एक मोड़ आना राजनीति में कोई नई बात नहीं है। खासकर जब इलेक्शन का मौका तो तो पूरी सड़क ही घाटी में तब्दील हो जाती है यानी हर कदम के आगे एक नया मोड़ आता ही रहता है। अब जैसे जैसे लोकसभा का चुनाव करीब आ रहा है इंडियन पॉलिटिक्स की राह भी ऐसी ही होती जा रही है। किस पल कौन सा मोड़ आयेगा, कोई कह नहीं सकता। इलेक्शन कमिशन में चचा-भतीजा की जंग जारी है। दोनों का दावा है कि एनसीपी पार्टी का चुनाव चिह्न उनका है। लेकिन महाराष्ट्र की कौन कहे, कई राज्यों में चुनाव और टिकट के बंटवारे के दौरान ऐसी बातें आम हो चुकी है।
टीवी चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों में इसी इंडियन पॉलिटिक्स का अंतर साफ साफ नजर आता है। बात आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी से शुरु करते है। टीवी वाले कह रहे हैं कि संजय सिंह अब जाकर फंस गये हैं, दूसरी तरफ सोशल मीडिया कह रहा है कि दूसरे लोगों की तरह उनके घर से भी जांच एजेंसियों को कुछ नहीं मिला है।
दरअसल यह बहस इसलिए तेज हुई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछा है कि सबूत कहां है। मुझे तो पहले से ही अइसा लग रहा था कि इतनी सारी छापेमारी हो रही है पर पैसा या गहना, जेबरात, जमीन के कागजात जब्त होने की सूचना क्यों नहीं आ रही है। यही सवाल सुप्रीम कोर्ट ने पूछ दिया तो पूरी जांच को सही या गलत ठहराने की दलीलें दी जाने लगी।
वइसे मेरा पुराना अनुभव है कि जब जब चुनाव आता है तो अचानक से बरसाती मेंढक की तरह चुनावी सर्वेक्षण की रिपोर्टें आने लगती हैं। इन सर्वेक्षणों को गौर से देखने से पता चलता है कि मानों किसी एक ही व्यक्ति ने इसे लिखा है और मामूली हेरफेर कर चैनल वाले इसे परोसने लगे हैं। अरे भइया पब्लिक को अपना काम करने दीजिए, उनके दिमाग में जो बात आपलोग डालने की कोशिश कर रहे हैं, उसका क्या फायदा। इंडियन मैंगो मैन चुनाव के वक्त अचानक से समझदार हो जाता है और हरेक की हां में हां मिलाने के बाद बूथ पर जाकर उल्टा काम करता है। वह उस समय पूरा स्वार्थी हो जाता है।
इसी बात पर एक सुपरहिट फिल्म गदर के इस गाने की याद आ रही है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और संगीत में ढाला था उत्तम सिंह ने। उसे उदित नारायण ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल इस तरह हैं।
मैं निकला ओ गड्डी लेके
ओ ओहो हो ओहो हो हो
आ आहा हा आहा हा हा
मैं निकला ओ गड्डी ले के
ओ रस्ते पर ओ सड़क में
एक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
एक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
रब जाने कब गुज़रा अमृतसर
ओ कब जाने लाहौर आया
मैं उत्थे दिल छोड़ आया
एक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
उस मोड़ पे वो मुटियार मिली
हो उस मोड़ पे वो मुटियार मिली
जट यमला पागल हो गया
उसकी ज़ुल्फों की छाँव में
मैं बिस्तर डाल के सो गया
ओ जब जागा, मैं भागा
हो सब फाटक, सब सिग्नल
मैं तोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
हो एक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
बस एक नज़र उसको देखा
बस एक नज़र उसको देखा
दिल में उसकी तस्वीर लगी
क्या नाम था उसका रब जाणे
मुझको रांझे की हीर लगी
ओ मैंने देखा एक सपना
संग उसके नाम अपना
मैं जोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
इक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
ओ शरमाके वो यूँ सिमट गयी
शरमाके वो यूँ सिमट गयी
जैसे वो नींद से जाग गयी
मैंने कहा गल सुन ओ कुड़िये
वो डर के पीछे भाग गयी
वो समझी ओ घर उसके
चोरी से, ओ चुपके से
कोई चोर आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया
अरे इक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया।
जब से ओबीसी और ईबीसी की चर्चा होने लगी मोदी जी नाराज हो रहे हैं। होना भी चाहिए क्योंकि यह दांव तो उनके पुराने मित्र ने चला है। उधर राजस्थान में महारानी ही चाणक्य को पानी पिला रही हैं। मामा के राज में अचानक से उमा भारती के तेवर बदल गये हैं। ईडी से संजय मिश्रा क्या विदा हुए, लोगों ने ईडी के समन को सीरियसली लेना ही बंद कर दिया है।
हेमंत बाबू ताल ठोंककर दिल्ली में अमित शाह के साथ मीटिंग कर आये पर ईडी के दफ्तर नहीं जा रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा के पप्पू ने ऐसी तबाही मचायी है कि उसका नाम बदलकर अब रावण करना पड़ गया है। मेरी सलाह है कि भारत की अफसरशाही पर नजर गड़ाये रखिये। देश की पॉलिटिकल माहौल के असली मौसम वैज्ञानिक वे ही है। आगे क्या मौसम होगा, उसे भांपकर तेवर बदलने का हुनर उनमें सबसे अधिक है।