शराब पर दिल्ली में गर्मी छायी हुई है। जी नहीं मैं मौसम की बात नहीं कर रहा हूं। मैं कोई मौसम वैज्ञानिक नहीं हूं। मैं तो वह कहता हूं जो दिखता है। संसद में हर रोज बिहार में जहरीली शराब पर चर्चा हो रही है। जिन्हें पता नहीं है उन्हें बता दूं कि बिहार के छपरा के आस- पास गाँवों में अवैध शराब पीने से अब तक लगभग 65 लोगों की मौत हो चुकी है। हालाँकि सरकारी आँकड़ा अभी 30 ही है। सरकार की ओर से आधे से भी कम मौतें क्यों बताई जा रही है, इसका राज भी खुल गया है।
दरअसल, मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम कराने ले जा रहे परिजन को पुलिस धमका रही है। कह रही है कि पोस्टमार्टम कराओगे तो खुद ही फँस जाओगे। क्योंकि बिहार में शराबबंदी लागू है। गाँव में ही अंतिम संस्कार कर दीजिए और मौत का कारण ठण्ड बताइए। ऐसा करने से चार लाख रुपए आर्थिक सहायता भी मिल जाएगी। उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष के हंगामे के बाद कहा था कि जब शराब पर बंदिश है तो लोग पी क्यों रहे हैं? पीएंगे तो मरेंगे।
बात सही भी है क्योंकि अवैध शराब तो अवैध है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्यभर में शराबबंदी लागू है, तब अवैध शराब की बिक्री को रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी है? जो पुलिस मरे हुए लोगों को धमकाकर पोस्टमार्टम नहीं कराने दे रही है, वही पुलिस अवैध शराब की बिक्री को क्यों नहीं रोकती? इस मुद्दे पर दिल्ली से पहले पटना में भी विधानसभा में लगातार तीसरे दिन जमकर हंगामा हुआ। कुर्सियां पटकीं गईं।
विपक्ष ने सरकार को बर्खास्त करने की भी मांग की। इसके साथ ही विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि जो भी सरकार की विफलता से, अपराधियों की गोली से या जहरीली शराब से मरता है, उसको सरकार मुआवजा दे। इसके लिए कानून बनाए। सरकार अपराधियों को संरक्षण दे रही है। दारू, बालू और भ्रष्टाचार सरकार का एजेंडा बन गया है। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने सदन में पीड़ित परिवार को 10-10 लाख मुआवजा देने की मांग उठाई। इस पर नीतीश ने कहा, दारू पीकर मरे हैं तो क्या सरकार मुआवजा देगी। एक पैसा नहीं देंगे। इससे मामला टकराव की नौबत तक जा पहुंचा।
इधर भाजपा वाले इस बात पर ध्यान देना भूल गये क्या कि अभी गुजरात में शराबबंदी के बीच जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यहां के बोटाद जिले में अब तक 40 मौतों की पुष्टि हुई थी। यह गुजरात के चुनाव में विपक्ष के चुनाव प्रचार का हिस्सा भी था। उस टैम पर भाजपा वालों क इस शराब की याद नहीं आयी थी या शराब में नशा नहीं होता है, उसके बोतल में होता है, यह बात सही लगी थी।
इसी बात पर एक हिट फिल्म का गीत याद आने लगा है। मजेदार बात यह है कि इस फिल्म का जिक्र मैंने हाल में भी किया था। अब क्या करें जैसा माहौल होता है, वैसी हो सोच आती है। जिस गीत की चर्चा कर रहा हूं, उसे लिखा था अंजाम और प्रकाश मेहरा ने, उसे संगीत में ढाला था बप्पी लाहिरी ने और इसे स्वर दिया था आशा भोंसले और किशोर कुमार ने। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ तुमने भी शायद यही सोच लिया हां लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ किसी पे हुस्न का गुरूर जवानी का नशा किसी के दिल पे मोहब्बत की रवानी का नशा किसीको देखे साँसों से उभरता है नशा बिना पिये भी कहीं हद से गुज़रता है नशा नशे मैं कौन नहीं हैं मुझे बताओ ज़रा किसे है होश मेरे सामने तो लाओ ज़रा नशा है सब पे मगर रंग नशे का है जुदा खिली खिली हुई सुबह पे है शबनम का नशा हवा पे खुशबू का बादल पे है रिमझिम का नशा कहीं सुरूर है खुशियों का कहीं ग़म का नशा नशा शराब मैं होता तो नाचती बोतल मैकदे झूमते पैमानों मैं होती हलचल नशा शराब मैं होता तो नाचती बोतल नशे मैं कौन नहीं हैं मुझे बताओ ज़रा - २ लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ तुमने भी शायद यही सोच लिया लोग कहते हैं मैं शराबी हूँ थोड़ी आँखों से पिला दे रे सजनी दीवानी थोड़ी आँखों से पिला दे रे सजनी दीवानी तुझे मैं तुझे मैं तुझे नौलक्खा मंगा दूंगा सजनी दिवानी
खैर इसी वजह से ऐसी बहस के बीच तवांग की गर्मी भी है जिससे संसद कभी कभार कांप उठता है, बॉयकॉट भी हो जाते हैं। अपने हेमंत भइया मस्त हैं। ऐसी चाल चली है कि अब आगे बढ़कर भाजपा वाले भी उनके एक फैसले का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी तरफ ईडी की चार्जशीट में ऐसे नाग नजर आ गये हैं कि अब धीरे धीरे ईडी भी जांच को समेटने की कोशिशों में जुट गयी है।