अदालतमुख्य समाचारराजनीति

राकेश अस्थाना की तैनाती पर उठे नये सवाल

जजों की नियुक्ति के बीच फिर से केंद्र सरकार निशाने पर

  • अंतिम समय में बहाली क्यों पर जांच होगी

  • एक साल का एक्सटेंशन भी दिया गया था

  • सीबीआई में भी उनके रहते हुए था विवाद

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच पहले से ही जजों की नियुक्ति को लेकर मतभेद चल रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री को आगे कर सरकार जजों की बहाली की कॉलेजियम प्रथा का विरोध कर रही है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट अपनी परंपरा के हवाला देकर केंद्र सरकार की राय के खिलाफ बात कही है। इसके बीच ही सुप्रीम कोर्ट ने फिर से राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस आय़ुक्त बनाने के मसले पर सवाल उठा दिया है। शीर्ष अदालत ने उस फैसले को रिव्यू करने का निर्णय लिया है जिसके तहत राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया था।

हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट  पहले ही ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर चुका है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट याचिका पर नए सिरे से सुनवाई करने पर सहमत हो गया है। दरअसल राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर उस वक्त बनाया गया था जब उनकी रिटायरमेंट में महज चार दिन बाकी थे। उसके बाद गृह मंत्रालय ने उन्हें एक साल का एक्सटेंशन भी दे दिया। राकेश फिलहाल सेवानिवृत हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट रिटायरमेंट के बाद भी उनकी नियुक्ति को लेकर अपनाई गई प्रक्रिया पर गौर फरमाने को राजी हो गया है।

राकेश अस्थाना के साथ मोदी सरकार के लिए भी ये फैसला परेशानी में डालने वाला है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा ने उनके केस को फिर से सुनने के लिए हामी भरी। राकेश अस्थाना गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। 27 जुलाई 2021 को उन्हें दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाया गया था। उनको सेवानिवृत्ति इस आधार पर दी गई थी कि ये फैसला जनहित से जुड़ा है।

एडवोकेट प्रशांत भूषण ने उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि 27 जुलाई को उन्हें नियुक्त किया जाता है और 31 जुलाई को 1 साल का एक्सटेंशन दे दिया जाता है। उनका कहना था कि ये सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के अनुरूप नहीं है जो प्रकाश सिंह वनाम केंद्र सरकार के मामले में दिया गया था। प्रकाश सिंह ने किसी भी सूबे के डीजीपी को नियुक्त करने से पहले कुछ सुझाव दिए थे।

उनका कहना था कि इतने वरिष्ठ पद पर नियुक्ति के लिए एक पैनल का गठन किया जाना चाहिए। जो तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर तीन नामों को सरकार के पास भेजे। जो अफसर इस पद पर नियुक्त किया जाना है उसकी कम से कम छह माह की सर्विस बाकी होनी जरूरी है। प्रशांत भूषण का कहना था कि अस्थाना के मामले में इन सभी चीजों को नजरंदाज किया गया।

हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने इस आधार पर अस्थाना की नियुक्ति से जुड़ी याचिका को खारिज किया था कि ये सारी गाईडलाईनें डीजीपी की नियुक्ति के लिए हैं। जबकि अस्थाना दिल्ली के पुलिस कमिश्नर थे। इस मसले पर लोगों का ध्यान इसलिए भी है क्योंकि सीबीआई में पदस्थापना के दौरान उस दौर के सीबीआई निदेशक के साथ अस्थाना का ऐसा विवाद हो गया था जिसमें नरेंद्र मोदी का हस्तक्षेप भी काम नहीं आया था। इस वजह से तत्कालीन सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को रातों रात हटाना पड़ा था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button