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हम शिक्षा व्यवस्था के लिए क्या कर रहे हैः मुख्य न्यायाधीश

पंजाब के एनआरआई कोटा की सुनवाई में शीर्ष अदालत नाराज

  • यह व्यवस्था धोखाधड़ी ही है

  • शिक्षा में यह धंधा बंद हो अब

  • मेडिकल पात्रता परीक्षा के बाद मुद्दा

 

नई दिल्ली: कॉलेज प्रवेश में एनआरआई कोटा प्रणाली धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा क्योंकि इसने पंजाब सरकार की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ इस कोटे के माध्यम से एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए संशोधित नियमों को खारिज कर दिया गया था।

पंजाब सरकार ने 20 अगस्त की अधिसूचना में एनआरआई उम्मीदवार की परिभाषा को व्यापक बनाया था और इस कोटे के तहत एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के रिश्तेदारों को पात्र बनाया था।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस अधिसूचना को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि यह संभावित दुरुपयोग के लिए दरवाजा खोलता है।

आज सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार के वकील ने कहा कि हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश एनआरआई कोटा प्रवेश के लिए एक व्यापक परिभाषा का पालन कर रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, हर कोई उस परिभाषा का पालन कर रहा है। यह व्यवहारिक तौर पर गलत है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, आप कह रहे हैं कि एनआरआई के निकटतम रिश्तेदार पर भी विचार किया जाएगा। यह क्या है?

यह तो राज्य द्वारा पैसे कमाने की एक चाल है। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश का समर्थन किया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हमें अब एनआरआई कोटा का यह धंधा बंद कर देना चाहिए! यह पूरी तरह से धोखाधड़ी है।

हम अपनी शिक्षा प्रणाली के साथ यही कर रहे हैं। उन्होंने कहा, परिणाम देखिए। जिन लोगों को तीन गुना अधिक अंक मिले हैं, उन्हें प्रवेश नहीं मिलेगा। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि सभी आवेदक भारत से हैं। वे सिर्फ रिश्तेदार हैं, ताई (चाची), ताऊ (चाचा), चाचा, चाची। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, वार्ड क्या है? आपको बस इतना कहना है कि मैं एक्स की देखभाल कर रहा हूं।

उन्होंने कहा कि न्यायालय ऐसी किसी चीज का समर्थन नहीं कर सकता जो स्पष्ट रूप से अवैध हो। पंजाब के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में लगभग 185 एनआरआई कोटा सीटें हैं। शीर्ष अदालत का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण समझा जा रहा है क्योंकि हाल ही में मेडिकल परीक्षा के प्रश्नपत्रों के लीक का मामला सामने आया था।

इस मामले की अभी सीबीआई जांच चल रही है। प्रश्न पत्र लीक होने के मामले में भी अनेक स्तरों पर साफ तौर पर यह आरोप लगाया गया था कि दरअसल पैसे वालों ने योग्यता रखने वाले छात्रों का हिस्सा सिर्फ पूंजी के बल पर छीन लिया है। इससे देश को भविष्य में बेहतर डाक्टर नहीं मिल पायेंगे क्योंकि अनेक गरीब छात्र सिर्फ पैसे की कमी की वजह से निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला ही नहीं ले सकते हैं।

दूसरी तरफ जो बहुत अधिक पैसा देकर यह पढ़ाई पूरी करेंगे, उनकी प्राथमिकता भी पैसा कमाने की होगी। इससे भारत की चिकित्सा व्यवस्था का और भी निजीकरण हो जाएगा। बता दें कि मोदी सरकार द्वारा एक देश एक चुनाव का नारा आगे बढ़ाने के बाद दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जंतर मंतर से एक देश एक शिक्षा का मुद्दा उठा दिया था। अपने जनता अदालत के दौरान उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि नेता सिर्फ चुनाव के वक्त ही हाथ जोड़े पाये जाते हैं।

एक देश एक चुनाव लागू हुआ तो सारे नेता पांच साल में एक बार ही नजर आयेंगे। इससे तो बेहतर है कि चुनाव का क्रम चलता रहे और मजबूरी में ही सही नेताओं को जनता के दरवाजे पर आना पड़े। इसी क्रम में उन्होंने कहा था कि चुनाव से बेहतर है कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था एक जैसी हो, जिसमें अमीर और गरीब के बच्चों को एक जैसी शिक्षा मिले।

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