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हर साल चार हजार बच्चे ग्रस्त होते हैं
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लीवर का स्वाभाविक विकास करता है
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कई अन्य बीमारियों में मददगार होगा
वाशिंगटनः अमेरिकी जेनेटिक वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है। इसके जरिए एक दवा की भी पहचान की गयी है। इसका फायदा यह होगा कि लीवर की एक लाईलाज बीमारी का अब सिर्फ एक दवा से ही ईलाज हो सकेगा। इसके दूसरे भी कई फायदे कैंसर अथवा दूसरी बीमारियों में हो सकते हैं लेकिन अब तक उन पर बड़े पैमान पर शोध नहीं हुआ है।
सिर्फ यह पता चला है कि यह विधि कारगर होने के बाद अनेक ऐसे रोगियों को लीवर प्रत्यारोपण की परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी, जो इस लाईलाज समझी गयी बीमारी से ग्रस्त हैं। इस बीमारी को एलाजिले सिंड्रोम कहा जाता है। इसकी वजह से बच्चो में लीवर का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता था।
अनुमान है कि दुनिया में हर साल चार हजार ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चे जन्म लेते हैं। इनमें से अधिकांश के लिए लीवर ट्रांसप्लांट कराना संभव नहीं होगा। इस बीमारी में 75 प्रतिशत बच्चे अंततः मर जाते हैं। अब यह समस्या स्थायी तौर पर दूर होने वाली है।
नेशनल एकाडेमी ऑफ साइंस की पहल पर स्टैनफोर्ड बर्नहैम प्रेबी ग्रेजुएट स्कल के एसोसियेट डीन डॉ डूक डोंग ने अपने दल के साथ मिलकर इस पर काम किया है। इस दवा का प्रारंभिक परीक्षण सफल होने के बाद अब उसका क्लीनिकल ट्रायल प्रारंभ किया जा रहा है ताकि अधिकाधिक लोगों में इसके इस्तेमाल के गुण दोष का पता चल सके।
इस ट्रायल में सफल होने के बाद क्लीनिकल ट्रायल के दो और चरण होंगे। उनमें भी इसे सफलता मिलने पर इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में प्रारंभ किया जा सकेगा। इस बीमारी को दरअसल जेनेटिक माना गया है। जीन में अप्रत्याशित बदलाव होने की वजह से लीवर में कई कमियां रह जाती हैं।
ऐसी बीमारी से पीड़ित हर बच्चे के लिए लीवर पाना भी संभव नहीं है।इसलिए इससे मरने वालों की संख्या अधिक है। डॉ डोंग और उनकी टीम ने इस एलाजिले सिंड्रोम को जिस दवा से ठीक करने का दावा किया है, उसे नोरा 1 नाम दिया गया है। यह जेनेटिक दवा एक कोष से दूसरे कोष तक संकेत भेजकर वह काम कर देती है, जिसके नहीं होने की वजह से लीवर की यह बीमारी उत्पन्न होती है।
हर प्राणी में एक कोष से दूसरे कोष तक संकेत पहुंचाने का प्राकृतिक इंतजाम होता है। यह दवा जेनेटिक विसंगित की वजह से इसी काम में जो बाधा आती है, उसे दूर करता है। यह दवा उसी रूकी हुई प्रक्रिया को चालू कर देता है। इससे धीरे धीरे लीवर अपने स्वाभाविक आकार में लौट पाता है तथा उसकी बाकी विसंगतियां भी लीवर के विकसित होने के बाद खुद ही दूर हो जाती हैं।
फिलहाल शोध दल ने कृत्रिम तौर पर बनाये गये छोटे आकार के लीवरों पर इसका परीक्षण किया है। इसके लिए इस लाईलाज बीमारी से पीड़ित एक रोगी से प्राप्त स्टेम सेल की मदद से उसे बनाया गया है। परीक्षण में लीवर की खराबियों को दूर होते देखा गया है तथा आवश्यक आंकड़े भी एकत्रित किये गये हैं।
इस विधि में दरअसल शरीर के अंदर मौजूद कोषों को कुछ अस्वाभाविक करने का जेनेटिक निर्देश नहीं दिया जा रहा है। इस विधि में कोषों को सिर्फ वही करने को कहा जा रहा है, जो शरीर के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया है।
शोध से जुड़े लोग मानते हैं कि अगर यह प्रक्रिया सफल होती है तो कैंसर सहित दूसरे किस्म की लाईलाज बीमारियों के लिए भी इस किस्म के जेनेटिक संकेत के जरिए अंदर की खामियों को दूर करने का नया ईलाज और कारगर साबित हो सकेगा क्योंकि इनके प्रयोग से शरीर के आंतरिक कोषों को उसका विरोध नहीं करना पड़ता।
वरना आम तौर पर किसी भी बाहरी वस्तु को शरीर की आंतरिक प्रक्रिया अस्वीकार कर देती है। इसी वजह से अंग प्रत्यारोपण होने के बाद भी वे प्रत्यारोपित अंग अस्वीकृत ना हों, उसके लिए अतिरिक्त दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है।