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अडाणी पर उठे सवालों का उत्तर आना जरूरी है

अडाणी समूह में एक रिपोर्ट की वजह से भूचाल आ गया। अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने अडाणी समूह को लेकर ऐसी रिपोर्ट जारी की, जिसने कोहराम मचा दिया है। सड़क से लेकर संसद कर इस मामले पर हंगामा हो रहा है।अडाणी समूह के चेयरमैन गौतम अडाणी की निजी संपत्ति 10 दिन में 127 अरब डॉलर से गिरकर 59 अरब डॉलर पर पहुंच चुकी है।

रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सिर्फ तीन घंटों में निवेशकों को 59,844 करोड़ का नुकसान हुआ है। 24 जनवरी से लेकर अब तक कंपनी के को 11.17 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पीएम गरीब कल्याणा अन्न योजना के लिए 2 लाख करोड़ का बजट निर्धारित किया है।

यानी 2 लाख रुपये के खर्च से सरकार देश की 80 करोड़ आबादी को हर महीने मुफ्त राशन उपलब्ध करवाएगी। इसका दूसरा अर्थ यह है कि यानी अडाणी समूह जनवरी से अब तक इस मुफ्त राशन योजना के कुल बजट से पांच गुना अधिक गंवा चुका है। दूसरे शब्दों में कहें तो अडाणी पिछले 10 दिनों में जितना गंवा चुके है, उतने में 5 साल तक देश की 80 करोड़ जनसंख्या मुफ्त में राशन पा सकती है।

2023 में रेल बजट के लिए 2.4 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया गया है। यानी इस बजट से तुलना करें तो अडाणी रेल बजट से भी पांच गुना अधिक गंवा चुके है। इतना ही नहीं अगर कृषि, हेल्थ, स्वास्थ्य, शिक्षा के बजट को भी जोड़ दें तो भी अडाणी के नुकसान के बराबर नहीं होगी। इतना ही नहीं रक्षा बजट से दो गुना गंवा चुके अडाणी ।

एक रिपोर्ट ने कितना हाहाकार मचाया है, इसका अंदाजा आप इन आंकड़ों से लगा सकते हैं। अडाणी ने पिछले 10 दिनों में जितना गंवाया भारत के कुल बजट (45.03 लाख करोड़) से एक चौथाई गंवा चुके हैं। अब दोबारा हिंडबनर्ग ने खुलासा किया है कि एक और बड़ी रिपोर्ट  जल्द ही एक बड़ी रिपोर्ट आ रही है।

कंपनी का दावा है कि वो खास तौर पर अकाउंटिंग में गड़बड़ियां, अवैध तरीके या फिर अनैतिक तरीके से व्यापार करने वाली कंपनियों को सामने लाती है। हिंडनबर्ग रिसर्च की वेबसाइट की मुताबिक दशकों से कंपनी फोरेंसिक वित्तीय रिसर्च में की फील्ड में काम कर रही है। अदाणी समूह कोई पहला नहीं है जिसपर अमेरिकी फर्म ने रिपोर्ट जारी की है।

इससे पहले इसने अमेरिका, कनाडा और चीन की करीब 18 कंपनियों को लेकर अलग अलग रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके बाद काफी घमसान मचा। ज्यादातर कंपनियां अमेरिका की ही थीं, जिनपर अलग-अलग आरोप लगे। हिंडनबर्ग की सबसे चर्चित रिपोर्ट अमेरिका की ऑटो सेक्टर की बड़ी कंपनी निकोला को लेकर रही।

इस रिपोर्ट के बाद निकोला के शेयर 80 फीसदी तक टूट गए थे। निकोला को लेकर जारी रिपोर्ट में व्हिसलब्लोअर और पूर्व कर्मचारियों की मदद से कथित फर्जीवाड़े को उजागर किया गया था। देश के संसद में इस मुद्दे पर जारी हंगाम के बीच उन विदेशी कंपनियों के नाम भी आ गये हैं जो टैक्स चोरी की छूट देने वाले देशों में स्थापित है।

कई माध्यमों से यह पता चला है कि इन कंपनियों के जरिए गौतम अडाणी के बड़े भाई विनोद अडाणी ने अडाणी समूह में काफी अधिक पैसा विदेश से यहां भेजा है। आम तौर पर इस किस्म के विदेशी कंपनियों को शेल कंपनी कहा जाता है, जिनका उपयोग सिर्फ अवैध धन के लेन देन के लिए किया जाता है।

संसद में और सदन के बाहर भी इस पर न सिर्फ सवाल उठ चुका है बल्कि उन कंपनियों के नाम भी सामने आ चुके हैं। अडाणी समूह और सरकार इस किस्म की गड़बड़ियों से इंकार तो कर रही है लेकिन घटनाक्रम इस इंकार को समर्थन नहीं कर रहे हैं। अब सरकार के इंकार और सदन के घटनाक्रमों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के जरिए ही सच सामने आयेगा।

सरकार इस मामले की जांच के लिए जेपीसी के गठन से इंकार कर चुकी है। दरअसल यह इंकार भी उसी संदेह को पुख्ता करता है, जिसमें यह कहा जा रहा है कि दस्तावेजों में गड़बड़ी के प्रमाण मौजूद हैं। जेपीसी की जांच होने पर इन सारे दस्तावेजों को जांच समिति के समक्ष रखना पड़ सकता है।

इसलिए लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच यह मुद्दा कितना कारगर होगा, यह देखने वाली बात होगी। वैसे आम जनता के जेहन में यह सवाल तो है कि वह कौन सा व्यापार फार्मूला है, जिसे आजमाकर गौतम अडाणी इतनी जल्दी इतना अधिक कामयाब हो गये हैं। सरकार की मेहरबानी या उससे भी आगे कुछ है तो यह आज नहीं तो कल जनता के सामने आ ही जाएगा। जिस तरह पेगासूस मामले में भी सरकार के इंकार के बाद भी यह स्पष्ट हो गया कि सरकार के किसी एजेंसी ने जनता की निजता को भंग किया है।

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