प्रमुख साहित्यकारों और नेताजी की याद भी जुड़ी है आयोजन से
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बंकिम चंद्र की कई रचनाएं यहां पर
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आज भी नेताजी के घऱ जाता है प्रसाद
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शानोशौकत खत्म पर नियम से होती है पूजा
राष्ट्रीय खबर
जयनगरः इस शहर को देश में खास तौर पर बंगाली मिठाई मोआ के लिए जाना जाता है। इसी शहर की दूसरी विशेषता यह है कि यह मूल गंगा के प्राचीन प्रवाह के साथ साथ दो क्षेत्रों में भी विकसित हुआ है।
एक ज़ायनगर है, दूसरा मोजिलपुर है। जयनगर में कुछ ऐतिहासिक बनी घर अभी भी अपनी परंपराओं का पालन कर रहे हैं। दुर्गा पूजा दक्षिणी 24 परगना दुर्गा पूजा में प्राचीन रइसों में से एक है।
सन 1675 राम चंद्र दत्त कोलकाता से सुंदरबन आए और अपने ज़मींदारी का वर्चस्व स्थापित किया। जमींदारी संभालने के बाद उन्होंने भी स्वप्नादेश पाकर यहां दुर्गा पूजा की नींव रखी।
इस लिहाज से इस पूजा के अब करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। उनकी जमींदारी अभी के हिसाब से पांच मौजे और तीन पुलिस स्टेशनों तक फैली हुई थी। ज़मींदार प्रणाली अब समय के नियम में नहीं है।
लेकिन प्राचीन अनुष्ठान बने हुए हैं। देवी को अभी भी इस दत्त घर में दस दिनों के लिए पूजा जाता है। जमींदारी समाप्त होने के बाद परिवार के सदस्य देश के विभिन्न हिस्सों में हैं, लेकिन पूजा के दौरान, हर कोई यहां लौट आता है।
पहले जमींदारी की वजह से इस पूजा की शानोशौकत कुछ और ही थी। अब वह शानोशौकत नहीं रही पर पारंपरिक विधि से पूजा का आयोजन अब भी होता है।
इस पूजा के साथ दूसरा महत्वपूर्ण इतिहास यह जुड़ा है कि पश्चिम बंगाल के कई प्रमुख लोगों ने भी इस पूजा में भागीदारी की है। जमींदारी प्रथा जारी होने के दौरान यहां पूजा प्रारंभ होने के पहले बंदूक से गोलियां दागी जाती थी। अब वैसा नहीं होता पर आतिशबाजी होती है।
बांग्ला साहित्य के सम्राट कहे जाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्यान इस घर में आते थे। वह छुट्टी व्यतित करने के साथ साथ यहां के दुर्गापूजा में शामिल होते थे। इसी दत्तो बाड़ी में रहते वक्त उन्होंने कई प्रमुख रचनाओं को तैयार किया था। उनके उपन्यासों में कई बार इस घर का उल्लेख आया है।
परिवार के एक सदस्य शिवेंद्र नारायण दत्त ने कहा, हालांकि परिवार के सदस्य काम पर कोलकाता सहित विभिन्न स्थानों पर फैले हुए है, सभी पूजा के मौके पर यहां आते हैं।
उन्होंने ही बताया कि बारुईपुर के तत्कालीन मजिस्ट्रेट और साहित्यिक सम्राट बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जमींदर दत्त के बेटे योगेंद्र नारायण दत्त घर के बचपन के दोस्त थे। वह हमेशा इस घर में आया करते थे।
शिवेंद्र ने यह भी कहा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का इस दत्त घर के साथ गहन लगाव रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन की कई बैठकें इसी घर के बाहरी कमरों में होती रही। अब तक, यहां के पूजा का प्रसाद नेताजी सुभाष चंद्र के घर भेजा जाता है।
जमींदारी खत्म होने की वजह से विशाल प्रासाद का रखरखाव अब संभव नहीं होता। फिर भी इस परिवार से जुड़े लोग नियम पूर्वक पूजा के आयोजन में पूरी सक्रियता के साथ भाग लेते हैं।