कसमें खाने में कोई पैसा थोड़े ना लगता है और ना ही इस पर कोई जीएसटी है। जितना चाहे कसम खा ले, वादे कर दो, बाद में तोड़ भी देंगे तो कोई क्या खाक बिगाड़ लेगा। अपना मोटा भाई है, फिर से कह देगा यह तो एक जुमला है। संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण विधेयक शानदार तरीके से पारित हो गया।
मैं भी आधी आबादी को इस स्तर पर मिलने वाले आरक्षण से काफी खुश था। अब दस्तावेज निकलकर आये तो सपना टूट गया। साहिब ने फिर से हर खाता में पंद्रह लाख जैसा खेल कर दिया है। भाई लोग कहते रह गये कि जब दोनों सदनों से पारित हो गया तो अभी से लागू कर दो। पता चला कि अभी दिल्ली दूर है।
वइसे भी दिल्ली में जो अब सरकार नहीं बड़े सरकार का राज है। अफसरशाही ने चुने हुए जनप्रतिनिधियों को किनारे लगा दिया है। एलजी साहब का हुक्म चल रहा है और बेचारे मुख्यमंत्री बगलें झांक रहे हैं। गनीमत है कि पंजाब में भी उनकी सरकार है वरना घाट पर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
गनीमत है कि ईडी के पुराने निदेशक का कार्यकाल खत्म हो गया। वरना अब तक ऑपोजिशन के कई नेताओं का पोजिशन शायद जेल के अंदर हो चुका होता। लेकिन भाई लोग कह रहे हैं कि कुर्सी से हट जाने के बाद भी अपने मिशिर जी, पर्दे के पीछे से खेल कर रहे हैं। अफसरशाही में यह कौन सी नई बीमारी लग गयी है, पता नहीं कुर्सी से हटने के बाद भी दूसरी कुर्सी के लिए मारा मारी करते रहते हैं।
अरे भाई असली सरकार तो आप लोग ही चलाते हो तो रिटायरमेंट की उम्र क्यों नहीं बढ़ा लेते। उसके बाद घर बैठ जाना। अपने कुली बाबा यानी राहुल गांधी ने खुले तौर पर कह ही दिया है कि दरअसल सरकार को आप ही चलाते हो फिर दिक्कत क्या है। एक नोटिफिकेशन और जारी करा ले कि अब से बड़े अधिकारियों के रिटायरमेंट की उम्र 65 की जाती है। फिर तो यह पर्दे से पीछे वाला खेल तो नहीं खेलना पड़ेगा।
चुनावी मोर्चाबंदी में अब साफ हो रहा है कि मोदी जी के लिए इस बार का मोर्चा फतह करना आसान नहीं होगा। सारे दुश्मन एकजुट हो रहे हैं। बाकी उत्तरप्रदेश में एक जो कमी थी, वह शायद सांसद बिधूड़ी के गाली गलौज वाली भाषा से पूरी हो जाएगी। मुझे इस बात का टेंशन है कि बिधूड़ी जी ने क्या सोच समझकर ऐसा बोला कि बसपा अचानक से भाजपा के खिलाफ मोर्चा बना ले।
अगर उत्तरप्रदेश में ऐसी मोर्चाबंदी हुई तो भाजपा की सीटें कम हो जाएंगी, यह तो राजनीति का नौसिखुआ भी समझ सकता है। तो क्या भाजपा के अंदर भी कोई शह और मात का खेल चल रहा है, जिसकी भनक बाहर नहीं आयी है।
इसी बात पर एक काफी पुरानी फिल्म उपकार का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था इंदीवर ने और संगीत में ढाला था कल्याणजी आनंद जी की जोड़ी ने। फिल्म में मनोज कुमार और आशा पारेख लीड रोड में थे। इस गीत को अपना स्वर दिया था मन्ना डे ने। गीत के बोल इस तरह है।
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातो का क्या
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
होगा मसीहा.. होगा मसीहा सामने तेरे
फिर भी न तू बच पायेगा
तेरा अपना.. तेरा अपना खून ही आखिर
तुझको आग लगाएगा
आसमान में, आसमान में उड़ने वाले
मिटटी में मिल जाएगा
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
सुख में तेरे.. सुख में तेरे साथ चलेंगे
दुःख में सब मुख मोड़ेंगे दुनिया वाले…
दुनिया वाले तेरे बनकर तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते हैं … देते हैं भगवान् को धोखा
इंसान को क्या छोड़ेंगे
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातो का क्या
कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या।
अब चलते चलते झारखंड का भी हाल चाल जान लें। लगता है कि अपने हेमंत भइया परेशानी में हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद अब तक हाईकोर्ट में याचिका गयी नहीं। ईडी वाले आज अदालत से उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट हासिल कर लें। फिर तो गई भैस पानी में। यह तय है क्योंकि राजनीति में कोई स्थायी तौर पर किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं होता, यह तो बार बार नजर आ रहा है। लेकिन महिला आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा को चुनावी लाभ कितना मिलेगा, यह देखने वाली बात होगी। याद दिला दें कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की इतनी बुरी गत सिर्फ महिलाओं की नाराजगी की वजह से हुई थी।