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इंसानी दिमाग की वास्तविक शक्ति का हम इस्तेमाल नहीं कर पाते

  • लाखों की संख्या में होती हैं ऐसी ग्रंथियां

  • ये दो तरफा संकेत प्रेषण का काम करती हैं

  • अप्रत्याशित मौके पर सक्रिय भी हो जाती हैं

राष्ट्रीय खबर

रांचीः इंसानी दिमाग अपनी वास्तविक शक्ति से बहुत कम का इस्तेमाल करता है। इससे वह प्राचीन हिंदू पौराणिक कथा सही साबित होती है कि दरअसल योग और साधना के जरिए दिमागी शक्तिओं को और विकसित किया जा सकता है। हाल के दिनों में दिमाग की संरचना की जांच करने के बाद शोध दल ने इन सुप्तावस्था के अंतरग्रंथन की पहचान की है।

वैज्ञानिक परिभाषा में इन्हें अंग्रेजी में सिनेप्स कहा जाता है। यह पाया गया है कि किसी वयस्क इंसान के दिमाग के अंदर ऐसे अनगिनत सिनेप्स मौजूद हैं। इससे यह साबित होता है कि इन्हें सक्रिय करने की कोई दूसरी विधि भी हो सकती है। इन सुप्तावस्था की ग्रंथियों का अभी सामयिक इस्तेमाल किसी सूचना को अचानक ग्रहण करने में होता है। वह काम पूरा होने के बाद वे फिर से सुप्तावस्था में चले जाते हैं। शोध दल ने गहन परीक्षण में पाया है कि इंसानी दिमाग में ऐसे सुप्त सिनेप्स की संख्या लाखों में मौजूद है।

यह बता देना प्रासंगिक है कि यह सिनेप्स दरअसल वह सुक्ष्म हिस्से हैं जिनकी वास्तविक जिम्मेदारी दिमाग के अंदर मौजूद न्यूरॉनों के बीच संवाद स्थापित करना है। वे एक तरह से दिमाग के अंदर सही सूचना सही स्थान पर पहुंचे और सही निर्देश का सही तरीके से पालन हो, इसके बीच संवाद वाहक का काम करते हैं। एमआईटी के वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐसे सुप्त सिनेप्सों की संख्या दस लाख से भी अधिक होती है।

इनकी मदद से इंसानी दिमाग को नई चीज सीखने में मदद मिलती है। इसी शोध के तहत वैज्ञानिकों ने चूहे के दिमाग की भी जांच की थी। इसमें पाया गया कि चूहे के दिमाग के अंदर भी ऐसे तीस प्रतिशत सुप्त सिनेप्स मौजूद होते हैं। अभी इनका काम सिर्फ किसी अप्रत्याशित सूचना का विश्लेषण कर उसे दिमाग के सही स्थान तक पहुंचाना भर है। लेकिन पौराणिक दंतकथाओँ पर विश्वास करें तो किसी दूसरी विधि से उन्हें भी सक्रिय कर दिमाग को और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।

एमआईटी के इस शोध को वहां से एसोसियेट प्रोफसर मार्क हारनेट की देखरेख में पूरा किया गया जबकि इस दल का नेतृत्व डिमित्री वारदारलाकी कर रहे थे। इस बारे में एक शोध प्रबंध प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित की गयी है। इस खोज से भी साबित हो गया है कि आधुनिक विज्ञान अब तक दिमागी संरचना और क्रियाकलापों को पूरी तरह नहीं समझ पाया है। यह एक सुपर कंप्यूटर की तरह आचरण करता है।

पहले यह माना गया था कि ऐसे सुप्त सिनेप्स शिशु के जन्म के एक महीने के भीतर गायब होने लगते हैं। पहली बार यह पाया गया है कि वे गायब नहीं होते बल्कि सुप्तावस्था में चले जाते हैं। इंसान की उम्र बढ़ने के साथ साथ उनकी संख्या दस लाख से भी अधिक हो जाती है। यह माना जा रहा है कि इन्ही सुप्त अंतरग्रंथियों की वजह से ही इंसान अपने सामने आने वाली अप्रत्याशित चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर पाता है।

चूहों पर हुए परीक्षण में यह पाया गया है कि कई अवसरों पर यह सिनेप्स दो तरफा संवाद का काम करते हैं और वे सूचनाओँ को संकलित कर दिमाग के कॉरटेक्स तक पहुंचाने के बाद वहां से मिले निर्देश को शरीर के किसी दूसरे हिस्से तक भेजने का काम भी करते हैं। लेकिन यह सिर्फ असामान्य परिस्थितियों को खुद ही समझते हुए सक्रिय होता है। इनकी सक्रियता की वजह से दिमाग के अंदर जो रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, उसे भी देखा गया है।

अब शोध दल इसे कैसे स्थायी तौर पर सक्रिय किया जा सकता है, उस पर अपना शोध जारी रखे हुए हैं। इसकी संरचना कुछ ऐसी है कि वह मजबूत और लचीला भी है। शायद इसका राज पूरा खुलने पर इंसानी दिमाग को और बेहतर ढंग से समझने में कोई मदद मिल पायेगी।

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