जीएसटी काउंसिल की बैठकों में होने वाले फैसलों से यह साफ है कि केंद्र सरकार आनन फानन में लागू की गयी इस पद्धति की खामियों को समय के साथ साथ समझ रही है। यह अलग बात है कि विरोधी दल तथा कई व्यापारिक संगठन पहले से ही इनकी खामियों का उल्लेख कर उनमें सुधार की मांग करते आ रहे थे। दूसरी तरफ गैर भाजपा शासित राज्यों की शिकायत है कि इसमें भी कर के हिस्से का सही बंटवारा नहीं किया जा रहा है।
अब काउंसिल की 48वीं बैठक में कारोबारियों को बड़ी राहत दी गई। अब दो करोड़ से ऊपर की कर राशि पर ही कारोबारियों के खिलाफ कोई आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकेगा। अभी यह सीमा एक करोड़ रुपये थी। हालांकि, बिना मैन्यूफैक्चरिंग या सेवा दिए फर्जी बिल से इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के मामलों को आपराधिक मुकदमों से कोई छूट नहीं दी गई है। कारोबारियों को जुर्माने की राशि में भी राहत दी गई है।
अभी जुर्माना कर राशि के 50-150 प्रतिशत तक लगाया जाता है। अब यह जुर्माना कर राशि के 25-100 प्रतिशत तक होगा। काउंसिल के फैसले के मुताबिक, जीएसटी नेटवर्क पर गैर पंजीकृत कारोबारी भी अब ई-कामर्स पोर्टल पर सप्लाई दे सकेंगे। वे अपने राज्य में ही ई-कामर्स कंपनियों को सप्लाई दे पाएंगे। ई-कामर्स कंपनी को वस्तुओं की सप्लाई करने के लिए अभी जीएसटी नेटवर्क पर पंजीकृत होना जरूरी है। छोटे कारोबारियों की तरफ से इस प्रविधान को बदलने की मांग की जा रही थी।
इससे पहले अनेक अवसरों पर जीएसटी से छोटे कारोबारियों को नुकसान होने की बात कही गयी थी लेकिन उस समय केंद्र सरकार ने इन पर ध्यान नहीं दिया था। अब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कई अवसरों पर इस जीएसटी से छोटे कारोबारियों को होने वाले नुकसान की चर्चा कर दूसरे किस्म का माहौल बनाने में कामयाब रहे हैं। इसके बाद यह सुधार किये जाने की घोषणा की गयी है।
काउंसिल की बैठक के एजेंडा पर 15 आइटम थे, लेकिन सिर्फ आठ आइटम पर विचार किया जा सका। बाकी सात आइटम पर काउंसिल की आगामी बैठक में विचार होगा। बैठक में जीएसटी ट्रिब्यूनल के गठन को लेकर कोई चर्चा नहीं हो सकी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में वर्चुअल तरीके से हुई बैठक में किसी भी वस्तु पर जीएसटी बढ़ाने का फैसला नहीं किया गया। दाल के छिलके और अन्य पशुचारा पर लगने वाले पांच प्रतिशत जीएसटी को समाप्त किया गया है।
इंश्योरेंस से जुड़े नो क्लेम बोनस को जीएसटी से मुक्त कर दिया गया है। बायो फ्यूल को प्रोत्साहित करने के लिए पेट्रोल में मिलाए जाने वाले इथाइल अल्कोहल पर लगने वाले 18 प्रतिशत जीएसटी को घटाकर पांच प्रतिशत करने का भी फैसला किया गया। काउंसिल में एसयूवी गाड़ियों की परिभाषा को स्पष्ट किया गया, ताकि उन पर 22 प्रतिशत सेस लगाने में कोई दिक्कत नहीं हो। इसके लिए चार शर्तें तय की गई हैं। इन चार शर्तों के नहीं होने पर 22 प्रतिशत सेस नहीं लगेगा।
आटो उद्योग ने नया जीएसटी लागू होने के प्रारंभिक दौर में भी परिभाषा स्पष्ट नहीं होने से होने वाली दिक्कतों का उल्लेख किया था। उस समय केंद्र सरकार किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं था। इस वजह से अनेक कारोबारों को इस जीएसटी की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ा है। अगर सरकार ने पहले ही खुले दिल से इन बातों पर गौर किया होता तो शायद जीएसटी की वजह से देश के अपने कारोबार को इतनी अधिक परेशानियों से नहीं गुजरना पड़ता। वैसे इस बैठक में जीएसटी कानून का गैर-अपराधीकरण करने पर सहमति बनी है।
यानी सरकार ने इतने दिनों बाद माना है कि व्यापारियों को इस कदर नाराज करना उसके लिए घाटे का सौदा है। इसके साथ दाल की भूसी पर जीएसटी पांच प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया है। हालांकि इस बैठक में पान मसला और गुटखा उत्पादों पर टैक्स को लेकर कोई भी फैसला नहीं हो पाया है। फिर भी जीएसटी परिषद की बैठकों में निरंतर होने वाले सुधार के बीच यह साफ है कि सभी सरकारों को जनता की कम और अपनी सरकार की चिंता अधिक है। इसी वजह से लगातार जनता की तरफ से मांग किये जाने के बाद भी पेट्रोल जनित पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
केंद्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर जनता को गुमराह करने के खेल में जुटी है। जबकि जनता इन खेलों से आगे निकल चुकी है। कोरोना काल के लॉकडाउन ने ही समझा दिया है कि दरअसल सरकारों का काम काज जनता के पैसे से ही चलता है। इसलिए अब सरकारों को पैसे के हिसाब के मामले में जनता को अधिक विश्वास में लेने की आदत डाल लेनी चाहिए। बड़े लोगों का कर्जमाफी से जनता की नाराजगी के असर को समझा जा सकता है।