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खून के अंदर मौजूद होता है ऑक्सीजन
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उसका हिमोग्लोबिन इंसान से अलग होता है
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लाल रक्त कण ही ऑक्सीजन लेकर चलते हैं
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पानी के अंदर मगरमच्छ एक अत्यंत खतरनाक प्राणी है। दरअसल किसी भी किस्म के पानी में उसे अपने शिकार की तरफ आते हुए देख पाना कठिन होता है। उसकी शरीर की बनावट ही कुछ ऐसा ही कै पानी के अंदर साफ देख पाने की वजह से वह तेजी से अपने शिकार की तरफ बढ़ता है।
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उनके दांत भी अत्यंत घातक होते हैं। इसलिए उनके जबड़े में फंसे किसी प्राणी का निकल पाना लगभग असंभव होता है। पूर्व के वैज्ञानिक परीक्षणों में यह पता चल गया है कि यह प्राणी पानी के अंदर पचास मील प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकता है।
इसके अलावा शिकार के वक्त यह एक ही झटके में तीस फीट की दूरी तय कर लेता है। शिकार को पकड़ लेने के बाद वह अपने दांतों से उस पर पांच हजार पौंड का दबाव डालता है।
लेकिन वह आम तौर पर धूप में निकलकर गर्मी हासिल करता रहता है। इसी वजह से यह सवाल पैदा हुआ था कि इतनी देर तक सूर्य की गर्मी सेंकने वाला यह प्राणी पानी के अंदर इतनी देरी तक कैसे बना रहता है। प्रारंभिक परीक्षण में उसके खून की कुछ विशेषताओं का पता तो चल गया था।
अब शोध की गाड़ी आगे बढ़ी है तो पता चला है कि मगरमच्छ के खून में खास किस्म के हिमोग्लोबिन होता है। जो पानी के अंदर बहुत छोटे आकार के स्कूबा टैंकों की तरह काम करता है। स्कूबा टैंक दरअसल समुद्र में अधिक गहराई तक गोता लगाने वाले इंसानों का उपकरण है।
इसमें अधिक दबाव का ऑक्सीजन भरा होता है। इस टैंक का संपर्क गहराई में जाने वाले इंसान को निरंतर ऑक्सीजन पहुंचाने का होता है। मगरमच्छ के शरीर के खून में प्राकृतिक तौर पर यही गुण मौजूद होता है। इस किस्म के अन्य प्राणियों में यह गुण नहीं होता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ नेवेस्का के शोध दल ने इस पर काम किया है। दरअसल वैज्ञानिकों ने इसके पहले एक 240 मिलियन वर्ष पुराने मगरमच्छ के फॉसिल के आधार पर उसकी आंतरिक संरचनाओं का विश्लेषण किया था। बाद में पाया गया कि इस प्रजाति के हिमोग्लोबिन में एक दूसरे से संपर्क रखने वाले 21 बदलाव हुआ हैं।
इसी वजह से उसके शरीर में मौजूद लाल रक्त कणों में यह स्कूबा टैंक वाला गुण पैदा हो पाया है। इस बारे में विश्वविद्यालय के प्रोफसर विला कैथर ने कहा कि क्रमिक विकास के क्रम में ऐसा क्यों हुआ है, इसे समझना अभी शेष है।
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लेकिन यह तय है कि पानी के अंदर काफी लंबे समय तक रहने के दौरान मगरमच्छ को अपने खून के अंदर मौजूद ऑक्सीजन से ही मदद मिलती रहती है। इस वजह से वह बिना ऊपर आये भी सांस लेता रहता है। अनुभवी लोग पानी के अंदर से निकलते छोटे छोटे बुलबुलों से ही नीचे मगरमच्छ होने का पता लगा लेते हैं।
इस बात को समझने के लिए इसी शोध दल के वैज्ञानिक चंद्रशेखर नटराजन, टोनी सिग्नोर और नेम बाउटिस्टा ने इंसानी खून और मगरमच्छ के खून में मौजूद हिमोग्लोबिन के अंतर को भी समझा है। जांच में पाया गया कि दोनों में काफी अंतर है।
फिर मगरमच्छ के हिमोग्लोबिन की गहन जांच से उसमें मौजूद इस गुण का पता चला। जिसकी वजह से खून में मौजूद लाल रक्त कण ही अपने साथ ऑक्सीजन लेकर चलते हैं और आवश्यकता के मुताबिक मगरमच्छ के शरीर के बाहरी कोष तक इसे पहुंचाते हैं।
इसलिए वह काफी लंबे समय तक बिना बाहर निकले भी पानी के अंदर रह पाता है। इस एक गुण की वजह से मगरमच्छ के शरीर में जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं और उसे सांस लेने के लिए बाहर आने की कम आवश्यकता पड़ती है।
अब इसका पता चल जाने के बाद शोध दल इसके जेनेटिक विश्लेषण के काम में जुटा हुआ है ताकि पानी के अंदर अधिक समय तक रहने के काम आने वाले जेनेटिक गुणों तक का पता चल सके। शोध दल मानता है कि इन बदलावों को इंसानी शरीर में लाने के बाद इंसानी भी बड़ी आसानी से करीब दो घंटे तक पानी के अंदर रह पायेगा।