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सिसोदिया की जमानत से भी तय होगी राजनीति

दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत पर अब सीबीआई को कोई और सीधा अभियोग पत्र दाखिल नहीं करना है। दरअसल हर बार अदालत में केंद्रीय एजेंसी यह दलील लेकर आ रही थी कि सिसोदिया ही इस पूरे गिरोह के सरगना हैं और उन्हें जमानत देने पर वह जांच में बाधा पहुंचा सकते हैं।

इन दलीलों के निरंतर जारी रहने के बाद सिसोदिया के वकील ने डिफ़ॉल्ट जमानत पर बहस करने के अपने अधिकार को सुरक्षित रखते हुए सिसोदिया के संबंध में जांच लंबित है या नहीं, यह सत्यापित करने के लिए उनके खिलाफ दायर पूरक चार्जशीट की एक प्रति मांगी जाने के बाद सीबीआई ने कहा कि सिसोदिया के खिलाफ उनकी जांच पूरी हो चुकी है।

दरअसल निचली अदालत का यह कानूनी मसला सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश से जुड़ा है जो हाल ही में आया है। सिसोदिया के वकील ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जहां शीर्ष अदालत ने कहा था कि किसी अभियुक्त के डिफ़ॉल्ट जमानत पाने के मौलिक अधिकार को जांच एजेंसियां पूरक आरोप पत्र दायर करके कम नहीं कर सकती हैं। जिन मामलों में जांच अभी पूरी नहीं हुई है।

वकील ने आगे तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि संघीय एजेंसी ने कहा है कि सिसोदिया के संबंध में जांच अभी लंबित है। अदालत के समक्ष यह भी बताया गया कि सीबीआई मामले में सिसोदिया की जमानत पर वर्तमान में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष बहस की जा रही है और उनके डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार के संबंध में तर्क भी उच्च न्यायालय के समक्ष उठाए जा सकते हैं।

जब अदालत ने मामले में जांच की स्थिति मांगी, तो एजेंसी ने कहा कि उसने मामले में मनीष सिसोदिया की भूमिका की जांच पूरी कर ली है। इससे पहले, सिसोदिया को पूरक आरोप पत्र की एक प्रति की आपूर्ति की अनुमति देते हुए, अदालत ने उनकी न्यायिक हिरासत 12 मई तक बढ़ा दी थी।

सीबीआई ने 25 अप्रैल को मामले में पहला पूरक आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को मामले में आरोपी बनाया गया था। सिसोदिया की ओर से पेश वकील ऋषिकेश ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि अगर सिसोदिया के संबंध में जांच पूरी नहीं हुई है और उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है तो उन्हें मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत मिल जाएगी।

सिसोदिया को इस मामले में सीबीआई ने 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था। इसी मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में उन्हें नौ मार्च को प्रवर्तन निदेशालय ने भी गिरफ्तार किया था। सिसोदिया फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद हैं। इस बीच, गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में सिसोदिया की जमानत याचिका का विरोध करते हुए, सीबीआई ने तर्क दिया कि गवाहों ने स्पष्ट रूप से शराब नीति में हेरफेर करने में उनकी भूमिका की पुष्टि की है।

सीबीआई ने न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा से कहा, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट से विचलित करने के लिए उनके (सिसोदिया के) इशारे पर नकली सार्वजनिक स्वीकृति तैयार की गई थी। सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने एक गवाह के बयान का हवाला देते हुए अदालत को बताया कि अब रद्द की जा चुकी आबकारी नीति की व्यवहार्यता की जांच के लिए पूर्व आबकारी आयुक्त रवि धवन की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है।

हालाँकि, चूंकि सुझाव अभियुक्तों के अनुकूल नहीं थे, सिसोदिया ने रिपोर्ट को मंजूरी नहीं दी। दिल्ली सरकार की 2021-22 की आबकारी नीति का उद्देश्य शहर के गिरते शराब कारोबार को पुनर्जीवित करना है। इसका उद्देश्य बिक्री-मात्रा आधारित शासन को व्यापारियों के लिए लाइसेंस शुल्क के साथ बदलना था, और कुख्यात धातु ग्रिल्स से मुक्त शानदार स्टोरों का वादा किया, अंततः ग्राहकों को एक बेहतर खरीदारी अनुभव प्रदान किया।

इस नीति में दिल्ली में पहली बार शराब की खरीद पर छूट और ऑफर भी पेश किए गए। हालाँकि, योजना अचानक समाप्त हो गई, जब दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर विनय कुमार सक्सेना ने शासन में कथित अनियमितताओं की जांच की सिफारिश की। दूसरी तरफ इसी नीति से पंजाब ने अपना राजस्व लगभग दोगुणा कर लिया।

इसलिए सीबीआई के दावों के बाद भी वाकई मनीष सिसोदिया इस घोटाले में रहे हैं अथवा सच में कोई घोटाला हुआ है, यह बात अब तक समझ में नहीं आयी है। यह तय है कि अगर मनीष सिसोदिया को जमानत मिल जाती है तो मोदी सरकार को नये सिरे से आम आदमी पार्टी के हमलों को झेलना पड़ेगा। ऐसा तब होगा जबकि शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में सबसे नई राष्ट्रीय पार्टी ने सभी दलों को जनता के सवालों के सामने खड़ा कर दिया है। इन सवालों से खास तौर पर भाजपा परेशान है, इस बात से अब इंकार भी नहीं किया जा सकता है।

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