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कैप्टन अंशुमन ने झारखंड की याद दिलायी

शहीदों की चिताओँ पर लगेंगे हर बरस मेले


  • माता पिता सड़क पर क्यों आ जाएं

  • लोहरदगा एसपी अजय सिंह की याद

  • शहीद एसपी के पिता रोते हुए निकले थे


रजत कुमार गुप्ता

 

रांचीः राष्ट्रीय स्तर पर शहीद कैप्टन अंशुमन के अभिभावकों के बयान ने देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सरकारी नीति में किसी बदलाव की आवश्यकता है। दरअसल अपने शहीद बेटे को भारत का दूसरा सबसे बड़ा शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र मिलने के कुछ दिनों बाद, कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने भारतीय सेना की निकटतम परिजन (एनओके) नीति में संशोधन की मांग की है। मानदंड को गलत बताते हुए पिता रवि प्रताप सिंह ने कहा कि उनके बेटे की मौत के बाद उनकी विधवा स्मृति सिंह घर से बाहर चली गईं और वर्तमान में उन्हें अधिकांश अधिकार मिल रहे हैं। रवि प्रताप सिंह और उनकी पत्नी मंजू सिंह ने कहा कि उनके बेटे की मौत के बाद उनकी विधवा स्मृति सिंह घर से बाहर चली गईं और वर्तमान में उन्हें अधिकांश अधिकार मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके बेटे की दीवार पर लटकी हुई एक तस्वीर ही उनके पास बची है। श्री सिंह ने कहा, एनओके के लिए निर्धारित यह मानदंड सही नहीं है। उन्होंने कहा, इसलिए हम चाहते हैं कि एनओके की परिभाषा तय की जाए। यह तय होना चाहिए कि अगर शहीद की पत्नी परिवार में रहती है तो किस पर कितनी निर्भरता है। कैप्टन सिंह की मां ने कहा कि वे चाहती हैं कि सरकार एनओके नियमों पर फिर से विचार करे ताकि दूसरे अभिभावकों को परेशानी न उठानी पड़े।

कैप्टन अंशुमान के पिता ने यह भी दावा किया कि स्मृति वीरता पुरस्कार और अनुग्रह राशि लेकर ऑस्ट्रेलिया भागने की योजना बना रही थी। यह आरोप शहीद सैनिक के माता-पिता द्वारा यह दावा किए जाने के कुछ ही दिनों बाद आया है कि उनकी बहू वीरता पुरस्कार के साथ-साथ उनके बेटे के कपड़े और फोटो एलबम भी अपने साथ पंजाब के गुरदासपुर स्थित अपने घर ले गई है।
मीडिया में आई खबरों में यह भी कहा गया था कि स्मृति ने अपने पति के आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज स्थायी पते को लखनऊ से बदलकर गुरदासपुर कर लिया था, ताकि सिंह के बारे में उनसे कोई भी बातचीत हो सके। कैप्टन अंशुमान के पिता ने सेना के ‘निकटतम परिजन’ कानून में भी बदलाव की मांग की।
यह कानून यह निर्धारित करता है कि सेवा में किसी व्यक्ति के साथ कुछ होने पर उसकी संपत्ति का वारिस कौन होगा और उसे चिकित्सा संबंधी जानकारी कौन देगा। नामांकित व्यक्ति की अवधारणा के समान ही, एनओके नियम यह भी निर्धारित करते हैं कि अनुग्रह राशि किसे मिलेगी। जब कोई व्यक्ति सेना में शामिल होता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावक का नाम एनओके में दर्ज होता है। विवाह हो जाने पर, पति या पत्नी का नाम उनके अगले रिश्तेदार के रूप में माता-पिता के नाम के स्थान पर ले लिया जाता है।

 

इस बारे में बिहार के पूर्व डीजी अरविंद पांडेय ने भी अपने एक वीडियो में इसका इशारा किया है और शहीद के माता पिता का भी ध्यान रखने की हिमायत की है।

रांची और आस पास के जिलों में एक दबंग और बेखोफ पुलिस अधिकारी के रुप में परिचित अरविंद पांडेय ने बिना कुछ कहे ही जिस बात का उल्लेख किया है, वह शायद लोहरदगा के एसपी अजय कुमार सिंह की नक्सलियों द्वारा की गयी हत्या से जुड़ा है।

देखिये अरविंद पांडेय ने अपने वीडियो मे क्या कहा है

दरअसल इस बहस ने झारखंड की एक पुरानी घटना की याद ताजा कर दी है। झारखंड राज्य के गठन के ठीक पहले लोहरदगा के तत्कालीन एसपी अजय कुमार सिंह की पेशरार जंगल के पास हत्या कर दी थी। 4 अक्टूबर 2000 को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर नाम के आतंकवादी ग्रुप ने लोहरदग्गा के पेशरार गांव में अजय को गोली मार दी थी। 1995 बैच के आईपीएस अजय अपने बेखौफ तेवरों के लिए मशहूर थे और वह बिहार के पहले ऐसे आईपीएस अधिकारी थे, जो वर्दी में नक्सलवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए। उनकी पत्नी अनुपम श्रीवास्तव भी आईपीएस थी और उस दौरान रांची में सिटी एसपी के

उस काल के ग्रामीण एसपी केके भट्ट ने सारा कार्यक्रम निपट जाने के बाद अजय सिंह के पिता का टिकट कटाया था। उस दौर के प्रत्यक्षदर्शी पुलिस अधिकारी अब भी याद करते हैं कि अजय सिंह के आवास पर मौजूद सारा सामान ट्रक पर लादकर लखनऊ ले जाया गया और अजय सिंह के पिता वहां मूकदर्शक बनकर देखते रहे। पूर्व पुलिस अधिकारियों के मुताबिक ट्रेन पर जाने के वक्त उनके पिता रो पड़े और लोगों ने उन्हें यह कहते हुए सुना, अरे अजय, तुम्हारी शादी के लिए जो कर्ज लिया था वह भी अब तक चुकाया नहीं है

दूसरी तरफ अपने पिता और पूर्व डीजी वाईएन सक्सेना के प्रभाव तथा वक्त की जरूरत को देखते हुए केंद्र सरकार ने अनुपम सक्सेना को कैडर यूपी कर दिया। जहां पर पुलिस एडीजी के पद तक वह पहुंची है। वर्तमान में वह आगरा में पदस्थापित है। हादसे के वक्त देवघर में ठेकेदारी करने वाले शहीद अजय सिंह के पिता को अनुकंपा के आधार पर एक गैस एजेंसी मिली थी। लेकिन शहीद के परिवार को मिलने वाले शेष लाभों से वह वंचित रहे।

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