वक्त वक्त की बात है और पुरानी कहावत है कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव। इलेक्शन का टैम करीब आने से कुछ ऐसा ही सीन बार बार बनने लगता है। कब वक्त पलट जाए कुछ पता ही नहीं चलता है। किसी ने सोचा था कि जिसे वाकई काफी पैसा खर्च कर नेता से पप्पू बना दिया गया था, वह इतनी लंबी दूरी तक पैदल चल जाएगा।
जी हां मैं राहुल गांधी की बात कर रहा हूं। भाई साहब लगता है अंदर से वाकई बहुत जिद्दी हैं। कन्याकुमारी से निकले तो कश्मीर के श्रीनगर तक चले ही गये। इस एक बात ने वक्त को बदलने की शायद नींव रख दी थी। उसके बाद सब कुछ नार्मल ही चल रहा था कि अचानक हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आ गयी और बवाल हो गया। अडाणी का साम्राज्य डूबने जैसी नौबत आ गयी। खैर जैसे तैसे मामला शेयर बाजार में संभला तो संसद में भूचाल आ गया।
राहुल गांधी ने वक्त को याद करते हुए वही पुरानी बात दोहरा दी, जो वह रघुराम राजन के साथ की बात चीत में कर रहे थे। वक्त ऐसा कुछ उल्टा था कि उन्होंने संसद में भी अडाणी और मोदी के बारे में पूछ लिया और बवाल हो गया। उसके बाद से एक दिन भी सही तरीके से संसद नहीं चल पाया और ब्रिटेन में जाकर इन्हीं बातों को बोल आये। अब भाजपा वाले उनसे माफी मांग रहे हैं तो विपक्ष अडाणी प्रकरण में संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रहा है।
वक्त वक्त की बात है कि मामला ऐसा उलझ गया है कि सारे विपक्ष ही इस वक्त एकजुट होता नजर आ रहा है। मामला फंस क्यों रहा है, उसे समझने के लिए वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालना पड़ेगा। वह लोकसभा चुनाव सात चरणों में 11 अप्रैल से 19 मई तक हुआ था। उसके परिणाम 23 मई को घोषित किये गये, जिसमें करीब 91 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान किया था। औसत मतदान 67 प्रतिशत का था।
उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटें और राजग को कुल 353 सीटें मिली थी। नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत से जीतने वाला नेता माना गया। लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो पूरे चुनाव में भाजपा को सिर्फ 37.36 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरी तरफ कांग्रेस को सिर्फ 52 सीटें मिली और वह विपक्ष के नेता का पद हासिल करने से चूक गयी क्योंकि उसे कुल सीटों के दस प्रतिशत पर सफलता नहीं मिली थी। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए को 91 तथा अन्य दलों को 98 सीटें मिली।
अब राहुल गांधी के मुद्दे पर एकजुट होते विपक्ष से भाजपा का टेंशन बढ़ना वक्त की ही बात है। वक्त ने पलटी मारा तो अब लोग मोदी की डिग्री पर सवाल उठाने लगे हैं और देश की सबसे नई आम आदमी पार्टी ने तो एलान कर दिया है कि अगर चुनावी शपथपत्र में मोदी की डिग्री गलत पायी गयी तो उनकी सदस्यता जा सकती है। राहुल गांधी की सदस्यता सिर्फ एक मानहानि के मामले में तुरंत चले जाने के बाद यह मामला फंस गया है। यह भी वक्त की बात है कि जिस पर कोई सवाल नहीं उठाता था, वह खुद आज एक नहीं अनेक सवालों के घिरा हुआ है।
इसी बात पर पुरानी फिल्म कागज के फूल का एक गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था कैफी आजमी ने और संगीत में ढाला था एसडी वर्मन ने। इसे स्वर दिया था गीता दत्त ने। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
वक़्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे न तुम हम रहे न हम 2
वक़्त ने किया
बेक़रार दिल इस तरह मिले जिस तरह कभी हम जुदा न थे 2
तुम भी खो गए हम भी खो गए एक राह पर चल के दो क़दम 2
वक़्त ने किया
जाएंगे कहाँ सूझता नहीं चल पड़े मगर रास्ता नहीं 2
क्या तलाश है कुछ पता नहीं बुन रहे हैं दिल ख़्वाब दम-ब-दम
वक़्त ने किया क्या हसीं सितम
वक़्त ने किया तुम रहे न तुम हम रहे न हम
वक़्त ने किया
इसलिए वक्त की पहचान सही तरीके से करने वाले को ही सफल नेता कहा गया है, यह बात फिर से साबित हो रही है। लेकिन अपोजिशन के ताल ठोंकने के बाद भी असली सवाल जस का तस खड़ा है कि मोदी के खिलाफ कौन। विपक्ष अभी एकजुट है, यह वक्त की बात है लेकिन वहां तो एक अनार सौ बीमार वाली हालत पहले से ही है।
जनता को साफ दिख रहा है कि कौन क्या कर रहा है। चलते चलते अपने झारखंड की भी बात कर लें। वक्त यहां भी बदलता दिख रहा है क्योंकि कई लोगों के तेवर भी बदल रहे हैं। चुनाव करीब आने की वजह से ऐसा होना लाजिमी है। ईडी और सीबीआई की जाल में दोनों तरफ से लोग फंसे हैं। भला हो सरयू राय का, जिन्होंने अपने बलबूते पर कई खंभों को टिका और फंसा भी रखा है।