के बाद ही संबंधित थाना के अफसरों का फोन आता है।

इसके अलावा पूर्व में एक अधिकारी के निर्देश पर मुख्यमंत्री आवास के पास भी एक ऐसा केंद्र स्थापित किया गया था, जिसकी अनुमति भी नहीं थी। मामले को जमशेदपुर के विधायक सरयू राय ने उठाया था। बाद में यह मामला भी रद्दी की टोकरी में चला गया। अनेक अनुभवी राजनेता इस जासूसी को अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए उनमें से कुछ लोग अपने मोबाइल पर कम बात करते हैं और अपने साथ चलने वालों को मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी तरफ कुछ नेता कम समय के अंतराल में अपना मोबाइल भी बदल देते हैं। इससे साफ है कि राजनीति में सक्रिय लोगों को भी इस किस्म की जासूसी की जानकारी है। बावजूद इसके कोई भी नेता अथवा दल मजबूती से इस किस्म की तकनीक का दुरुपयोग रोकने पर सही तरीके से आवाज नहीं उठाता।

जासूसी के काम के लिए अधिकृत अधिकारी इस तकनीक का पूरा निजी लाभ झारखंड में भी उठा रहे हैं। वे एक नहीं सभी तरफ से मलाई खाने के लिए सरकारी पैसे से खरीदी गयी मशीनों से मिल रही जानकारी का चौतरफा उपयोग कर रहे हैं। सरकार में बैठे लोग उस माध्यम से मिली रही सूचनाओं से संतुष्ट हैं। दूसरी तरफ विरोधी नेताओं को भी इसी तकनीक से जानकारी देकर अपना संबंध बेहतर करने का कारोबार झारखंड में भी धड़ल्ले से चल रहा है।

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