हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने अप्रत्याशित पहल कर दी
राष्ट्रीय खबर
नईदिल्लीः हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बुधवार को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित किए गए सदस्यों की पेंशन रोकने के लिए एक संशोधित विधेयक पारित किया। दलबदल करने वालों पर शिकंजा कसते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) संशोधन विधेयक, 2024 पेश किया, जिसका उद्देश्य विधायकों की पेंशन बंद करके उन्हें दलबदल करने से रोकना और हतोत्साहित करना है।
विधेयक के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति संविधान की दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत किसी भी समय अयोग्य घोषित किया गया है, तो वह अधिनियम के तहत पेंशन का हकदार नहीं होगा। विधेयक में इस संशोधन के तहत अयोग्य घोषित किए गए विधायकों द्वारा ली जा रही पेंशन की वसूली का प्रावधान भी शामिल है। अधिनियम की धारा 6बी के तहत, पांच साल तक की अवधि तक सेवा करने वाला प्रत्येक विधायक 36,000 रुपये प्रति माह पेंशन पाने का हकदार है।
धारा 6(ई) में आगे कहा गया है कि प्रत्येक विधायक को पहले कार्यकाल की अवधि से अधिक हर वर्ष 1,000 रुपये प्रति माह की अतिरिक्त पेंशन दी जाएगी। संविधान की दसवीं अनुसूची – जिसे लोकप्रिय रूप से दलबदल विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है – राजनीतिक दलबदल को रोकने के लिए बनाई गई है।
दलबदल विरोधी कानून 1985 में संसद द्वारा पारित किया गया था। छह कांग्रेस विधायकों – सुधीर शर्मा, रवि ठाकुर, राजिंदर राणा, इंदर दत्त लखनपाल, चेतन्य शर्मा और देविंदर कुमार – को इस साल फरवरी में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 2024-25 के बजट को पारित करने और कटौती प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन से दूर रहकर पार्टी व्हिप की अवहेलना की थी।
अब इस पहल के बाद यह देखना रोचक होगा कि कितने अन्य राज्य अथवा संसद भी इस तरीके का पहल कर पाती है। वैसे हिमाचल प्रदेश की इस पहल का एक दूसरा राजनीतिक मकसद भाजपा के ऑपरेशन लोटस के खिलाफ भी प्रतिरोध खड़ा करना है। हिमाचल प्रदेश में इसी दलबदल की वजह से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर प्रसिद्ध अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी राज्यसभा का चुनाव हार गये थे।