Breaking News in Hindi

शहीदों का अखाड़ा फहराया कुंभ में तिरंगा !!

26 जनवरी पर राष्ट्रीय खबर में छपी कहानी  और वीडियो रूपांतरण

राज लक्ष्मी सहाय

कुंभ मेले में बड़ी जिद करके चंदू अपनी दादी के संग गया । अस्सी बरस की दादी और चंदू पंद्रह साल का गांव में चंदू गाय बकरी चराता है। चंदू के मां-बाप मजदूरी करने दूसरे देस गए हैं। अपने यहां रोजगार नहीं। बाहर जाना ही होगा। दो बहनें हैं जो मां -बाप के संग ही रहती हैं। कारखाने में काम करते हैं चंदू के माता पिता।

गांव भर में हल्ला है। यह कुंभ कोई मामूली कुंभ नहीं। एक सौ चौवालिस साल बाद आया है ऐसा मुहूर्त्त। मतलब आखिरी मौका है। कहती है चन्दू की दादी- ‘बड़े भागवान हैं जो अभी जिंदा हैं। नहा लें कुंभ। महा अमृत कुंभ है। धो लें सब लोग अपना अपना पाप।’

अड़ोस पड़ोस वाले भी इस बात पर हामी भरते हैं।

पोता चंदू कहता है-

” ‘मगर दादी इस ठंढ़ा में कैसे डुबकी लगाओगी? कहीं हड्डी अकड़ गई तो ? ”

“‘अरे काहे अकड़ेगा मेरा हड्डी। गांव का हवा पानी से बना हड्डी है। सुद्ध घी खाए हैं। सुद्ध हवा, पानी, तरकारी, अन्न सब सुद्ध सुद्ध। ”

पता है अच्छी तरह चन्दू को। इस मामले में दादी को हराना संभव नहीं। कुछ लोगों को बटोरना होगा । सब संग जाएंगे तो ठीक रहेगा ।

चंदू दादी का मुंह देखता तो आंखों में गंगा मइया तैरती दिखाई देती थी। छल छल खुशी से आह्लादित आंखें। कुंभ नहाने की खुशी रोम रोम से छिटकती है।

लोग जुटाए गए। कुछ बुजुर्ग, अधेड़, पुरुष , स्त्रियॉं और कुछ युवक । सब तैयार हो गए । मगर सबसे बूढ़ी चंदू की दादी ही थी । इसीलिए सबसे अधिक जिम्मेदारी भी चंदू की थी ।

गांव के कुछ लोग अपनी डुबकी का जिम्मा भी दादी को सौंपते गए।

” ‘एक डुबकी मेरा नाम लेकर लगा लेना दादी “’

” चंदू की दादी मेरे तरफ से तीन डुबकी “”

एक की बहू ने कहा –

” दादी मां मेरे गुजरे सास ससुर का नाम लेकर डुबकी लगा लेना । बेचारों की आत्मा तृप्त हो जाएगी।’”

किसी ने कहा

” और मेरे लिए भी दादी एक डुबकी। जरा हाथ भी जोड़ लेना मेरे तरफ से गंगा मइया को’ ”

चंदू तंग आकर कहता –

” क्या मेरी दादी घंटा भर पानी में ही रहेगी? जरा तरस खाओ इसपर तुमलोग। उमर तो देखो दादी का’ ”

” काहे आजिज होता है बबुआ। आधा पुन्न तो उसी को मिलेगा’।

पाप पुण्य का पता नहीं चंदू को । मगर दादी बीमार न पड़ जाए। दूसरे कमाएं पुण्य और ठंढ़े पानी में खड़ी रहे उसकी दादी । यह हिसाब स्वीकार न था चंदू को। उसने ऐलान कर दिया-

‘” निफीकीर रहो सबलोग । सबके बदले हम डुबकी लगाएंगे। नाम ले लेकर गंगा मइया को सुनाएंगे’

देखें इसका वीडियो रूपांतरण

https://youtu.be/4zKU9Fmcg-U

चंदू बचपन से ही दादी के साथ रहता था । उसी के साथ खाता था-सोता था । दादी के सिकुड़न वाली पेट की चमड़ी को मुट्ठी में पकड़कर सो जाता था। कभी कभी रामायण की चौपाइयां बोलते बोलते दादी सो जाती थी। रामजी की त्याग की कहानी कई बार चंदू ने सुनी। सबका मूल यही सीखा कि किसी का भला करने के लिए किसी अन्य को त्याग करना पड़ता है। इसीलिए तय कर लिया कि गांव वालों को पुण्य दिलाने के लिए डुबकी वही मारेगा।

