रिजर्व बैंक द्वारा जारी दिशा निर्देशों के उल्लंघन पर नाराजगी
राष्ट्रीय खबर
मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशंस समूह की कंपनियों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में उद्योगपति अनिल अंबानी को बड़ी अंतरिम राहत प्रदान की है। बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा अंबानी और उनकी कंपनियों के खिलाफ शुरू की गई सभी दंडात्मक और दमनकारी कार्रवाइयों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। न्यायमूर्ति मिलिंद एन. जाधव की एकल पीठ ने इस दौरान बैंकिंग प्रणाली की कार्यशैली पर कड़े प्रहार किए और स्पष्ट चेतावनी दी कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी निर्देश कोई महज कागजी शेर नहीं हैं, जिन्हें बैंक अपनी सुविधा के अनुसार जब चाहें नजरअंदाज कर दें।
अदालत का यह फैसला मुख्य रूप से बैंक ऑफ बड़ौदा, आईडीबीआई बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस और खातों को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। जस्टिस जाधव ने पाया कि बैंकों की यह पूरी कार्रवाई 15 अक्टूबर 2020 की एक फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर आधारित थी।
अदालत ने टिप्पणी की कि यह रिपोर्ट प्रथम दृष्टया न केवल अधूरी और अनिर्णायक थी, बल्कि इस पर किसी योग्य चार्टर्ड अकाउंटेंट के हस्ताक्षर भी नहीं थे, जो कि कानूनन अनिवार्य है। अदालत ने साफ किया कि वैधानिक प्रक्रिया और प्रक्रियात्मक ढांचे का पालन किए बिना किसी भी खाते को फ्रॉड घोषित करना कानूनी रूप से अस्थिर और गलत है।
सार्वजनिक धन की सुरक्षा और बैंकों की जवाबदेही बैंकिंग प्रणाली की जवाबदेही पर सवाल उठाते हुए न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि बैंक सालों तक गहरी नींद में सोए रहने के बाद अचानक जागकर अपनी मर्जी से कठोर कार्रवाई शुरू नहीं कर सकते। मामले में उल्लेखित 31,580 करोड़ रुपये की विशाल राशि की कथित हेराफेरी का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि इतनी बड़ी रकम किसी सामान्य व्यक्ति को विचलित कर सकती है, जो अपनी मेहनत की कमाई इन बैंकों में इस भरोसे के साथ जमा करता है कि वे सुरक्षित रहेंगे।
अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि बैंक सार्वजनिक धन के कस्टोडियन या संरक्षक हैं और वे आम जनता के प्रति जवाबदेह हैं। यदि बैंक स्वयं कानून के शासन और आरबीआई द्वारा निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं करेंगे, तो इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव देश की व्यापक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अदालत ने जोर देकर कहा कि लेखांकन और ऑडिट मानकों का पालन किसी विकल्प की तरह नहीं, बल्कि अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। इस अंतरिम रोक के साथ अदालत ने बैंकों को नियमों के दायरे में रहकर कार्य करने की नसीहत दी है।