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बड़े मामलों की जांच अथवा पेगासूस से जुड़ा मामला

संजय मिश्रा को रखने की केंद्र की मजबूरी का कारण क्या है

  • अनेक नेताओँ के खिलाफ मामला का रिकार्ड

  • यूपी कैडर के राजस्व अधिकारी रहे हैं वह

  • सेना ने कहा है पेगासूस से कोई रिश्ता नहीं

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः आम तौर पर कोई भी राजनीतिक सत्ता कभी भी किसी अफसर के मामले में इतनी लाचार नहीं होती है। अनेक अधिकारी सरकारी मुखिया के विश्वासपात्र होते हैं लेकिन उन्हें पद पर रखने में कोई भी सरकार इतनी मिन्नतें कभी नहीं करती। इसलिए ईडी के निदेशक के तौर पर संजय मिश्रा को रखने की मजबूरी पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

आम चर्चा यह है कि सारे बड़े राजनीतिक मामलों को अंजाम तक पहुंचाने में संजय मिश्रा की भूमिका रही है। इसलिए मोदी सरकार यह चाहती है कि वह इसके लिए अपना राजनीतिक हित साधे और सार्वजनिक मंचों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कार्रवाई का प्रचार करे।

लेकिन इसके बीच ही फिर से तकनीकी विशेषज्ञ यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या इजरायल की कंपनी से खरीदा गया पेगासूस ईडी के निदेशक के नियंत्रण में है। यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने यह जासूसी स्पाईवेयर खरीदा है। लेकिन यह स्पाईवायर किस केंद्रीय एजेंसी के पास है, यह स्पष्ट नहीं है।

अलबत्ता भारतीय सेना की तरफ से यह साफ कर दिया गया है कि उसका इस कंपनी से कोई कारोबारी रिश्ता नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी जांच कमेटी ने भी कई मोबाइल फोनों पर यह स्पाईवेयर होने के संकेत दिये हैं। इसलिए अब सवाल उठ रहा है कि इस अत्याधुनिक स्पाईवेयर की देखरेख की जिम्मेदारी किसके पास है।

राजनीतिक अधिकारियों के पास लोगों की वैध ज़िम्मेदारियाँ हैं, और उन्हें हर पाँच साल में लोगों की अदालत में खड़ा होना पड़ता है। परिणामस्वरूप, उनके पास ऐसे अधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार है जो प्रशासन की दक्षता को बनाए रखने और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में राजनीतिक कार्यपालिका की सहायता करने का वचन दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी स्पष्ट रूप से समझते हैं कि एक सफल कार्यकाल के लिए एक कुशल प्रशासन की आवश्यकता होती है, उन्होंने नौकरशाही की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए कई नीतियां लागू कीं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा ऐसे कई ईमानदार अधिकारियों में से एक हैं जिनके लिए पीएम मोदी हर मानदंड को तोड़ देते हैं।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले संजय कुमार मिश्रा आयकर कैडर के 1984-बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी हैं। अपने आर्थिक कौशल और ईमानदार चरित्र के कारण, वह लगातार प्रशासन में शीर्ष स्थान पर पहुँच गये। उन्होंने कई हाई प्रोफाइल इनकम टैक्स मामलों की जांच की और उन्हें अंतिम नतीजे तक पहुंचाया।

उनके करियर प्रोफ़ाइल को ध्यान में रखते हुए, एसके मिश्रा को 19 नवंबर, 2018 को ईडी में प्रधान विशेष निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। नतीजतन, उन्हें ईडी का निदेशक बनाया गया था। ईडी में उनका कार्यकाल 16 नवंबर 2021 को समाप्त होने वाला था। हालांकि, देश में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी जांच की तीव्रता को देखते हुए अध्यादेश के जरिए उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था।

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार के आदेश को बरकरार रखा था और सरकार को एसके मिश्रा को कोई अतिरिक्त एक्सटेंशन नहीं देने का निर्देश दिया था। हालाँकि, सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम में संशोधन के लिए एक अध्यादेश जारी किया। अध्यादेश ने ईडी निदेशक का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ा दिया। संवैधानिक आदेश के अनुसार, अध्यादेश को अंततः दिसंबर 2021 में अधिनियम के साथ बदल दिया गया।

पीएम मोदी को एसके मिश्रा पर इतना भरोसा था कि उन्होंने न सिर्फ उन्हें बनाए रखने का आदेश जारी कर दिया, बल्कि उनका कार्यकाल बढ़ाने का कानून भी पारित कर दिया. एसके मिश्रा ने भारत में आर्थिक धोखाधड़ी के खिलाफ अपनी अंतहीन हड़ताल के माध्यम से पीएम मोदी का विश्वास अर्जित किया।

दस्तावेज कहते हैं कि एसके मिश्रा ने भ्रष्टाचारियों के सपनों पर पानी फेरते हुए इन मामलों को अंजाम तक पहुंचाया है. इसीलिए, उसे रोकने के लिए पूरा वाम-उदारवादी जालसाज एक हो गया है। इस आदेश को पलटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई रिट याचिकाएं दायर की गई हैं।

अब आगामी 15 सितंबर तक उनका कार्यकाल बढ़ाने की अनुमति देने के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इसके बाद इस मामले पर कोई सुनवाई नहीं होगी। ऐसे में राजनीतिक तौर पर यह चर्चा है कि दरअसल मोदी के राजनीतिक विरोधियों को परास्त करने में ईडी की भूमिका है। ऑपरेशन लोट्स का एक आधार ईडी की कार्रवाई है। इसमें हाल में महाराष्ट्र में अजीत पवार भी जाल में फंसे हैं। इसके बाद भी सवाल यह है कि इतने सारे विरोधी नेताओं को मनी लॉंड्रिंग के मामले में अभियुक्त बनाने का आधार क्या पेगासूस रहा है, जिसका संचालन भारत में किसके पास है, यह महत्वपूर्ण प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है।

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