रेलगाड़ी में पंद्रह लोग थे । उसके गांव के । रास्ते भर दादी अपने पिछले कुंभ का व्यौरा सुनाती रही । कब आधा कुंभ था, कब पूरा कुंभ था । कितना बार कुंभ नहाया।

कल्पवास भी किया। पहले बड़ा कष्टदायक था तीर्थ। दादी ने बताया-

कुंभ मेला में दिन भर तो लोग नहाते हैं। डुबकी लगाते हैं। फिर जप ध्यान हवन सब होता है।कीर्तन गूंजता है। रात में जब गंगा मइया स्थिर होती है तो आकाश से देवता ऋषि मुनि गंधर्व सब तारे बनकर उतरते हैं। कुंभ नहाते हैं। अमृत में डुबकी लगाकर लौट जाते हैं। अमृत का चार बूंद गिरा था अमृत कलश से। इतने से ही नदियां पावन हो गईं। और तभी से मानव अपने पाप धोने कुंभ जाता है । धन्य है गंगा- जमुना -सरस्वती। धन्य है प्रयाग।

साधु संतों के कई अखाड़े सजधज के साथ आते हैं। कुंभ स्नान कर चले जाते हैं। अखाड़ों का दृश्य चंदू के लिए कौतुक भरा आश्चर्य था।

चन्दू ने इतनी बड़ी भारी संख्या में गेरुआ वस्त्रों से लिपटे संतों को नहीं देखा था । अजीब अजीब विचित्र वेश भी देखे।

एक ढाल बनकर था चंदू अपनी दादी के साथ। अगली सुबह गंगाजी में सब नहाएंगे। एक शिविर में जगह मिल गई थी उन्हें । लगातार सामधुन भजन कीर्तन से उमंग जागृत थी । पंद्रह साल के चंदू के लिए कुंभ मेले का परिसर एक अचंभा था।

कहीं प्रवचन ,कहीं भंडारे की खुशबू कहीं मोती माला शंख की दुकानें ।

अंधेरा होने लगा ।

झाल मजीरे की आवाज शिविरों के भीतर सिमटने लगी । गंगा मइया भी शान्त और कलान्त हो उठी । दिन भर झकोरे खाती उसकी लहरें विश्राम के लिए लालायित होने लगीं। गांव वाले थके थे। कंबल बिछा ओढ़कर लेटे और सो गए। चंदू अपनी दादी के पांव दबाने लगा । बेचारी बूढ़ी दादी तुरंत खरे खरे खर्राटे लेने लगी।

स्वच्छ धवल साड़ी पहने उसकी दादी ऐसी लगती थी मानों गंगा की सबसे अधिक थकी एक लहर शिविर में छिपकर आराम करती हो। चंदू को अचानक दादी की बात याद आई। रात में देवगण ऋषि मुनि तारे बनकर गंगा में उतरते हैं। कुंभ नहाते हैं। अमृत में डुबकी लगाते हैं।

तीव्र जिज्ञासा हुई। एक छटपटाहट सी लगी। शिविर से निकला चंन्दू। आकाश की ओर नजरें उठीं। तारे चमक रहे थे । पच्चीस जनवरी की सर्द रात। कुछ अलाव ठंढ़े हो चके थे । कुछ बुझे अलाव की राख हवा के संग बिखरती और किनारे के रेत में मिल जाती थी।

चंदू को देखना था कि तारे जमीन पर कैसे उतरते हैं। कैसे गंगा के जल पर बिछ जाते हैं। बिजली की रोशनी तो थी मगर स्याह अंधेरे को ओढ़ कर कुछ मद्धिम मद्धिम होती नजर आती थी।

