भारतीय लोकतंत्र के दो स्तंभों के बीच टकराव लगातार बढ़ रहा है। यह टकराव केंद्र सरकार यानी कार्यपालिका या विधायिका के साथ सुप्रीम कोर्ट यानी न्यायपालिका के बीच है। सुप्रीम कोर्ट इस पक्ष में है कि जजों की बहाली के लिए जो कॉलेजियम की प्रथा कायम है, वह कायम रहे। दूसरी तरफ सरकार चाहती है कि यह फैसला उसके पास रहे। इसी वजह से दोनों तरफ से कई मंचों से बयानबाजी हो रही है।
कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्र सरकार से टकराव के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में तीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) देखे। शीर्ष अदालत ने 2002 के गुजरात दंगे में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एसआईटी की तरफ से मिली क्लीन चिट को बरकरार रखने, विवादास्पद मनी लॉन्ड्रिंग कानून और शिक्षण संस्थानों में दाखिले व सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराने समेत कई अहम फैसले भी सुनाए।
सुप्रीम कोर्ट को कॉलेजियम प्रणाली से लेकर जमानती एवं छोट-मोटी जनहित याचिकाओं से लेकर अदालत में दीर्घकालीन अवकाश तक विभिन्न मुद्दों पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की अगुआई में केंद्र की ओर से प्रहार का सामना करना पड़ा, जिस पर शीर्ष अदालत ने पलटवार भी किया।
शीर्ष अदालत के लिए जजों के नामों को मंजूरी देने में देरी पर केंद्र को खरी-खोटी सुनाई। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामले कहा कि यदि वह कार्रवाई नहीं करे तो वह है किसलिए। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच है कि संविधान से ही देश चलेगा, कोई भी इसे बिगाड़ने का काम करेगा तो देशवासियों को इसके बारे में सोचना होगा।
देश में कई बार ऐसी परिस्थिति आई हैं जब पिछली सरकारों ने न्यायाधीशों की नियुक्ति पर भी नियंत्रण करने का प्रयास किया था। वह सोमवार को गीता की धरा पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के श्रीमद्भगवद गीता सदन में सोमवार देर शाम को अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 16वें अधिवेशन में पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि जनता की ओर से चुने गए प्रतिनिधि जनता के सेवक हैं।
उनकी जनता के प्रति जवाबदेही है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को भी सोचना होगा। संविधान के दायरे में रहते हुए काम हों। संविधान के अनुसार, काम होंगे तो किसी को भी उंगली उठाने का मौका नहीं मिलेगा। किरेन रिजिजू ने कहा कि अदालतों में उपयोग की जा रही भाषा को सरल बनाना चाहिए।
यह जरूरी है कि भारतीय भाषाओं में अदालत में बहस हों ताकि जिसको न्याय दिलाने के लिए प्रयास किया जा रहा है वह भी इसे अच्छी तरह से समझ सके। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अपने कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए अहम कदम उठाए। संविधान पीठों की लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू करने का क्रांतिकारी फैसला किया।
मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए नया तंत्र विकसित किया, आरटीआई पोर्टल और अदालत के मोबाइल एप का उन्नत वर्जन शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए अहम कदम उठाए। संविधान पीठों की लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू करने का क्रांतिकारी फैसला किया।
मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए नया तंत्र विकसित किया, आरटीआई पोर्टल और अदालत के मोबाइल एप का उन्नत वर्जन शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट के 72 साल के इतिहास में 2022 में एक साल के भीतर शीर्ष अदालत में तीन मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। जस्टिस एनवी रमण अप्रैल 2021 में देश के 48वें सीजेआई बने थे।
वह इस साल अगस्त में सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद जस्टिस यूयू ललित देश के 49वें सीजेआई बने। वह नवंबर को सेवानिवृत्त हुए। उसके बाद नौ नवंबर को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ देश के 50वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी। इस साल कई संविधान पीठों का गठन हुआ। इनमें दिल्ली सरकार-केंद्र के बीच अधिकारों के बंटारे, नोटबंदी, जल्लीकट्टू, महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट और मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली के गठन की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
इसके अलावा इस्राइली जासूसी उपकरण पेगासस के उपयोग से लोगों की जासूसी के आरोपों पर सुनवाई की। गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानों के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में दोषियों को समय से पहले रिहा करने के फैसले को भी मंजूरी दी। फिर भी दोनों के बीच टकराव की असली वजह की तलाश में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले नजर आते हैं, जो सरकार को नागवार गुजरे हैं।
मसलन नोटबंदी का औचित्य पूछने,चुनाव आयोग को कई निर्देश देने के अलावा सरकार की आपत्ति के बाद भी पेगासूस मामले की अलग जांच कमेटी बनाना सरकार की नाराजगी की वजह हो सकती है। शायद इसी वजह से कॉलेजियम द्वारा अग्रसारित नामों को मंजूरी देने से रोकने का काम हो रहा है। इसी वजह से अदालतों में जजों की कमी के साथ साथ यह टकराव न्याय में देरी की घटनाओं में बढ़ोत्तरी देश के लिए हितकारी नहीं है।