-
दीपक प्रकाश ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया
-
राज्यपाल की भूमिका नई नियमावली में समाप्त
-
चंपई सोरेन ने कहा भाजपा बौखला गयी है
रांची : झारखंड में जनजातीय परामर्शदातृ परिषद् यानि ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) को लेकर राजभवन और राज्य सरकार के बीच विवाद एक बार फिर से सतह में आ गया है। राजभवन की ओर से राज्य सरकार को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें ये स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि टीएसी की नियमावली के गठन और बैठकों की कार्यवाही पर उनका अनुमोदन न लिया जाना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन प्रतीत होता है।
इसमें सरकार से पूछा गया है कि राजभवन के द्वारा टीएसी की नियमावली के गठन के संबंध में पूर्व में जो आदेश पारित किया था, उसका अनुपालन क्यों नहीं हुआ है। ज्ञात हो कि भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत झारखंड सहित देश के 10 राज्यों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। इन राज्यों में एक जनजातीय परामर्शदातृ परिषद का गठन किया जाता है, जो अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित मामलों पर सरकार को सलाह देती है। इसी टीएसी को लेकर झारखंड के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विवाद की शुरूआत हुई। यह विवाद पिछले साल जून में तब हुई थी, जब राज्य सरकार ने इसकी नई नियमावली बनायी और सात जून, 2021 को इसे गजट में प्रकाशित कर दिया।
पूर्व से जो नियमावली चली आ रही थी, उसमें टीएसी के गठन में राज्यपाल की अहम भूमिका होती थी, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार की ओर से बनाई गई नई नियमावली के तहत टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका ही समाप्त कर दी गयी।राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार की ओर से बनाई गई नई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए इसकी फाइल राज्य सरकार को वापस कर दी थी।
बताते चले कि चार फरवरी 2022 को राज्यपाल ने इसपर विस्तृत आदेश पारित किया था। इसमें कहा गया था कि टीएसी की नई नियमावली में राज्यपाल से परामर्श नहीं लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण और संविधान की मूल भावना के विपरीत है। टीएसी के कम से कम दो सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार राज्यपाल के पास होना चाहिए। उन्होंने विधि विशेषज्ञों की राय का हवाला देते हुए फाइल पर टिप्पणी की थी कि पांचवीं अनुसूची के मामले में कैबिनेट की सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार टीएसी के प्रत्येक फैसले को अनुमोदन के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाना चाहिए।
राज्यपाल अगर टीएसी को लेकर कोई सुझाव या सलाह देते हैं तो उसपर गंभीरता के साथ विचार किया जाना चाहिए। इस बीच झारखंड सरकार ने बीते 23 नवंबर को नई नियमावली के अनुसार टीएसी की बैठक बुलाई, जिसमें कई अहम निर्णय लिए गए। अब राजभवन ने इनपर आपत्ति दर्ज कराई है।
राज्यपाल के प्रधान सचिव नितिन मदन कुलकर्णी की ओर से राज्य सरकार को लिखे गए पत्र में कहा है कि राज्यपाल ने टीएसी पर जो आदेश पारित किया था, उसका अनुपालन किए बगैर इसकी बैठक आयोजित की गई है। ऐसा करना संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन है। इस पत्र का जवाब सरकार ने अभी तक नहीं दिया है। इसको लेकर राजनीति भी तेज हो गयी है और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद दीपक प्रकाश ने राज्य के ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी पर छिड़े विवाद पर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।
उन्होंने कहा है कि राज्य में ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी का गठन ही असंवैधानिक है। बिना राजभवन की सहमति के गठित यह समिति पूरी तरह से अमान्य है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री इसे पॉकेट की संस्था बनाना चाहते हैं, जिसे भारतीय जनता पार्टी कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। दीपक प्रकाश ने कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को लोकतांत्रिक और संवैधानिक मयार्दाओं का पालन करना चाहिए।
वहीं पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू का कहना है कि राज्य में अविलंब राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए। झारखंड सरकार और राजभवन के बीच बहुत ही महत्वपूर्ण विषय- ट्राइवल एडवाइजरी काउंसिल पर तनातनी जारी है। दोनों ही मामले संविधान और भारत के राष्ट्रपति की गरिमा एवं प्रतिष्ठा के साथ जुड़े हुए हैं। इस पर संविधान सम्मत सुधार की अविलंब जरूरत है।
इस संदर्भ में राज्यपाल चाहें तो झारखंड सरकार को अनुच्छेद 356 लागू करने के पूर्व शो-कॉज नोटिस जारी कर सकते हैं। अन्यथा झारखंड में कांस्टीट्यूशनल ब्रेकडाउन की स्थिति बन रही है। इस पूरे प्रकरण पर आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन का कहना है कि अभी तक राजभवन का पत्र उनके पास नहीं आया है। दीपक प्रकाश के बयान पर उन्होंने कहा कि बीजेपी वाले अनाप-शनाप बोल रहे हैं, जो उनकी हताशा है। सरकार के काम को देख कर वे लोग बौखला गए हैं। क्योंकि अंतिम व्यक्ति तक योजना का लाभ मिल रहा है और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य आगे बढ़ रहा है। बहरहाल इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। लेकिन यह मुद्दा आने वाले समय में तूल पकड़ने वाला है, जिसकी शुरूआत हो चुकी है।