गंगा के तीर से कुछ ही दूर पर खड़ा था चंदू। थोड़ी देर बाद बालू पर बैठ गया। उसके कान में बंधा मफलर ठंढ़ी हवा से जूझ रहा था। दोनों घुटनों पर टुढ्ढी टिकाए आसमान देख रहा था चंदू। उसे अपने माता -पिता की याद आई । कारखाने से लौटकर मां ने खाना बनाया होगा। सब खाकर सोते होंगे। और तभी अचानक चंन्दू की नजर पड़ी एक स्त्री पर। देवी जैसी दिव्य स्त्री। सफेद चांदी जैसी विशाल साड़ी का आंचल। वह बड़ी शीध्रता से गंगा में एक स्थान से दूसरे स्थान पर दौड़ती हुई नजर आई । गंगी के जल को अपने ही आंचल में भरती और छान देती। जैसे छन्नी से चाय छानी जाती है। जल छानने पर कालिख का अम्बार सा बच जाता है आंचल में। अलकतरे की भांति काला चिपचिपा सा पदार्थ। बड़े जतन से उसे नोच नोचकर वह किनारे पर फेंक रही थी। चन्दू डर गया। उठ खड़ा हुआ मगर भाग न सका। उसे तो तारों की प्रतिक्षा थी।

उस स्त्री ने पुकारा-

” इधर आओ चंदू ”

आश्चर्य हुआ चंदू को उस देवी को उसका नाम कैसे पता। कांपती आवाज में पुछा –

“कोन हैं आप?”

-” मैं गंगा ”

-चंदू की आंखे फैल गईं

” “गंगा मइया…” हॉं हॉं तुम्हारी गंगा मइया ”

“आप अपने ही जल को क्यों छान रही हैं”?-गंगा मइया ने कहा –

दिन भर के पाप धुले हैं इसमें। कितने काले पाप हैं। देख रहे हो चंदू “।

“ मगर कल फिर डुबकी मारेंगे सब लोग। फिर पाप धोएंगे ”

“कोई बात नहीं पुत्र। मगर आज जल को स्वच्छ करना ही होगा।

“देवता लोग आएंगे क्या?”चंदू ने पूछा

“देवता तो नहीं आएंगे। आज एक नया अखाड़ा आने वाला है स्नान के लिए ”

” सब अखाड़े तो नहा चुके मइया। अब कौन सा नया अखाड़ा आएगा?”

अब तक चंदू सहज हो गाय था। गंगा मइया का मिसरी जैसी वाणी और स्वच्छ चमक से चंदू मंत्रमुग्ध खिंचा जा रहा था। गंगा मइया बोलीं-

”आज भारत की माटी के शहीद क्रान्तिकारी आकाश से उतरेंगे। स्नान करेंगे। कल छब्बीस तारीख है। सब तिरंगा फहराएंगे यहॉं । मुझे तिरंगे की साड़ी से ढक देंगे। उषाकाल में होगा यह सब। ब्रह्म मुहूर्त में अनुष्ठान होगा ।

देखोगे तुम ?”

चंदू के लिए अप्रत्याशित थीं यह बातें। जूना अखाड़ा निरंजन अखाड़ा आदि नाम तो सुना था। मगर शहीद अखाड़ा… गांव में गाय चराते हुए वह पाठशाला से गुजराता था तो कभी कभी भगत सिंह , सुभाष ,आजाद ,तिलक ,गांधीजी का नाम सुनता था। बच्चे स्वंतत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर नाटक की तैयारी करते थे। अभ्यास करते थे। छांव पाने के लिए चंदू चार दीवारी से सटकर बैठ जाता था। वन्दे मातरम – जय हिंद -भारत माता की जय – आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।ऐसे नारे सुनाई पड़ते थे। तीसरी कक्षा के बाद पढ़ न सका था चंदू। न पोशाक था न फ़ीस के पैसे। निकाल दिया गया। गाय चराने लगा। जीवन प्रकृति से शिक्षा मिलने लगी दादी सबकी शिक्षिका बन गई।

आजादी की लड़ाई के बारे में दादी से सुना था। पंद्रह वर्ष की उम्र में खुदीराम को फांसी दी गई थी। चंदू भी पंद्रह वर्ष का था। उसकी रुह कांप गई।

गंगा मइया अब भी जल अपने आंचल से छान रही थी। हम भी आप की मदद करें गंगा मइया”? -“पाप की इस कीचड़ को तुम मत छुना”। ऐसा कहते गंगा मां ने काले कीचड़ को बाहर फेंका। एक कण का छींटा लगा चंदू को। वह चीख उठा-

” हे भगवान जल गया ,जल गया ”

गंगा मइया ने शीध्रता से जल छींटा मारा चंदू परा कहा-

ऐसे ही भयंकर कष्टदायक पाप मुझे सौंपकर चले जाते हैं। भला दूषित जल में कैसे स्नान करेंगे मेरे कलेजे के टुकड़े। मेरे क्रान्तिकारी शहीद बेटे। उसके आने से पहले जरा खुद को स्वच्छ तो कर लूं मैं। मेरे देवता तो मेरे शहीद बेटे हैं। तारों से अधिक चमकीले।

