अफसरों की आपसी खींचतान से भी प्रोजेक्ट भवन का माहौल गर्म
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सुप्रीम कोर्ट के मामले को हवा दे रहे हैं
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कतार में प्रशांत सिंह और भाटिया लगे हैं
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बॉडीगार्ड की तैनाती से प्रारंभ हुआ था मतभेद
राष्ट्रीय खबर
रांचीः प्रोजेक्ट भवन और पुलिस मुख्यालय के बीच भौतिक दूरी बहुत कम है फिर भी हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में यह दोनों कार्यालय परस्पर विरोधी ध्रुव पर मालूम पड़ने लगे हैं। अंदरखाने से जो सूचनाएं छनकर बाहर आ रही हैं, उसके मुताबिक राज्य की अफसरशाही का हाल फिर से रघुवर दास के शासन काल जैसा हो गया है।
यह अलग बात है कि रघुवर दास के शासन काल में इस गुटबाजी के केंद्र में जो अफसर हुआ करता था, वह अभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर है। वरना पूर्व मुख्य सचिव राजवाला वर्मा की अगुवायी में अपना दबदबा रखने वाले बाकी अफसर वही हैं।
दूसरी तरफ अजीब बात यह है कि रघुवर दास के शासनकाल में भी अनुराग गुप्ता मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते थे और अभी राज्य के डीजीपी बनने के पहले ही वह हेमंत सोरेन के करीबी के तौर पर पहचाने गये थे। इसी निकटता की वजह से अजय सिंह को समय से पहले हटाकर उन्हें प्रभारी डीजीपी तक बना दिया गया था। जानकार संकेत दे रहे हैं कि इस प्रोन्नति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जो मामला लंबित है, उसे राज्य के कई आईएएस अधिकारी ही हवा दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विदेश दौरे पर जाते ही यह विवाद खुलकर सामने आ गया है और प्रोजेक्ट भवन के कनीय अधिकारी भी इस बदले हुए माहौल को समझते हुए संभलकर चल रहे हैं। एक सूत्र के मुताबिक ऐसे विवाद में अधिक पड़ना किसी भी कनीय अफसर के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि अंत अंत में भारतीय प्रशासनिक सेवा के सारे अधिकारी एकजुट हो जाते हैं और किसी छोटे अफसर को बलि का बकरा बना दिया जाता है। वैसे विवाद के मूल में मुख्यमंत्री से निकटता ही कारण है। दूसरी तरफ डीजीपी को नापसंद करने वाले अफसरों ने अब हेमंत के बदले कल्पना सोरेन से रिश्ता सुधारना जारी रखना है और संकेत मिल रहे हैं कि इस प्रयास में उन्हें सफलता भी मिली है।
झारखंड के आईपीएस अफसरों की वरीयता सूची में सबसे ऊपर अनिल पाल्टा हैं पर राजनीतिक कारणों से उनपर हेमंत सोरेन को शायद अधिक भरोसा नहीं है। तीसरे और चौथे नंबर पर क्रमशः प्रशांत सिंह और एमएस भाटिया हैं। लिहाजा भारतीय प्रशासनिक सेवा का यह गुट आईपीएस में अपने भरोसे का अफसर तलाश रहा है, जिसे अनुराग गुप्ता को हटाये जाने की स्थिति में गद्दी सौंपी जा सके। सूत्र बताते हैं कि विवाद की शुरुआत बहुत मामूली कारण से हुई थी। अफसरों के साथ बॉडीगार्ड की तैनाती के मुद्दे पर जरा सी असहमति की वजह से अब यह तिल का ताड़ बन चुका है।