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थरुहट में दिखा कुआं जिंदाबाद का नज़ारा

सुविधाओं के बावजूद भी परंपरा को नहीं छोड़ते थारु समाज

  • कुआं को देव मानकर करते हैं परिक्रमा एवं पूजा-अर्चना

  • मोटे अनाज और कुआं का जल है थरुहट के बेहतर सेहत का राज

  • प्राचीन परंपराओं का अनदेखी है समस्या का मूल कारण : ग्रामीण

नरेन्द्र पांडेय

बगहा प.च. : थरूहट समाज की पहचान आधुनिक चकाचौंध के बीच अपनी परंपराओं को बखूबी से निभाने के लिए है। वाल्मीकिनगर लोकसभा अंतर्गत थरुहट के तमाम गांवों के लोग बिहार सरकार के लाभकारी योजनाओं के चलाने के बाद भी कुआं के जल को काफी तरजीह देते हैं।  ग्रामीण महिलाओं ने कहा कि कुआं हमारी रोजमर्रा में शामिल है। इस सदियों पुरानी परंपरा को हमसभी कभी नहीं छोड़ सकते हैं।

नलजल योजना के बाद भी इस कुएं के शुद्ध पेयजल से अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में थरूहटवासी विश्वास रखते हैं। सुबह उठकर महिलाएं अपने बर्तन को साफ कर इसी कुएं की जल का प्रयोग करती हैं। दातुन के साथ-साथ नहाने से लेकर कपड़े धोने आदि कार्यों में इसके जल का उपयोग करते हैं।

यहां तक कि इस कुएं को देव स्वरूप मानते हैं। महिलाएं सुबह बिछावन से उठते ही कुआं देवता को झुक कर प्रणाम करती हैं, ततपश्चात उसके जल का उपयोग किया जाता है। इतना हीं नहीं थरूहट समाज के लोग किसी भी पर्व-त्यौहार शादी विवाह में कुआं को साक्षी मान परिक्रमा करने के बाद अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने की कसमें खाते हैं।

इस दौरान दिवाकर पटवारी, सुंदर पटवारी, यशोदा देवी, सुकुमारी देवी, लता देवी , राजकुमारी देवी सहित दर्जन भर महिला व पुरुषों ने इस बाबत बताया कि हमारे पूर्वजों ने उस समय में चापाकल नहीं होने से गांव गांव कुआं खोदकर पीने लायक पानी निकाल कर पूरे समाज में एक अनोखी मिसाल कायम किया था।

जो जीवन में जल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हलाकि वर्तमान में सरकार के तरफ से स्वच्छता अभियान के तहत कुएं के जल को जांच भी करा रही है। साथ ही पुरानी पद्धतियों को जीवित रखने के लिए देश में सरकारी स्तर पर प्रत्येक पंचायत में जहां जहां कुआं अवस्थित है उसे जीर्णोद्धार करने में रुचि दिखायी जा रही है।

फिर भी थरुहट के समाज को कुएं के शुद्ध पेयजल पर ही भरोसा जता रहे हैं। बताते हैं कि इस निर्मल जल के पीने से कोई भी बीमारी नहीं होती है। इसकी साफ-सफाई की जिम्मेदारी स्वयं करते रहते हैं। इस जल के ग्रहण करने से पेट में गैस पत्थरी आदि बीमारी से मुक्ति मिलती रहती है। साथ ही इस जल के सेवन से भूख भी समुचित भोजन करने में बेहतर साबित होता है। पुरानी परम्पराओं की अनदेखी ही समस्या का मूल कारण बना हुआ है। लोगों को चाहिए कि अपनी परंपरा को कायम रखें तथा उनको संभाल कर रखने में सहयोग करने में मदद करें।

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