अदालतमुख्य समाचारराजनीतिसंपादकीय

राहुल के सूरत जाने के मायने

कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो सूरत के सेशंस कोर्ट ने जमानत देते हुए उनकी सजा पर फिलहाल रोक लगा दी है। कागजी तौर पर देखने से इसका कोई खास फर्क नजर नहीं आता है क्योंकि निचली अदालत ने दो साल की सजा सुनाने के बाद ही एक महीने की जमानत के साथ साथ उस अवधि तक सजा पर रोक लगा दी थी।

लेकिन इस कानूनी प्रक्रिया के पीछे की राजनीतिक चाल को समझने की जरूरत है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मानहानि के एक मामले में अपनी सजा के खिलाफ सोमवार को सूरत की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि संसद के सदस्य के रूप में उनकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए सजा के निर्धारण के चरण में उनके साथ कठोर व्यवहार किया गया और अधिकतम सजा के कारण उन्हें अत्यधिक क्षति हुई है।

अपनी दो साल की सजा के खिलाफ सूरत जिला और सत्र अदालत के समक्ष अपनी अपील में, गांधी ने यह भी कहा कि यह तर्क देना उचित लगता है कि उन्हें दी गई अधिकतम सजा अयोग्यता के आदेश को आकर्षित करने के लिए (एक सांसद के रूप में) थी।

अपील में कहा गया है कि अत्यधिक सजा न केवल इस विषय पर कानून के विपरीत है, बल्कि वर्तमान मामले में अनुचित भी है, जो राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है। दोषसिद्धि को त्रुटिपूर्ण करार देते हुए, अपील में कहा गया है कि जिस सामग्री पर यह आधारित है वह कानून के अनुसार साबित नहीं हुई है।

गांधी की अपील का तर्क है कि एक निर्वाचित प्रतिनिधि की अयोग्यता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में मतदाताओं की पसंद के साथ अनिवार्य रूप से हस्तक्षेप करती है और यह उपचुनाव राज्य के खजाने पर भारी बोझ पैदा करेगा। अपनी अपील में, सजा और जमानत के निलंबन की मांग करते हुए, गांधी ने कहा कि दो साल के साधारण कारावास की सजा इस तथ्य के मद्देनजर बहुत कठोर है कि निचली अदालत ने क्यों सारे चोरों का सरनेम मोदी है।

अपील के लिए बताए गए आधारों में, उनके आवेदन में कहा गया है कि शिकायतकर्ता/प्रतिवादी पूर्णेश मोदी अपराध से पीड़ित व्यक्ति नहीं हैं और उन्हें शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है और यह कि सीआरपीसी की धारा 202 के तहत अनिवार्य जांच पहले की जानी है। अभियुक्तों को समन जारी किया जाता है अदालत के अधिकार क्षेत्र के बाहर आयोजित नहीं किया जाता है।

लेकिन राजनीतिक तौर पर देखें तो यह दरअसल गुजरात में मोदी को मोदी मॉडल को चुनौती देने की चाल है। राहुल गांधी इतनी जल्दी इस मुद्दे को खत्म होने देना नहीं चाहते हैं। जिस गुजरात के भरोसे नरेंद्र मोदी ने खुद को राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया है, उसी छवि को इस एक सेशंस कोर्ट में चुनौती से नकारा गया है।

दरअसल राहुल गांधी शायद इसी माध्यम से यह भी साबित करना चाह रहे हैं कि गुजरात के मोदी मॉडल की असलियत क्या है और वह इसके जरिए ही गुजरात कांग्रेस को भी पुनर्जीवित करने की चाल चल चुके हैं। इतना तो साफ हो चुका है कि राहुल गांधी के अडाणी और मोदी के संबंध में लोकसभा में पूछे गये सवालों ने भाजपा को बेचैन कर रखा है।

तमाम भाजपा नेता सारे मुद्दों पर बोलने के बाद भी इन सीधे सवालों का सीधा उत्तर नहीं दे पाये हैं। सूरत की अदालत में आये फैसले पर ओबीसी का अपमान करने से भाजपा नेताओं को परहेज नहीं है लेकिन अडाणी और मोदी के संबंधों पर वे बोलने से भाग रहे हैं। दरअसल इसके जरिए शायद राहुल गांधी गुजरात की जनता को भी वह संदेश देना चाहते हैं, जिस पर पहले कभी चर्चा नहीं हुई थी।

तेजी से करवट लेती भारतीय राजनीति में यह एक ऐसा मोड़ है, जिसने अपने आप ही विपक्ष को एक स्वर में इसका विरोध करने को प्रेरित कर दिया है। राजनीति में नेताओँ की बॉडी लैग्वेज का भी मायने होता है और भाजपा के दोनों बड़े नेता यानी मोदी और अमित शाह का बॉडी लैग्वेज यह दर्शाता है कि इस एक घटना ने उन्हें अंदर से हिला दिया है।

सरकारी कार्यक्रमों में भी राजनीतिक विरोधियों की आलोचना बार बार करना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले ही मोर्चाबंदी में यह नया मोड़ है, जिसके बारे में पहले कल्पना नहीं की गयी थी। वैसे इस पर सवाल उठ सकता है कि राहुल गांधी के विधि विशेषज्ञों ने सूरत की अदालत में ही इस फैसले को चुनौती देना क्यों स्वीकार किया जबकि वे सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते थे।

इस विषय पर यह गौर करना होगा कि इन ऊपरी अदालतों का दरवाजा अपने लिए खुला रखने के पहले पूरे देश को यह दर्शाया जा रहा है कि दरअसल मोदी मॉडल के गुजरात में न्याय व्यवस्था की क्या हालत हो गयी है। कुल मिलाकर यह अब एक न्यायिक विषय होने के बाद भी चुनावी राजनीति से जुड़ा हुआ प्रासंगिक विषय बन गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button