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अंतरिक्ष में पानी की तलाश में फिर से वैज्ञानिकों को सफलता मिली

यहां से 218 प्रकाश वर्ष दूर है वैसा जल वाला इलाका

  • कैप्लर तारा के चारों तरफ अनेक ग्रह मौजूद

  • घनत्व के आधार पर पानी होने का अनुमान

  • एक का माहौल तो धरती के जैसा ही पाया गया

राष्ट्रीय खबर

रांचीः इस धरती के बाहर भी कहीं पानी है अथवा नहीं, इसका खोज काफी समय से जारी है। इस क्रम में कई ऐसे ग्रहों का भी पता चला है जहां पानी है। हमारी सौरमंडल के कई ग्रहों  में भी प्राचीन काल में जल था और अब वह सतह की गहराई में बर्फ की स्थिति में है, इसकी वैज्ञानिक पुष्टि हो चुकी है।

इसके अलावा अब खगोल वैज्ञानिकों ने वह इलाका खोजा है, जहां पृथ्वी के जैसा ही जल हो सकता है। यह इलाका पृथ्वी से करीब 218 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। यूनिवर्सिटी ऑफ मांट्रियल के शोध दल ने हब्बल टेलीस्कोप से मिले आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर इसकी तलाश की है।

वैसे इस काम के लिए स्पिट्जर टेलीस्कोप का भी प्रयोग किया गया था, जो अब सेवा में नहीं है। इसके आधार पर सुदूर अंतरिक्ष में वह इलाका खोजा गया है जो केप्लर 138 नामक तारा के करीब है। इस शोध की जानकारी जर्नल नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित की गयी है। यह बताया गया है कि वहां जुड़वा जैसे दो ग्रह ऐसे हैं जो अपने पास काफी पानी रखे हुए हैं। केप्लर 138 के बारे में पहले से ही पता है कि यह हमसे करीब 219 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।

इनमें से प्रथम यानी केप्लर 138 बी के बारे में पता है कि उसका आकार लगभग पृथ्वी के जितना ही है और वह पथरीला है। यह अपने मूल तारा से करीब सत्तर लाख मील की दूरी पर परिक्रमा कर रहा है। वैसे सूर्य से हमारी पृथ्वी की दूरी करीब 930 लाख मील है। वहां कैप्लर श्रृंखला के अन्य तारे भी हैं। कैप्लर 138 सी और 138 डी आकार में पृथ्वी के करीब डेढ़ गुआ है। इन्हीं में पानी को खोजा गया है। वहां पर पर्याप्त जल मौजूद है, सिर्फ इसकी पुष्टि हो पायी है।

इसमें एक स्वाभाविक सवाल यह उठता है कि वहां पानी है, इस बात की पुष्टि इतनी दूरी से कैसे हो सकती है। यह सवाल जायज है और वैज्ञानिकों ने इसे समझने के तरीकों को भी स्पष्ट किया है। यहां से किसी तारा की दूरी की गणना तो रोशनी के आधार पर की जाती है। उस तारा के आस पास मौजूद ग्रहों की मूल तारा से दूरी भी इसी पद्धति से निकाली जाती है। लेकिन इससे उस खगोलीय पिंड की क्या संरचना है, उसका पता नहीं चल पाता है।

इसी प्रकाश पद्धति से किसी भी तारा अथवा ग्रह के घनत्व का पता चलता है। इसमें पृथ्वी के घनत्व को पैमाना मानकर ही पानी होने की पुष्टि की जाती है। पहले खोजे गये यूरोपा का घनत्व तीन मापा गया था। इसका अर्थ है कि वहां का पूरा इलाका ही गहरे समुद्र में डूबा हुआ है। इसी आधार पर कैप्लर के इन दो ग्रहों में भी पानी होने की पुष्टि हुई है।

वहां के बारे में यह भी आकलन है कि वहां पानी की गहराई दो हजार किलोमीटर तक हो सकती है जो हमारी धरती के मुकाबले पांच सौ गुणा अधिक है। वैसे वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यूरोपा जैसे विशाल समुद्र नहीं होने के साथ साथ इन दो ग्रहों में शायद बर्फ भी नहीं है। दोनों पर ध्यान देने से यह पता चला है कि इनमें से एक अपने मूल तारा की परिक्रमा 84 लाख मील की दूरी से करता है जबकि दूसरे की दूरी 118 लाख मील होती है।

यह धरती से सूर्य की दूरी के मुकाबले कम दूरी है। दोनों अपने मूल तारा से काफी करीब होने की वजह से ऐसा माना गया है कि वहां का पानी भी धरती के मुकाबले काफी गर्म होगा क्योंकि वह ताप के काफी करीब है। इससे वहां भाप भी निरंतर बनता रहता होगा। इस खोज के क्रम में कैप्लर 138 ई भी पाया गया है, जिसके बारे में खगोल वैज्ञानिक मान रह हैं कि वहां का माहौल काफी कुछ धरती के जैसा ही होगा। यानी वहां पर भी भविष्य की उन्नत तकनीक के सहारे इंसानों की बस्ती बन सकती है।

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