उत्तराखंडधार्मिक

तो क्या विकास की भेंट चढ़ रहा है चार धाम यात्रा का एक केंद्र स्थल

लोग एनटीपीसी परियोजना को जिम्मेदार मानते हैं

  • मुख्यमंत्री ने तीन पत्रों पर ध्यान नहीं दिया

  • अब रहने के लायक नहीं रहा है यह इलाका

  • दो अन्य शहरों पर भी मंडरा रहा है खतरा

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः चार धाम यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव के तौर पर चर्चित जोशीमठ की उम्र शायद अब महज कुछ दिनों की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह पूरा इलाका नीचे धंसता जा रहा है और कभी भी वहां बहुत बड़े स्तर पर भूस्खलन भी हो सकता है। इसी क्रम में यह जानकारी बाहर आयी है कि वहा के स्थानीय नागरिकों ने इस बारे में पिछले कई महीनों में मुख्यमंत्री को लगातार तीन आवेदन पत्र भेजा था। इसमे कहा गया था कि एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना में हो रहे विस्फोट की वजह से जमीन टूट रही है। लेकिन उनके इन पत्रों पर उस वक्त कोई ध्यान नहीं दिया गया था।

जोशीमठ एक सुंदर शहर होने के अलावा धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। सालों भर यहां पर्यटक आते ही रहते थे। इस शहर के कुछ किलोमीटर की दूरी पर एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना का काम चल रहा है। इस परियोजना के लिए कई स्तरों पर पहाड़ों को तोड़ा भी जा रहा है। अनेक इलाकों में पहाड़ों के अंदर सुरंग भी बनाये जा रहे हैं।

स्थानीय नागरिकों की शिकायत है कि इस परियोजना में विस्फोट का काम प्रारंभ होने के बाद से ही परेशानी बढ़ने लगी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को तीन पत्र भेजे गये थे। लोगों की शिकायत है कि विस्फोट की वजह से पूरा इलाका थरथर कांपने लगता था और घरों में दरारों का नजर आना उसी समय से प्रारंभ हो गया था। इसलिए वे अपने शहर के तबाही के लिए इस विकास परियोजना को ही जिम्मेदार मानते हैं।

दूसरी तरफ आरोप लगने के बाद एनटीपीसी की तरफ से यह सफाई दी गयी है कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है। अब विवाद बढ़ने के बाद पहली बार चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने स्वीकार किया कि स्थानीय नागरिकों ने मुख्यमंत्री को इस बारे में पत्र लिखे थे।

अब राष्ट्रीय स्तर पर विवाद होने के बाद एनटीपीसी ने सफाई दी है कि शहर के नीचे उनकी तरफ से कोई सुरंग नहीं खोदा गया है। बता दें कि भगवान बदरीनाथ का एक स्थान यह जोशी मठ भी है। ठंड के मौसम में जब बदरीनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं तो भगवान को यहां लाया जाता है। जोशीमठ से ही सिक्खों के तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब जाने का रास्ता है।

अब जो स्थिति है उसके मुताबिक यह शहर जिस गति से धंसता जा रहा है, उसका रूकना अब शायद संभव नहीं होगा। उल्टे किसी भी क्षण वहां बड़े पैमाने पर भूस्खलन भी हो सकता है। इसलिए लोगों को जितनी जल्दी हो सके, वहां से हटाया जा रहा है।

इस बीच पर्यावरण वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस कतार में जोशीमठ अकेला नहीं है। इसी तरह की स्थिति और खतरा कई अन्य शहरों पर भी मंडरा रहा है। नैनिताल और उत्तरकाशी में भी कभी भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है। दरअसल इन सभी स्थानों की नींव कमजोर है।

प्राचीन काल में हुए किसी बड़े भूस्खलन के बाद यह इलाके बने थे। इसलिए उनकी नींव अपेक्षाकृत नई है और अधिक दबाव नहीं झेल सकती। लगातार विकास के प्रयोगों की वजह से इन इलाकों की जमीन पर जो दबाव बढ़ गया है वह कभी भी किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकता है।

सतर्कता के तौर पर जोशीमठ के कई इलाकों को खाली करा दिया गया है और वहां के लोगों को अन्यत्र ले जाया गया है। वैज्ञानिक आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड सहित हिमाचल के अधिकांश अंचल धीरे धीरे धंस रहे हैं। उत्तराखंड के नीचे ही एक फॉल्ट लाइन है यानी गहराई में बड़ी दरार है। इस कारण वहां ऐसी उथल पुथल स्वाभाविक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button