लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव की वजह से जबरन बोलने पर मजबूर किये गये नरेंद्र मोदी ने मणिपुर पर बहुत कम शब्द बोलकर देश को निराश किया। वह लोकसभा के अंदर भी ऐसा भाषण देते रहे मानो वह कोई चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। करीब 2 घंटे 20 मिनट के अपने भाषण में मोदी ने हिंसा प्रभावित राज्य के बारे में बमुश्किल दस मिनट तक बात की, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी सरकार शांति की दिशा में काम कर रही है।
उनके व्यापक भाषण का शेष भाग कांग्रेस, पिछली यूपीए सरकारों, विपक्षी भारतीय गठबंधन और मोदी सरकार के नौ वर्षों में उत्तर पूर्व में लाई गई विकासात्मक पहलों पर हमला करने के लिए समर्पित था। इसकी उम्मीद विपक्ष के साथ साथ देश की समझदार जनता को भी नहीं थी कि लोकसभा में इतने गंभीर मुद्दे को लेकर ही जब अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है तो एक प्रधानमंत्री इतनी गैरजिम्मेदारी से मणिपुर की बात रखेगा।
मोदी के चुनावी रैली जैसे भाषण से उबकर विपक्ष ने भाषण के 1 घंटे और 40 मिनट के बाद वॉकआउट कर दिया क्योंकि मणिपुर का कोई जिक्र नहीं था। सदन में विपक्षी सांसदों की अनुपस्थिति में अंततः अविश्वास प्रस्ताव ध्वनि मत से गिर गया, दजिस पर किसी को प्रधानमंत्री मोदी ने शाम 5 बजे बोलना शुरू किया, लेकिन उन्होंने सबसे पहले मणिपुर का जिक्र 6.42 बजे ही किया, जब विपक्षी सांसद सदन से बाहर जाने लगे।
उन्होंने कहा, कल, अमित भाई ने कहा कि मणिपुर के उच्च न्यायालय से एक आदेश आया, जिसमें घटनाओं का एक क्रम देखा गया जिसके कारण राज्य में हिंसा हुई। कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया। महिलाओं के खिलाफ भयानक अपराध किए गए और यह निंदनीय है। अपराधियों को सजा दिलाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें पूरी कोशिश कर रही हैं।
मैं सभी नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारे सभी प्रयास जारी हैं और जल्द ही शांति बहाल हो जाएगी। मणिपुर जल्द ही विकास की दिशा में नए आत्म विश्वास के साथ आगे बढ़ेगा। मैं मणिपुर के लोगों से, महिलाओं से, बेटियों से, बहनों से भी कहना चाहता हूं कि देश आपके साथ है, ये सदन आपके साथ है।
हम मिलकर इस चुनौती का सामना करेंगे और शांति वापस लाएंगे। मैं मणिपुर को बताना चाहता हूं कि हम यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मणिपुर जल्द ही शांति की ओर बढ़े। इसमें समस्या के समाधान के रोडमैप का कोई जिक्र नहीं था।
इस वजह से यह महसूस किया गया कि जिस तरीके से अटल बिहारी बाजपेयी के सख्त तेवर की वजह से गुजरात का दंगा शांत हुआ था, वह तेवर प्रधानमंत्री मोदी में नहीं है, यही निराशाजनक स्थिति है।
मणिपुर पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में भी मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधा और कहा, अगर वे शाह के अनुरोधों पर सहमत होते, तो हमारी अच्छी चर्चा हो सकती थी। शाह ने कल एक विस्तृत बयान दिया और मणिपुर की स्थिति के बारे में विपक्ष द्वारा फैलाये गये झूठ से देश स्तब्ध रह गया।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पिछली कांग्रेस सरकारों ने पूर्वोत्तर के लिए बहुत कम काम किया। कांग्रेस ने कभी भी पूर्वोत्तर की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की। मैंने (पूर्वोत्तर) 50 बार दौरा किया है। यह सिर्फ डेटा नहीं है, यह पूर्वोत्तर के प्रति समर्पण है।
मणिपुर में किसकी सरकार थी जब सरकारी कार्यालयों में महात्मा गांधी की तस्वीर की अनुमति नहीं थी, मणिपुर में किसकी सरकार थी जब स्कूलों में राष्ट्रगान की अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया गया। कुल मिलाकर वह मणिपुर के मुद्दे पर लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर बिना किसी सरकारी समाधान का जिक्र किये ही अपनी बात समाप्त कर गये। उ
नके भाषण का शेष हिस्सा अपनी सरकार का प्रचार करने तथा विपक्ष की आलोचना करने में ही बीत गया। साथ ही वह अगले चुनाव में जीत का दावा भी करते रहे। उन्होंने तंज कसा कि विपक्ष के अगले अविश्वास प्रस्ताव तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
मोदी ने कहा कि जैसा कि उन्होंने 2018 में अपनी सरकार के खिलाफ लाए गए पिछले अविश्वास प्रस्ताव के दौरान वादा किया था कि 2023 में एक और प्रस्ताव आएगा, 2028 में तीसरा प्रस्ताव आएगा। उन्होंने कहा, ‘मैंने 2018 में वादा किया था कि वे 2023 में फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे और उन्होंने ऐसा किया है।
इस तरह यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार के पास फिलहाल मणिपुर में शांति बहाल करने की कोई इच्छा और योजना नहीं है। ऐसा क्यों है, इस पर शोध जरूरी है क्योंकि अब यह साफ होता जा रहा है कि यह सरकार प्रायोजित हिंसक स्थिति है, जिसने वहां के दोनों समुदायों के बीच खाई खोद दी है। जिसका नुकसान पूरे देश को हो सकता है, इस बात को मोदी सरकार समझ नहीं पा रही है।