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किसी राह में किसी मोड़ पर .. … …

किसी राह में किसी मोड़ पर कहीं चल ना देना वाली बात महाराष्ट्र में सही साबित होती नजर आने लगी है। महाराष्ट्र की सीमा के अंदर राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के तहत सावरकर ऐसी बात कह दी कि उनका सहयोगी यानी उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इसका विरोध कर दिया। खुद उद्धव ठाकरे भी राहुल के बयान का विरोध कर चुके हैं। ऐसा तब हुआ जबकि चंद दिनों पहले ही आदित्य ठाकरे उनके साथ ही इस भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर पैदल चले थे। इस हाल पर निश्चित तौर पर भाजपा खुश है क्योंकि उसे फिर से मुद्दा भटकाने का अच्छा खासा मौका खुद राहुल गांधी ने दे दिया है। वरना महंगाई, बेरोजगार, पेट्रोल-डीजल और काला धन के साथ साथ नोटबंदी और जीएसटी की चर्चा कर राहुल ने भाजपा को परेशान कर दिया था। वह अभी पैदल तो महाराष्ट्र में चल रहे हैं लेकिन भाजपा को इसकी आंच गुजरात में महसूस हो रही है। अब कमसे कम सावरकर के मुद्दे पर मराठी मानुष को अपनी तरफ खींचने का मौका मिल गया है। वरना इससे पहले महाराष्ट्र में भी बड़ी परियोजनाओं को चुनाव के मौके पर गुजरात ले जाने पर बड़ा बवाल मचा था। नाक में दम करने वाली आम आदमी पार्टी को किसी तरह दिल्ली के नगर निगम चुनाव में उलझाने तथा उपराज्यपाल के साथ प्रशासनिक दांव पेंच में फंसाने की चाल के बाद भी यह लगभग तय हो चुका है कि इस सबसे नई पार्टी का ग्राफ ऊपर चढ़ा है और गुजरात चुनाव के बाद वह राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही है। लेकिन चिंता इस बात की है कि अगर भाजपा की सीटें यहां घट गयी तो आने वाले लोकसभा चुनाव तक और क्या क्या बदल जाएगा।

पहले की हालत यह थी कि दो राज्यों में महिलाओं को सिलंडर मुफ्त में देने का एलान करना पड़ गया। एक केंद्रीय मंत्री को यह कहना पड़ा कि वह अब पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात सोच रहे हैं। वरना पहले की तरह तो समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का दांव लगाया गया था। यह दांव राहुल के भारत जोड़ो यात्रा की वजह से असर खो चुका था। अब तो सीएए और एनआरसी पर भी भाजपा के नेता ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो राहुल गांधी ने भाजपा को बैठे बिठाये मुद्दों से ध्यान भटकाने का एक हथियार पकड़ा दिया है।

इसी बात पर वर्ष 1970 में बनी फिल्म मेरे हमसफर का एक गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था कल्याणजी आनंद जी ने। इसे लता मंगेशकर और मुकेश कुमार ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

किसी राह में, किसी मोड़ पर कहीं चल न देना तू छोड़ कर

मेरे हमसफर, मेरे हमसफर

किसी हाल में, किसी बात पर कहीं चल न देना तू छोड़ कर

मेरे हमसफर, मेरे हमसफर

मेरा दिल कहे कहीं ये न हो नहीं ये न हो

किसी रोज़ तुझसे बिछड़ के मैं तुझे ढूँढती फिरूँ दर-ब-दर

मेरे हमसफर मेरे हमसफर

तेरा रंग साया बहार का तेरा रूप आईना प्यार का

तुझे आ नज़र में छुपा लूँ मैं तुझे लग न जाए कहीं नज़र

मेरे हमसफर मेरे हमसफर

तेरा साथ है तो है ज़िन्दगी तेरा प्यार है तो है रोशनी

कहाँ दिन ये ढल जाए क्या पता कहाँ रात हो जाए क्या ख़बर

मेरे हमसफर मेरे हमसफर

अब झारखंड में लौटते हैं तो ईडी के कार्यालय के अंदर क्या हुआ था कि कल्पना सोरेन वहां पहुंची थी, यह लाख टके का सवाल है, जिस बारे में कोई कुछ नहीं बोल रहा है। इतना तो साफ है कि ईडी के सारे प्रयासों पर अकेले विधायक सरयू राय पानी फेरे दे रहे हैं। हर बार उनकी तरफ से पूर्व की सरकार की गड़बड़ियों पर जो सवाल सोशल मीडिया में उठाये जा रहे हैं, उससे पता चल रहा है कि रघुवर दास और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उस वक्त उनकी बातों पर ध्यान ना देकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी। अवैध खनन के मुद्दे पर उनके सवाल कुछ ऐसे हैं कि अदालत में दोबारा अपनी बात रखने के पहले ईडी को भी इन मुद्दों पर जांच करने की मजबूरी आ पड़ी है। सरकार के अलावा सभी जानते हैं कि इसमें कौन कौन शामिल था। अब थ्री आर की बारी भी शायद आने वाली है, यह अंदर की बात है।

कुल मिलाकर अपने हेमंत भइया ने शक्ति प्रदर्शन कर कमसे कम इतना तो तय कर दिया है कि ईडी के अधिकारी अब रांची में उनके खिलाफ अधिक एक्टिव होने से परहेज करेंगे। वैसे इसपर आगे क्या हो, उसका निर्देश को दिल्ली से ही आयेगी। तब तक तेल देखिये और तेल की धार देखिये। अभी इलेक्शन की फिल्म का सस्पेंस सीन चल रहा है। पता नहीं फिल्म के आखिर में कौन हीरो और कौन जीरो बनता है।

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