अवमानना के मामले में उलझाने की चाल
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चंद्रचूड़ की अदालत का है फैसला
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तय है दो साल का होगा कार्यकाल
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भाजपा की मदद की साजिश में कौन
राष्ट्रीय खबर
रांचीः जमानत पर बाहर आने के बाद दोबारा मुख्यमंत्री बनने से हेमंत सोरेन का कौन करीबी परेशान और नाराज है। इस बात का खुलासा अंदरखाना से ही संभव है पर प्रोजेक्ट भवन में चल रही सूचनाओं के मुताबिक यदि ऐसा होता है तो राज्य सरकार फिर से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के मामले में उलझ जाएगी। राज्य सरकार के काम काज और अदालतों के दांव पेंच को समझने वाले मानते हैं कि जमानत पर बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन का किसी नये कानूनी विवाद में उलझना स्वाभाविक तौर पर उनके राजनीतिक सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा।
दरअसल यह चर्चा कई दिनों से चल रही है कि सरकार शीघ्र बडे पैमाने पर आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का तबादला और पदस्थापन करने वाली है। सूत्रों की मानें तो अगले सप्ताह इस सोच को अंजाम दिया जाएगा। इसी क्रम में बार बार राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को बदलने की चर्चा भी जोर पकड़ती है।
जानकार मानते हैं कि ऐसा करना राज्य सरकार के हित में नहीं होगा क्योंकि ऐसे शीर्ष पदों की पदस्थापना के बारे में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र के मुताबिक याचिका संख्या 881 -2021 को निष्पादित करने वक्त कई स्पष्ट निर्देश दिये गये थे। यह याचिका केंद्र सरकार एवं अन्य के खिलाफ दायर की गयी थी। संविधान के आर्टिकल 32 का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने याचिका को निष्पादित किया था।
इसी मामले में झारखंड का भी उल्लेख किया गया था। याचिका संख्या 310-1996 में झारखंड के डीजीपी के मामले का संदर्भ दिया गया था। जिसमें लोक सेवा आयोग की तरफ से वकील नरेश कौशिक ने अदालत को सरकारी सोच की जानकारी दी थी। आयोग के मुताबिक एक पैनल तैयार कर राज्य सरकार को गत 5 जनवरी 2023 को भेज दिया गया है।
प्रसिद्ध वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि सारी औपचारिकताएं 12 फरवरी 2023 तक पूरी कर ली जाएगी। इसी आदेश के पैरा चार में यह साफ साफ लिखा गया था कि अगर कोई गड़बड़ी हो तो अवमानना का मामला कभी भी उठाया जा सकता है। सूत्र के मुताबिक इस याचिका की सुनवाई वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति बी पारदीवाला की अदालत में हुई थी।
इसकी जानकारी प्रोजेक्ट भवन अथवा पुलिस मुख्यालय के वरीय अफसरों को है। इसके बाद भी यह जानकारी मिल रही है कि इस अदालती आदेश को दरकिनार करने का कोई तरीका खोजने के लिए एक पुलिस अधिकारी हाल के दिनों में दिल्ली का चक्कर लगा चुका है। लिहाजा एक पक्ष इसी तिकड़म के जरिए राज्य सरकार को फिर से उलझाकर भाजपा को फायदा पहुंचाने के जुगाड़ में व्यस्त है।