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इंसान और ऑक्टोपस के दिमाग में काफी समानताएं

  • हर बांह स्वतंत्र रुप से काम करता है

  • माइक्रो आरएनए की समानता मिली

  • एक पानी में रहा दूसरा जमीन पर आया

राष्ट्रीय खबर

रांचीः ऑक्टोपस भी समुद्र का एक अत्यंत चालाक प्राणी है। इस पर निरंतर शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उनके दिमाग के साथ इंसानी दिमाग की काफी समानताएं हैं। यह सूचना वैज्ञानिकों के लिए भी हैरान करने वाली है क्योंकि एक जमीन का जीव है जबकि दूसरा समुद्र का प्राणी है।

दूसरी तरफ जेनेटिक अनुसंधान का नतीजा यह निकला है कि दोनों के माइक्रो आरएनए में कई चीजें एक जैसी हैं। मैक्स डेलब्रूक सेंटर फॉर मालिक्यूलर मेडिसीन के निकोलस राजेवस्की ने यह बात कही है। दूसरी तरफ भारतवंशी ब्रिटिश न्यूरोलॉजिस्ट अनिल सेठ मानते हैं कि हो सकता है कि यह ऑक्टोपस भी किसी बाहरी दुनिया से आने वाला जीवन हो, जो यहां रच बस गया है।

वैसे भी अपने आचरण की वजह से इसे एक चालाक प्राणी माना जाता है। वह रंग बदल सकता है तथा किसी भी आकार के इलाके में खुद को समेट कर समा सकता है। यह सब कुछ वह अपने दिमाग की बदौलत ही कर पाता है।

कहा तो यह भी जाता है कि ऑक्टोपस को भी सपने आते हैं लेकिन अब तक वैज्ञानिक तौर पर वह बात प्रमाणित नहीं हो पायी है। दूसरी तरफ स्क्विड का ब्रेन कुत्ते के जैसा होता है, इसका पता पहले ही चल चुका है। फर्क सिर्फ इतना है कि इनमें से एक प्रजाति पानी की है जबकि दूसरी प्रजाति जमीन पर निवास करती है।

इस कारण माना गया है कि करीब पांच सौ मिलियन वर्ष पहले किसी एक खास प्राणी से ही दिमाग वाली दो प्रजातियों का विकास हुआ था। इनमें से एक पानी में रहने वाला ऑक्टोपस है और दूसरा इंसान है। वैसे क्रमिक विकास के दौर में इस विशाल कालखंड में दोनों ही प्रजातियां अलग अलग दौर से गुजरते हुए वर्तमान स्थिति में पहुंची है। ऑक्टोपस के बारे में यह पाया गया है कि वह स्वतंत्र रुप से फैसले लेता है, जो इंसानी गुण के काफी करीब है।

जेनेटिक शोध से यह पाया गया है कि वह प्राणी अपने दिमाग की ताकत से ही एपने आरएनए श्रृंखला को तुरंत बदल लेता है। उसके रंग बदलने का असली कारण यही है। किसी दूसरे प्राणी में इस किस्म का गुण नहीं होता है। इसके अलावा उसके सभी वाहों को स्वतंत्र तौर पर फैसला लेने की आजादी है यानी वे किसी दूसरे के नियंत्रण में नहीं रहते हैं। इसलिए किसी एक को नुकसान पहुंचने के बाद भी उनकी गतिविधियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है।

इसे समझने के लिए निकोलस राजेवस्की ने मरे हुए ऑक्टोपसों के 18 नमूने हासिल किये थे। इटली की एक संस्था ने यह शव उपलब्ध कराये थे। उसके बाद इन शवों के आरएनए की कड़ी का विश्लेषण किया गया। जिन ऑक्टपसों की जांच की गयी उनमें तीन प्रजातियां थीं। इससे पाया गया है कि उनके दिमाग में माइक्रो आरएनए की भरमार है।

इनमें से 164 जीन 138 एमआरएनऩ समूह के हैं। इसी आधार पर उनके दिमाग के साथ इंसानी दिमाग की काफी समानता पायी गयी है। इस बारे में स्पेन के सेंटर फॉर जेनोमिक रेगुलेशन के वैज्ञानिक गायरी जोलोटारोव कहते हैं कि यह इंसानी के मुकाबले तीसरी सबसे अधिक एमआरएनए की जटिलता है। इसलिए माना जा सकता है कि किसी एक प्रजाति के अलग अलग स्वरुपों की वजह से यह बाद में अलग अलग तौर पर विकसित हुए हैं। ऑक्टोपसों में भी इंसानी विरासत जैसे गुण पाये गये हैं। दोनों के दिमाग में दूसरी समानता खास किस्म के सेलों की हैं, जिन्हें ट्रांसस्पोसन कहा जाता है। अब इन एमआरएन के क्रियाकलापों को समझने का काम जारी है।

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