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हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक जोड़े को फिर से मिलाया

उत्तर प्रदेश की पुलिस को फिर अदालत से फटकार मिली

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई

  • दोनों लोग बालिग थे यह प्रमाणित था

  •  इन्हें रोका जाना मौलिक अधिकारों का हनन

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को एक हिंदू-मुस्लिम जोड़े को अवैध रूप से हिरासत में लेने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की कड़ी आलोचना की और पुलिस को निर्देश दिया कि उन्हें उनकी पसंद की जगह पर सुरक्षित पहुँचाया जाए।

न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति दिवेश चंद्र सामंत की खंडपीठ ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त और अलीगढ़ व बरेली के एसएसपी (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) को भी यह सुनि›ित करने का निर्देश दिया कि उनकी सुरक्षा और साथ को किसी भी अतिरिक्त-कानूनी हस्तक्षेप से बचाया जाए।

कोर्ट ने पाया कि महिला बालिग थी, इसलिए उसे पुलिस हिरासत में नहीं लिया जा सकता था, और उसके साथी की हिरासत भी अवैध थी, जिसने उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

कोर्ट ने कहा, यह दलील स्वीकार्य नहीं है कि लड़की को वन स्टॉप सेंटर में रखा जाना था और याचिकाकर्ता संख्या 2 को पार्टियों के अलग-अलग धर्मों के कारण क्षेत्र में सामाजिक तनाव के चलते पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया था। यह उनकी हिरासत को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि सामाजिक दबाव में हिरासत और भी ज्यादा अवैध है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हैं।

कोर्ट ने अंतरधार्मिक जोड़े के मामले की सुनवाई शनिवार को एक विशेष सुनवाई में की, जो हाईकोर्ट के लिए गैर-कार्य दिवस था। याचिकाकतार्ओं के वकील अली बिन सैफ और कैफ हसन द्वारा एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर किए जाने के बाद, खंडपीठ ने 17 अक्टूबर को राज्य को इस जोड़े को अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था।

शनिवार को अलीगढ़ के अकरबाद पुलिस स्टेशन के सब-इंस्पेक्टर हरिमान सिंह ने पुरुष और महिला को खंडपीठ के समक्ष पेश किया। सरकारी अधिवक्ता पतंजलि मिश्रा ने कोर्ट को सूचित किया कि 17 अक्टूबर को महिला को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था, जहाँ उसकी उम्र की पुष्टि की गई और उसे बालिग घोषित किया गया।

मजिस्ट्रेट ने उसका बयान दर्ज किया, जिसमें उसने स्वेच्छा से घर छोड़ने और पुरुष के साथ रहने की इच्छा की पुष्टि की। मजिस्ट्रेट ने उसी दिन उसे स्वतंत्र कर दिया था। कोर्ट ने कहा, लड़की ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए अपने बयान को दोहराया है और कहा है कि उसने याचिकाकर्ता संख्या 2 से शादी कर ली है और वह उसी के साथ रहना चाहती है।

इस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के निर्णय के लिए विवाह की वैधता प्रासंगिक नहीं है। लड़की बालिग है। कोर्ट ने कहा, पुलिस द्वारा पार्टियों की हिरासत अवैध थी और इसने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लड़की और याचिकाकर्ता संख्या 2 के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया। इसके साथ ही कोर्ट ने जोड़े की रिहाई का आदेश दिया। मामले को अगली सुनवाई के लिए 28 नवंबर को सूचीबद्ध किया गया है, जिसमें एसएसपी अलीगढ़ को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।