गुजरात विधानसभा के चुनावों के लिए तीन प्रमुख दलों ने ताल ठोंक रखा है। इस बार पहली बार आम आदमी पार्टी की यहां चर्चा हो रही है। वरना इससे पहले यह चुनाव भाजपा वनाम कांग्रेस ही रहा है। सर्वेक्षण यह बता रहे हैं कि भाजपा का पलड़ा भारी है। लेकिन इन सर्वेक्षणों में जितने लोगों से बात की गयी है, उससे चुनावी परिदृश्य पूरी तरह साफ नहीं होता है, यह भी पता चल गया है। शायद इस बात का एहसास भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भी है।
जिसमें इस बार 91 नये चेहरों को उतारा है ताकि इतने दिनों तक सरकार होने की स्वाभाविक नाराजगी को नया चेहरा दिखाकर दूर किया जा सके। इसलिए समझा जा सकता है कि इस बार भाजपा के लिए इस राज्य में फिर से चुनाव जीतना शायद पहले जैसा आसान नहीं होगा। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी ने अगर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाया तो इसका फायदा भाजपा को मिलना तय है।
गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव दो चरणों में एक और पांच दिसंबर को होंगे और आठ दिसंबर को मतगणना होगी। आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ने का असली कारण बिजली और स्वास्थ्य संबंधी उसकी गारंटी है। अनेक लोगों ने दिल्ली में इस प्रयोग के परिणामों को देखा है। इसलिए केजरीवाल की यह बात उन्हें पसंद आ रही है कि देश के वीआईपी लोगों को जो सुविधाएं मिलती हैं, वही सुविधाएं वह आम आदमी को देना चाहते हैं।
यह बात उन इलाकों से भी साफ हो रही है जो पहले पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक रहे हैं। खास तौर पर मुसलमानों ने इस बार नया कुछ करने का मन बनाया है, यह साफ होता जा रहा है। दरअसल अल्पसंख्यकों के अनेक इलाके ऐसे हैं जहां अब लोग कांग्रेस के बदले आम आदमी पार्टी को आजमाना चाहते हैं। वैसे इनमें से कई मानते हैं कि सिर्फ इससे भाजपा को दोबारा सत्ता हासिल करने से नहीं रोका जा सकता है।
अहमदाबाद के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाजपा के काम काज से संतुष्ट हैं और दोबारा उसे ही वोट देना चाहते हैं। यानी कुल मिलाकर अल्पसंख्यक मतों का विभाजन होने जा रहा है। लेकिन आम आदम पार्टी की गारंटियों का असर इस राज्य में है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता भले ही चुनावी परिणाम कुछ भी हो। लोग मुफ्त बिजली और ईलाज के मुद्दे को पसंद कर रहे हैं। साथ ही बच्चों के लिए बेहतर सरकारी शिक्षा की गारंटी भी उन्हें पसंद आ रही है। लोगों का कहना है कि इस नई पार्टी ने दिल्ली में यह काम कर दिखाया है तो उसे आजमाने में दिक्कत क्या है।
चुनावी प्रचार से खुद को अलग रखने वाली कांग्रेस पार्टी फिर से माधव सिंह सोलंकी के दांव को ही आजमाना चाहती है। कांग्रेस के लिए सोलंकी का यह दांव कारगर साबित हुआ था। उन्हें खाम (अंग्रेजी में केएचएएम) फार्मूला को आजमाया था और कामयाबी पायी थी। खाम का अर्थ है क्षत्रिय, हरिजन. आदिवासी और मुसलमान।
इन्हें एकजुट कर सोलंकी ने गुजरात में सीट जीतने का रिकार्ड बनाया था। 27 साल से गुजरात की सत्ता से कांग्रेस बाहर है। इस बीच राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से परेशान मोदी समर्थक मीडिया वाले बार बार राहुल के गुजरात में नहीं होने का सवाल उठाकर यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर कांग्रेस चाहती क्या है।
गुजरात के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस ने भाजपा के पहले से ही काम करना प्रारंभ कर दिया था। इस बार इसमें पटेल को भी जोड़कर कांग्रेस ने अपनी रणनीति को चुपचाप तरीके से अंजाम देने का काम जारी रखा है। गुजरात के चुनाव प्रचार में नहीं आने के बाद भी राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के लिए कहा है कि उनकी पार्टी की सरकार बनने पर पांच सौ रुपये में गैस सिलिंडर, नौजवानों के लिए दस लाख नौकरी, तीन लाख रुपये तक की कर्जमाफी जैसे फैसलों को अमल में लाया जाएगा।
गैस सिलिंडर एक बड़ा मसला है, इसे भाजपा अच्छी तरह महसूस कर रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने उन पांच जिलों पर अधिक ध्यान दिया है जहां आदिवासियों की आबादी 50 से 95 प्रतिशत तक है। इसके अलावा पांच जिला और हैं जहां आदिवासियों की आबादी पचास प्रतिशत से कम होने के बाद भी वे निर्णायक वोट साबित हो सकते हैं। भाजपा को इन इलाकों का चुनावी प्रभाव अच्छी तरह पता है लेकिन कांग्रेस ने काफी पहले से इन इलाकों पर काम किया है। इसलिए अंदरखाने में शह और मात का खेल तो अभी जारी है, जिसका अंतिम परिणाम क्या होगा, अभी कह पाना कठिन है।