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कोलकाताः पश्चिम बंगाल के चार जिलों में सड़क परिवहन पूरी तरह बंद हो गया है। इन जिलों में रहने वाले आदिवासियों ने संथाली भाषा में शिक्षा देने की मांग पर इस बंद का आह्वान किया है। इसका नतीजा है कि झारखंड से सटे जिलों, पश्चिमी मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, पुरुलिया और बांकुड़ा में इसका असर दिख रहा है।
इन जिलों में सड़क परिवहन पूरी तरह बंद हो गया है। सभी सड़कों पर आंदोलनकारी अपना झंडा लेकर खड़े हैं। आंदोलनकारियों ने अलग संथाल शिक्षा बोर्ड का गठन कर संथाली भाषा में शिक्षा की व्यवस्था सहित कई मांगे रखी है। भारत जकात मांझी परगना महल नामक संगठन ने इन मांगों को लेकर राज्य सरकार के साथ बैठक करने का प्रस्ताव दिया था।
बारह घंटे के बंद के आह्वान के साथ साथ यह चेतावनी दी गयी है कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर विचार नहीं किया तो शीघ्र ही वे और बड़े आंदोलन की शुरुआत करेंगे। यह सड़क जाम शाम छह बजे तक जारी रहने के बाद आंदोलनकारियों ने सड़कों को खाली कर दिया था। इस बंद में शामिल आदिवासी इन जिलों के स्कूलों में अलग से संथाल भाषा के शिक्षकों की बहाली के साथ साथ शिक्षा स्वयंसेवकों में संथालों की बहाली की मांग कर रहे हैं।
उनकी मांगों में उनकी भाषा में पाठ्यपुस्तकों का वितरण भी शामिल है। इसके अलावा साधु रामचंद मुर्मू विश्वविद्यालय में संथाल भाषा में स्नातकोत्तर की पढ़ाई प्रारंभ करने की मांग की गयी है। इन इलाकों में सक्रिय दूसरे विश्वविद्यालयों में भी संथाल भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था करने की मांग की गयी है।
बता दें कि इन जिलों में संथाल आदिवासियों की आबादी अच्छी खासी है। इसके अलावा उत्तर बंगाल के कई जिलों में भी झारखंड से गये आदिवासी अब स्थायी निवासी बन चुके हैं। इस कारण इन सीटों पर हार जीत का फैसला भी आदिवासियों के वोट से होता है। आंदोलनकारियों ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने के लिए तमाम शिक्षा प्रतिष्ठानों में अपनी संस्कृति के मुताबिक नृत्य और संगीत का पाठ्यक्रम भी शामिल करने की मांग की है।
आंदोलनकारियों की तरफ से उनके नेता रायसेन हांसदा ने कहा कि वर्ष 2008 से पढ़ाई प्रारंभ होने के बाद भी अब तक कोई संथाल शिक्षा बोर्ड का गठन नहीं हो पाया है। इसके अलावा राज्य में अनेक फर्जी आदिवासी भी हो गये हैं। इनकी पहचान कर उन्हें आदिवासियों की सुविधा से वंचित करना भी सरकार की जिम्मेदारी है।