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वैज्ञानिकों ने बनाया सबसे सख्त यौगिक पदार्थ

  • तीन धातुओं को मिलाकर बनाया है इसे

  • तीनों का मिश्रण बराबर मात्रा में रखा है

  • आणविक स्तर पर एक दूसरे से जुड़े

राष्ट्रीय खबर

रांचीः वैज्ञानिकों ने कई पदार्थों को मिलाकर एक नया यौगिक बनाने में सफलता पायी है। यूं तो किसी भी तरीके से ऐसे यौगिक कोई भी बना सकता है। इस खास यौगिक की विशेषता यह है कि यह दुनिया में अब तक का सबसे सख्त पदार्थ माना गया है। परीक्षण में यह भी देखा गया है कि जैसे जैसे यह ठंड के प्रभाव में आता है वैसे वैसे यह पदार्थ और भी सख्त होता चला जाता है।

इसका परीक्षण सफल होने के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इसका उपयोग अंतरिक्ष अभियानों में काम आने वाली क्रायोजेनिक तकनीक में बेहतर साबित होने वाली है। अंतरिक्ष के अत्यंत ठंडे इलाकों से गुजरते वक्त भी यह यौगिक किसी यान के बाहरी आवरण की सुरक्षा कर पाने में कामयाब होगा। किसी भी पदार्थ के सख्त होने के सारे पैमानों पर यह नया यौगिक सबसे मजबूत साबित हुआ है। इसे वैज्ञानिकों ने क्रोमियम, कोबाल्ट और निकेल को मिलाकर तैयार किया है।

ओक रिज नेशनल लैब तथा यूनिवर्सिटी ऑफ टेनेसी से जुड़े पदार्थ विज्ञानी एसो जॉर्ज ने इस बारे में जानकारी दी है। उनका कहना है कि कोई भी धातु जब मजबूत होती है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसके टूटने की संभावना बढ़ती जाती है। इस यौगिक के बन जाने से वह परेशानी दूर होने वाली है।

वरना कई धातु और यौगिक ऐसे हैं, जो मजबूत तो हैं लेकिन अत्यंत ठंड के प्रभाव में वे टूट जाते हैं। ऐसे इसलिए होता है क्योंकि उनकी आणविक संरचना पर तापमान का प्रभाव पड़ता है और वे अपनी असली स्थिति में नहीं रह पाते है। इस नये यौगिक में ऐसी कोई परेशानी नहीं होगी। यह जितना ठंडा होता है उतना ही मजबूत होता चला जाता है।

इस मजबूती की वजह से अंतरिक्ष अभियानों में ऐसे आवरणों पर कोई दरार भी जल्द नहीं आयेगी। शोध दल ने इसे बनाने के लिए काफी समय खर्च किया है। इसमें बर्कले नेशनल लैब के अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिक भी शामिल रहे हैं।

इस यौगिक की खास बात यह है कि इसमें तीनों पदार्थों का मिश्रण बराबर मात्रा में है। वरना दूसरे यौगिकों में कोई एक धातु अधिक होती है और अन्य धातु उसमें कम मात्रा में होते हैं। इसमें सब कुछ बराबर बराबर है। इसलिए शून्य से नीचे के तापमान में जाने के साथ साथ यह और मजबूत होता चला जाता है। अत्याधुनिक उपकऱणों से जब इसकी जांच की गयी तो यह शून्य से 253 डिग्री नीचे के तापमान में भी सही सलामत पाया गया है।

मजबूती के मामले में यह हवाई जहाज के बाहरी खोल अथवा अच्छे स्टील से काफी अधिक बेहतर है। इसे सही स्वरुप में ढालने के लिए आणविक स्तर पर उनकी संरचनाओं को अनुकूल बनाना पड़ा है। इसके बीच आणविक स्तर पर वे पदार्थ हैं जो ऐसे दबाव में खुद को बदलते हैं लेकिन मूल ढांचा के स्वरुप में कोई तब्दीली नहीं आने देते हैं। इसके बन जाने के बाद अब शोध दल तरल हिलियम की स्थिति में इसकी मजबूती की जांच करने की तैयारियों मे जुटा है।

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