गरीब और मध्यम के जोखिम लेने से दिखने लगा है परिवर्तन
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पहले वोट बैंक की राजनीति होती थी
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असमानता का दायरा देश में बढ़ता गया
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महिला सशक्तिकरण का असर पूरे देश में
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि उनकी सरकार ने अच्छी आर्थिक नीतियों एवं सुशासन के बल पर जनता का आत्म विश्वास बढ़ाया है और गरीबों एवं मध्यम वर्ग के बीच जोखिम लेने की संस्कृति को पुनर्जीवित किया है जो भारत में बड़े बदलाव ला रही है। श्री मोदी ने यहां देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र हिन्दुस्तान टाइम्स के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम में यह भी कहा कि उनकी सरकार ने निवेश से रोजगार, विकास से गरिमा का जो मंत्र दिया है, उससे लोगों का जीवन आसान हुआ और उनमें सम्मान एवं स्वाभिमान का भाव पैदा हुआ जिसने देश एवं समाज के विकास को भी गति दी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन लोगों ने लंबे समय तक भारत की राजनीति और नीतियों को देखा है। उन्हें पहले एक जुमला अक्सर सुनाई देता था- अच्छी आर्थिकी यानी बुरी राजनीति। विशेषज्ञ कहे जाने वाले लोग इसे खूब बढ़ावा देते थे। लेकिन इससे पहले की सरकारों को हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने का बहाना मिल जाता था। यह एक तरह से कुशासन को, अक्षमता को छिपाने का माध्यम बन गया था।
पहले सरकार इसलिए चलाई जाती थी कि बस अगला चुनाव जीत लिया जाए। चुनाव जीतने के लिए एक वोट बैंक बनाया जाता था और फिर उस वोट बैंक को खुश करने के लिए योजनाएं बनती थी। इस प्रकार की राजनीति ने सबसे बड़ा नुकसान यह किया कि देश में असंतुलित असमानता इसका दायरा बहुत बढ़ता गया। कहने को विकास बोर्ड लग जाता था दिखता नहीं था।
असंतुलित अवस्था ने, इस मॉडल ने जनता का सरकारों के प्रति विश्वास तोड़ दिया। उन्होंने कहा, हम आज इस विश्वास को वापस लाए हैं। हमने सरकार का एक उद्देश्य तय किया है। ये उद्देश्य वोटबैंक वाली जो राजनीति होती है ना उससे हजारों मील दूर है। हमारी सरकार का उद्देश्य एक बड़ा है, विराट है, व्यापक है।
हम, जनता का विकास, जनता द्वारा विकास एवं जनता के लिए विकास के मंत्र को लेकर चल रहे हैं। हमारा उद्देश्य नया भारत बनाने का है, भारत को विकसित बनाने का है। और जब हम इस विराट लक्ष्य को लेकर निकल पड़े हैं तो भारत की जनता ने भी हमें अपने विश्वास की पूंजी सौंपी है। उन्होंने कहा कि जब जनता का विश्वास बढ़ता है, आत्मविश्वास बढ़ता है तो देश के विकास पर एक अलग ही प्रभाव दिखता है।
पुरानी विकसित सभ्यताओं से लेकर आज के विकसित देशों तक एक चीज हमेशा से आम रही है, ये आम चीज है जोखिम उठाने की संस्कृति। एक समय था जब हमारा देश पूरे विश्व के कारोबार और संस्कृति का हॉटस्पॉट था। हमारे व्यापारी एवं नाविक एक तरफ दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ काम कर रहे थे, तो दूसरी ओर अरब, अफ्रीका और रोमन साम्राज्य से भी उनका गहरा नाता जुड़ता था।
उस समय के लोगों ने जोखिम लिया और इसलिए भारत के उत्पाद एवं सेवाएं सागर के दूसरे छोर तक पहुंच पाए। आजादी के बाद हमें जोखिम लेने की इस संस्कृति को और आगे बढ़ाना था। लेकिन आजादी के बाद की सरकारों ने तब के नागरिकों को वो हौसला ही नहीं दिया, इसका परिणाम ये हुआ कि कई पीढ़ियां एक कदम आगे बढ़ाने और दो कदम पीछे खींचने में ही गुजर गई।
अब बीते 10 सालों में देश में जो परिवर्तन आए हैं उन्होंने भारत के नागरिकों में जोखिम उठाने की संस्कृति को फिर से नई ऊर्जा दी है। उन्होंने कहा, आज हमारा युवा हर क्षेत्र में जोखिम उठाने लगा है। कभी एक कंपनी शुरू करना जोखिम माना जाता था, 10 साल पहले तक मुश्किल से किसी स्टार्टअप का नाम सुनते थे…आज देश में रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स की संख्या सवा लाख से ज्यादा हो गई है।
एक जमाना था कि खेलों में और खेलों को पेशे के रूप में अपनाने में भी जोखिम था, लेकिन आज हमारे छोटे शहरों के नौजवान भी ये जोखिम उठाकर दुनिया में देश का नाम रोशन कर रहे हैं। स्वसहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं का भी उदाहरण है। आज देश में करीब एक करोड़ लखपति दीदी बनी हैं। ये गांव-गांव में उद्यमी बनकर अपना कुछ बिजनेस चला रही हैं।
मुझे कुछ समय पहले एक ग्रामीण महिला से संवाद करने का अवसर आया, उस महिला ने मुझे बताया था कि कैसे उसने एक ट्रैक्टर खरीदा और अपनी कमाई से पूरे परिवार की आय बढ़ा दी। एक महिला ने एक जोखिम लिया और अपने पूरे परिवार का जीवन बदल डाला। जब देश के गरीब और मध्य वर्ग के लोग जोखिम लेना शुरू कर दें तब बदलाव सही मायने में दिखने लगता है।