डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में जब सीएजी ने कोयला घोटाला का आरोप लगाया तो एक केंद्रीय मंत्री जेल चले गये और वह एक ऐसा चुनावी मुद्दा बना जिससे नरेंद्र मोदी की ताजपोशी हुई। उससे पहले बोफोर्स घोटाले की आंच में खुद राजीव गांधी भी अपनी कुर्सी गवां बैठे थे। इस बार आरोपों के निशाने पर खुद नरेंद्र मोदी हैं।
न खाऊंगा ना खाने दूंगा का नारा देने वाले अब इस अडाणी के मुद्दे पर चुप्पी साधकर बैठे हैं। उन्होंने ही पूर्व की सरकारों पर न जाने क्या क्या आरोप लगाये थे। पूर्व की सरकार पर लगे तमाम आरोप अदालत में निराधार साबित हुए। तो अब फिर से अडाणी मामले और खास कर अडाणी के कोयला आयात के घोटाले की जांच से उन्हें परहेज क्यों हैं।
फाइनेंशियल टाइम्स ने एक विस्तृत जांच में, जिसका शीर्षक था, अडाणी कोयला आयात का रहस्य जो चुपचाप मूल्य में दोगुना हो गया, पाया कि अडाणी, देश का सबसे बड़ा निजी कोयला आयातक, ईंधन की लागत बढ़ा रहा है जिससे लाखों भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसाय बिजली के लिए अधिक भुगतान कर रहे हैं।
रिपोर्ट बताती है कि कैसे गौतम अडाणी को ‘मोदी का रॉकफेलर’ बताया गया है, जिसमें पिछले दस वर्षों में उनकी तेजी से बढ़ती किस्मत का जिक्र किया गया है, जब उनकी 10 सूचीबद्ध कंपनियां समृद्ध हुई हैं और वह भारत की सबसे बड़ी निजी थर्मल पावर कंपनी के रूप में उभरे हैं। वह देश का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह ऑपरेटर भी है।
अडाणी ने हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों और फिर फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा कोयले के आयात की अधिक कीमत तय करने के आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के इस साल सुप्रीम कोर्ट में अपील वापस लेने के फैसले से यह सही साबित हुआ है। 2016 में नामित 40 आयातकों में से एक के खिलाफ मामला।
इसमें कहा गया, कोयले के आयात में अधिक मूल्यांकन का मुद्दा भारत की सर्वोच्च अदालत द्वारा निर्णायक रूप से सुलझाया गया था। एफटी ने डीआरआई जांच की अनसुलझी प्रकृति और कथित प्रथाओं की स्पष्ट निरंतरता का हवाला देते हुए अडाणी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन के बीच संबंधों के बारे में नए सवाल उठाए हैं।
वॉचडॉग सेबी की भूमिका भी तब सुर्खियों में आ गई है जब यह सामने आया कि उसे 2014 से अडाणी समूह के खिलाफ आरोपों के बारे में पता था, जो कि एक पत्र जो ओसीसीआरपी-एफटी-द गार्जियन की जांच का हिस्सा था, दिखाया गया है। अडाणी पर हमला करने वाला सबसे हालिया घोटाला यह आरोप था कि उस समय सेबी के अध्यक्ष अब अडाणी के स्वामित्व वाले एनडीटीवी के एक स्वतंत्र निदेशक थे।
फाइनेंशियल टाइम्स ने 2019 और 2021 के बीच 32 महीनों में अडाणी कंपनी द्वारा इंडोनेशिया से भारत तक कोयले की 30 शिपमेंट को देखने के बाद अपनी जांच में तीन प्रमुख बिंदु उठाए हैं। अडाणी ग्रुप ने गलत काम के आरोपों को खारिज कर दिया है। कहा गया है कि जनवरी 2019 में, अडाणी के लिए कोयला, पूर्वी कालीमंतन में कलियोरंग के इंडोनेशियाई बंदरगाह से 74,820 टन थर्मल कोयला लेकर रवाना हुआ, जो एक भारतीय बिजली स्टेशन की आग के लिए नियत था। ।
यात्रा के दौरान, कुछ असाधारण घटित हुआ: इसके माल का मूल्य दोगुना हो गया। जबकि निर्यात रिकॉर्ड में कीमत $1.9 मिलियन थी, साथ ही शिपिंग और बीमा के लिए 42,000 डॉलर थी। अडाणी द्वारा संचालित भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक बंदरगाह, गुजरात के मुंद्रा में पहुंचने पर, घोषित आयात मूल्य 4.3 मिलियन डॉलर था।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसी मुद्दे को उठाया है। मजेदार स्थिति यह है कि हर मुद्दे पर राहुल गांधी पर पलटवार करने वाले भाजपा नेता अडाणी का मुद्दा आते ही बगलें झांकने लगते हैं। इस बार भी कुछ वैसी ही स्थिति है और पूरी भाजपा इस चुप्पी की वजह से जनता की नजरों से गिरती जा रही है।
राहुल गांधी ने जो मुद्दे उठाये हैं, वे सही हैं अथवा गलत हैं, इसका खुलासा तो जांच से ही हो पायेगा और केंद्र सरकार अडाणी के हर मुद्दे पर कोई जांच ना हो, इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगाती नजर आ रही है। दूसरी तरफ यह समझना होगा कि देश की जनता महंगाई के बीच बढ़ी हुई बिजली बिल में इस खेल को अच्छी तरह समझ रही है और पिछली सरकार के पतन में भी जनता की इसी सोच का सबसे प्रमुख भूमिका रही थी।
अब चुनावी राजनीति के दौर में हर मुद्दे पर चुप्पी भी नरेंद्र मोदी के लिए भारी पड़ती नजर आने लगी है। ऐसा नहीं है कि भाजपा के अंदर के समझदार लोग भी इस स्थिति को अच्छी तरह समझते हैं और वर्तमान समीकरणों की वजह से वे भी मजबूरी में चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह चुप्पी आगे भी कायम रहेगी क्योंकि जब पूरी नाव डूबने की नौबत आने लगे तो वहां मौजूद कुछ लोग तो बचने के लिए हाथ पांव मारेंगे।