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बड़ी संख्या में संचिकाओं के लंबित होने की शिकायत
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निर्णय लेने में देर की वजह से सरकार पर सवाल
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जरूरी मामलों मेंमिलने के लिए करना पड़ता है इंतजार
दीपक नौरंगी
पटना : नीतीश सरकार अपराध नियंत्रण के लिए जानी जाती थी। पर अब हालात ऐसे हैं कि डीजीपी के रूप में 19 दिसंबर को आरएस भट्टी के योगदान करने के बाद सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। डीजीपी की कार्यशैली को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
बड़े मामलों में एडीजी स्तर के अधिकारी को डीजीपी से वार्तालाप करने के बाद निर्णय लेना पड़ता है। फिर भी एडीजी स्तर के अधिकारियों को डीजीपी के कार्यालय के बाहर घंटों करना पड़ रहा है इंतजार, कई बड़े एडीजी स्तर के पुलिस पदाधिकारी भले ही वे खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हो पर अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं।
क्योंकि कुछ एडीजी रैंक के अधिकारी डीजीपी से बहुत ज्यादा जूनियर रही है कुछ चार सालों का अंतर हो सकता है ऐसी स्थिति में एडीजी स्तर के पुलिस पदाधिकारी को आत्म सम्मान में ठेस पहुंचती है मालूम हो कि 19 दिसंबर को बिहार के डीजीपी के रूप में आरएस भट्टी ने योगदान किया।
भट्टी के योगदान करने के तुरंत बाद लोगों में उम्मीद जगी थी कि अपराध नियंत्रित हो जाएगा और अवैध शराब बेचने वाले चूहे बनकर बिल में घुस जाएंगे। पर दोनों में से ऐसा कुछ नहीं हुआ। जहरीली शराब की दो घटनाएं हुई। इसमें भी पुलिस कुछ खास नहीं कर पाई।दो बैंक लूट की घटनाएं हुई।
दोनों मामले में पुलिस मौन है। यह जग जाहिर है कि आरएस भट्टी की छवि ईमानदार व्यक्ति की रही है पर उनके कार्यशैली की प्रशंसा पुलिस मुख्यालय में बैठे अधिकारी नहीं कर रहे हैं। जाहिर है कुछ तो कारण होगा।
एक कारण तो उभर कर सामने आया है वह यह है कि अब एडीजी स्तर के अधिकारी भी डीजीपी से तभी मिल पाएंगे जब डीजीपी उन्हें मिलने की अनुमति देंगे।ऐसी स्थिति में डीजीपी से मिलने के लिए एडीजी के स्तर के अधिकारियों को भी उनके चैंबर के बाहर घंटों इंतजार करना पड़ता है। ऐसा करना उन्हें नागावार लग रहा है।
कनीय अधिकारी उनका मजाक भी उड़ाते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन दिनों समाधान यात्रा पर जाने की तैयारी कर रखी है। शनिवार को वे समाधान यात्रा के तहत खगड़िया पहुंचे थे। मुख्यमंत्री के समाधान यात्रा को बीच में क्यों छोड़ दिए थे बीच में कुछ दिन मुख्यमंत्री के समाधान यात्रा में डीजीपी का नहीं जाना आईएएस और आईपीएस के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में डीजीपी की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे, लेकिन अब डीजीपी ने मुख्यमंत्री के नीतीश कुमार के समाधान यात्रा में फिर से जाने का अपना निर्णय ले लिया है।
संभवत: यह पूरे बिहार में चौदहवीं यात्रा है। हर यात्रा में उनके साथ डीजीपी अनिवार्य रूप से रहते थे। क्योंकि यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री को सबसेअधिक पुलिस के समस्याओं से ही रूबरू होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री को गंभीरता पूर्वक उठ रहे सवालों का अध्यन करना होगा और जवाब भी तलाशना होगा।
पुलिस मुख्यालय में जो कुछ भी हो रहा है उसकी जानकारी मुख्यमंत्री जी को भी जरूर होगी पर उसमें सुधार होता नहीं दिख रहा। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि पहले अपनी बात रखने बेझिझक डीजीपी के चैंबर में घुस जाने वाले अधिकारी अब उस तरफ कदम बढ़ाना नहीं चाहते।