और तभी बिखरने लगी उज्जवल रोशनी। आकाश से जैसे अनेकों चांद की रश्मि बरसने लगी। गंगा का रुप धवल। जल मानोंं बर्फ की चादर बिछ गई। जैसे हिमालय अपना मस्तक धरती पर लेट गया हो। कहीं दूर से वंदे मातरम की धुन उभरने लगे आकाश के तारे पुष्प बन गंगा के आंचल में झरने लगे। देवी गंगा दोनों बांहे फैलाए खड़ी थी। भारत माता की शहीद पुत्रों के रेखाचित्र अंकित होते दिखाई दिए। कहीं भारत की छवि उभरती गले में फांसी की रस्सी की माला पहने तो कहीं अट्टहास करता सुखदेव। राजपुरु ,तारकनाथ ,रासबिहारी,ऊधम सिंह ,सावरकर ,श्यामजी , रामप्रसाद.बिस्मिल,तेजसिंह , अपने पूर्ण तेज के साथ उजियारा फैलाते झलक दिखा जाते। वीरेंद्रनाथ सूर्यसेन और न जाने कितन भारत माता के गुमनाम लाल धरती पर पुष्प बन बरस रहे थे। चंदू की आंखे जड़वत थीं। अपलक निहार रहा था चंदू गंगा मइया की लहरे लपक लपक कर उन्हें अपनी गोद में भरती जाती थी। छपाक छपाक डुबकी लगाने की आवाज अंतरिक्ष को हिला रहीं थी। शहीदों का अखाड़ा पूर्ण शौर्यमय तेजमय अपना झाकी का दिव्य प्रदर्शन कर रहा था। केवल दो दर्शक थे – चंदू और गंगा मइया। शहीद कुंभ स्नान कर रहे थे।

कुछ ही पलो में गंगा मइया का आंचल तीन रंग के पुष्पों से सज गया। विशाल तिरंगा बन गया था गंगा मइया का आंचल। लहरे नृत्य कर रहीं थी। मध्य में चक्र का स्थान पर खड़ी थी गंगा देवी।

डुबकी लगाकर निकले वीर शहीद। सुनहली शलाखों लगे अनेको तिरंगे गंगा के तीर पर कतार में सज गए। मानों दीये की कतार सजी हो। अपनी सांसों के धारा तोड़कर उन्होंंने ही तो बुना था तिरंगे को। अपनी देह के रक्त से रंगा था । अपने जोश की गर्मी से सुखाया था। फिर क्यों न फहराएं तिरंगा वे अमर शहीद।

चंदू प्रस्तर बना खड़ा था। गंगा मइया ने एक लहर से भिगोकर उसे झकझोरा। कहा –

“तिरंगा फहर रहा है चंदू।

राष्ट्रगान तो गाओ”

यंत्रवत उसके कंठ फूट पड़े। सूरज की लाली शहीदों के माथे पर तिलक कर रही थी। चन्दू जोर जोर से राष्ट्रगान गा रहा था। गान समाप्त होते ही सारे तिरंगे उड़ते हुए आकाश की ओर विलीन हो गए।

चन्दू शिविर की ओर लौट चला। सोच रहा था- उसने सचमुच देवों को ही आकाश से उतरते देखा था।

चंदू के मन में एक सवाल कौंधा।

“ऐसा अखाड़ा सिर्फ आकाश से ही क्यों उतरता है? क्या भारत की माटी पर ऐसा अखाड़ा नहीं बन सकता?”

तभी –

“अरे चंदू बेटा- कहॉं चला गया रे? ”

पुकारती हुई दादी शिविर से निकल रही थी।

दादी का हाथ थाम लिया चंदू ने –

“हम यहीं तो हैं।जल्दी चलो अभी पहले पहले नहा लो दादी। अभी गंगा मइया का जल साफ और पवित्र है”

“चल बेटा गांव के लोगों के लिए डुबकी लगाना है ”

तिरंगे भी बिक रहे थे। दादी ने कागज का तिरंगा खरीदा और चंदू को पकड़ा दिया। कहा- “नहाकर कमीज में साट लेना ” चंदू ने दादी को देखा-गंगा मइया सी लगी दादी ।

उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा।